अल्मोड़ा से हाल ही में ट्रांसफर होकर देहरादून आए डीएफओ पंकज कुमार ने वन संरक्षक पर गंभीर आरोप लगाए हैं।उन्होंने पुलिस अधीक्षक तथा वन विभाग केे उच्चाधिकारियों को पत्र लिखकर बताया कि कुमाऊंं वन संरक्षक डॉक्टर इंद्रपाल अनैतिक और अवैधानिक कार्यों में लिप्त हैं, इसलिए इसकी जांच कराई जानी चाहिए। पर्वतजन को शासन तथा अन्य विभागों से प्राप्त हुए गोपनीय पत्रों से इसका खुलासा हुआ है।
डीएफओ ने उच्चाधिकारियों को समय-समय पर लिखे तमाम पत्रों का हवाला देते हुए शिकायत की है कि कोसी पुनर्जनन कार्यों में हुई वित्तीय अनियमितता की तुरंत एक उच्चस्तरीय/निष्पक्ष/स्वतंत्र जांच कराई जाये। क्योंकि वित्तीय अनियमितता उजागर करने वाले दिन (दिनांक 16-11-2018 को अल्मोड़ा रेंज में उनके द्वारा औचक निरीक्षण किया गया था व वित्तीय अनियमितता पाये जाने पर संचिता वर्मा, रेंज अधिकारी, अल्मोड़ा रेंज को दिनांक 20-11-2018 से कारण-बताओ-नोटिस भी जारी किया जा चुका है, जिसका जवाब 03 दिवसों में अपेक्षित था परन्तु उन्होंने डीएफओ के ट्रांसफर तक जवाब नहीं दिया था।
डीएफओ ने वन संरक्षक पर आरोप लगाते हुए कहा कि वन संरक्षक के उकसाने पर उनके खिलाफ धरना प्रदर्शन तथा भूख हड़ताल आदि कराई गई।
यह षड्यंत्र इसलिए रचा गया था जिससे कि कोसी पुनर्जनन कार्यों में हुई वित्तीय अनियमितता से सबका ध्यान भटकाया जा सके, जांच को प्रभावित किया जा सके व निजी स्वार्थ सिद्ध करने हेतु उनकी छवि धूमिल करते हुए स्थानांतरण करवाया जा सके।
डीएफओ ने पत्र में यह भी लिखा है कि ” मेरा स्थानांतरण इसलिए भी करवाया गया है जिससे कि श्री इन्दर पाल सिंह, वन संरक्षक महोदय अपने हिडन एजेंडा को मूर्त रूप प्रदान कर सकें। वित्तीय अनियमितता से सबका ध्यान भटकाने के उद्देश्य से दिनांक 16-11-2018 से मीडिया में श्री महेंद्र वर्मा, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, कार्यालय वन संरक्षक, उत्तरी कुमाऊँ वृत्त, अल्मोड़ा व अन्य कर्मचारी नेताओं द्वारा मीडिया में दुष्प्रचार करवाकर मेरी छवि खराब करने की पुरजोर कोशिश की गयी थी। डीएफओ ने वन संरक्षक पर यह भी आरोप लगाया है कि वन संरक्षक ने उनका कैरियर चौपट करने की भी धमकी दी थी।
डीएफओ ने अपनी शिकायत में लिखा है कि कोसी पुनर्जीवन कार्यों में हुई वित्तीय अनियमितता कई बार मीडिया में आने के बावजूद उनके स्तर से न ही कोई जांच बैठाई गई है न ही दोषी रेंज अधिकारी, श्रीमती संचिता वर्मा के विरुद्ध कोई कारवाई की गई है। इसके विपरीत उनके द्वारा मीडिया में यह बयान दिया जा रहा है कि कोसी पुनर्जीवन कार्यों में कोई वित्तीय अनियमितता नहीं हुई है क्योंकि मुख्यमंत्री द्वारा अल्मोड़ा क्षेत्र में कई बार भ्रमण कर कोसी कार्यों को स्वयं देखा गया है। इस प्रकार वन संरक्षक द्वारा मीडिया को गुमराह कर तथ्यों को छुपाने का प्रयास व रेंज अधिकारी, श्रीमती संचिता वर्मा के विरुद्ध कोई कार्यवाही ना कर प्रश्रय देना इस पूरे प्रकरण को अत्यंत संदिग्ध बनाता है जिसकी तत्काल जांच की जानी चाहिए।
डीएफओ ने सीधे आरोप लगाया है कि “डॉ इन्दर पाल सिंह,वन संरक्षक जो कि स्वयं भारतीय वन सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, द्वारा अपने पद/शक्तियों/ (ये पिछले 5-6 साल से पिथौरागढ़/अल्मोड़ा क्षेत्र में तैनात हैं) का दुरुपयोग कर निजी स्वार्थ की पूर्ति हेतु उनके (भारतीय वन सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी) के विरुद्ध षड्यंत्र किया गया है। इनके द्वारा अपने कार्यालय में कार्यरत श्री महेंद्र वर्मा, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के माध्यम से दोनों वन प्रभागों के कार्यालय कार्मिकों को बरगलाकर/उकसाकर/भड़काकर/डरा-धमकाकर सिटोली स्थित अपने कार्यालय परिसर में धरना-प्रदर्शन/कार्यबहिष्कार/हड़ताल करवाया गया है।”
डीएफओ ने लिखा है कि उनका अहित पहुंचाने के उद्देश्य से इनके द्वारा श्री महेंद्र वर्मा, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के माध्यम से दोनों वन प्रभागों में कार्यरत महिलाओं को भी भड़काकर उत्तरखंड महिला आयोग व मानवाधिकार आयोग में भी शिकायत कारवाई गई है। यह भारतीय वन सेवा के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण व अभूतपूर्व घटना है। इस घटना से भारतीय वन सेवा की गरिमा को नुकसान पहुंचा है।यदि इस प्रकरण की तत्काल जांच ना कराई जाये तब भारतीय वन सेवा की गरिमा को अपूरणीय क्षति होगी। दोषियों के विरुद्ध यथोचित कार्रवाई न किए जाने की दशा में भविष्य में भी कुछ कर्मचारी नेताओं के द्वारा निजी स्वार्थ की पूर्ति हेतु अनैतिक/अवैधानिक तरीकों का इस्तेमाल कर इस प्रकार का षड्यंत्र कर भारतीय वन सेवा की गरिमा को ठेंस पहुंचाई जाती रहेगी।
डीएफओ ने वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक जयराज से अनुरोध किया है कि इस पूरे प्रकरण को शासन के उच्चाधिकारियों व मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाते हुए शीघ्राताशीघ्र जांच करवाएं। डीएफओ ने डॉ इंदर पाल सिंह, वन संरक्षक, उत्तरी कुमाऊँ वृत्त, अल्मोड़ा का तत्काल अल्मोड़ा से स्थानांतरण किए जाने की मांग की है ताकि इनके विरुद्ध जांच को प्रभावित न किया जा सके। दोषी पाये जाने पर भारतीय वन सेवा संघ द्वारा उनके कृत्य की भर्त्सना की जाये, निंदा प्रस्ताव पारित किया जाये व यथोचित कार्यवाही अमल में लायी जाये।
डीएफओ ने कहा है कि यदि उन्हें न्याय नहीं मिला तो वह कोर्ट जाएंगे।
इस प्रकरण को 2 माह से अधिक का समय हो चुका है देखना यह है कि डीएफओ और वन संरक्षक के बीच का यह विवाद क्या रंग आता है।