क्या नव-वर्ष जन सुविधाओं की सरकार देगी सौगात!!
नीरज उत्तराखंडी
सरकारों की पहाड विरोधी मानसिकता, मूल निवासी विरोधी वन कानून, अनियोजित विकास, जनप्रतिनिधियों की पलायनवादी मानसिकता तथा स्वार्थसुखाय की प्रवृत्ति के चलते सीमांत के प्रहरी सीमांत गांव के वाशिंदे इक्कीसवीं सदी में भी आधारभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन जीने को अभिशप्त है-जी हां ऐसी ही धरातलीय सच्चाई ,वास्तविकता है उत्तराखंड के सीमांत गांव सेवा और बरी गांव की।
जनपद उत्तरकाशी के विकास खण्ड मोरी के हिमाचल प्रदेश के सीमांत गांवों डोडरा, क्वार क्षेत्र से जूडे बरी तथा सेवा गांव आज भी आधारभूत सुविधाओं से महरूम है ।जबकि हिमाचल सरकार अपने सीमांत गांवों डोडरा क्वार क्षेत्र को हैली पैड सेवा से जोड कर सभी आधारभूत जन सुविधाओं से जोड चुकी है क्या हमारी उतराखण्ड सरकार की भी अपने सीमांत के प्रति संवेदना जगेगी ?
मोरी ब्लाक के सीमांत गांव बरी तथा सेवा सरकारों की बेरुखी के आगे बेबस है। अनुसूचित जाति बाहुल्य बरी गांव के बाशिन्दे आज भी सडक,स्वास्थ्य,संचार,शिक्षा,बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।
2300 मीटर से अधिक ऊँचाई पर बसे मोरी ब्लाक के इस सीमांत गांव बरी में 100 परिवार निवास करते हैं जिनमें लगभग 80 परिवार अनुसूचित जाति तथा 20परिवार राजपूत हैं । ग्राम पंचायत बरी की लगभग 600 की जनसंख्या के लिए आने जाने के लिए कोई सडक मार्ग की सुविधा नहीं है।मोरी ब्लाक मुख्यालय से नैटवाड तक बस से तथा उसके बाद नैटवाड से धौला तक टैक्सी से 10किमी की यात्रा कच्चे मार्ग से तय करनी होती है,टैक्सी चालकों की मनमानी का यहाँ खूब डंका बजता है टैक्सियों में भेड बकरियों की तरह सवारियां ठूंसी जाती है।10किमी के जोखिम भरे इस सफर के 60रूपये किराया बसूला जाता है।धौला पहुँचने के बाद 6किमी की खडी चढाई की पगडंडी नापनी पडती है। इस पंगडडी की जोखिम भरी चढाई नापना यहाँ के निवासियों की नियति बन चुकी है।
स्वास्थ्य की कोई सुविधा न होने से आपातकाल में बीमारी या प्रसव पीडिता महिलाओं को इसी पंगडडी के सहारे पीठ पर उठाकर धौला तक लाना पडता है।उसके बाद असुविधा युक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मोरी लाना होता है।
मोबाइल क्रांति के इस फोर जी युग में यहाँ दूर संचार की कोई सुविधा नहीं है।कहने को तो दोणी गांव में लगा भारत संचार निगम लिमिटेड का टावर लगा है जो क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक गांवों को दूर संचार सेवा से जोडता है लेकिन अक्सर यहाँ दूर संचार सेवा बाधित रहती है।टावर सफेद हाथी बन कर रह गया है हालांकि टावर संचालन इंजन हजारों रूपये का तेल पी जाने के बाद भी सेवा नहीं दे पा रहा है।
बरी गांव में सदियों पुरानी बिछाई गई पेयजल लाइन आपना धैर्य खो चुकी है जीर्ण-शीर्ण पाइपलाइन से जगह-जगह रिस्ता पानी जल संस्थान की अनुपस्थिति की चुगली करते नजर आते हैं ।ग्रामीण किसी तरह पाइपों को जोड कर पानी का जुगाड कर रहे है। साल में चार माह बर्फ से ढके रहने वाले इन सीमांत गांव के निवासियों का जीवन कष्टों तथा जोखिम से भरा है।
लेकिन इस बीच आशा की एक किरण जरूर दिखी प्राथमिक तथा जूनियर हाई स्कूल यहाँ आशा के अनुरूप चल रहे है।शिक्षा विभाग में तैनात कर्तव्यनिष्ठ अध्यापक यहाँ शिक्षा विभाग की लाज बचाये हुए है । इन शिक्षकों से सीमांत गांव से अक्सर नदारद रहने वाले शिक्षकों को सबक लेने की आवश्यकता है ।यहां जूनियर हाई स्कूल का भवन की साज-सज्जा मन को अपनी ओर आकर्षित तो करती ही है साथ ही यहाँ छात्र संख्या भी काफी अच्छी और संतोषजनक है । राजकीय प्राथमिक विद्यालय में यहाँ 70छात्र छात्राएँ अध्ययन कर रही है तथा उनको पढाने के लिए तीन शिक्षक तैनात है।वहीं राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में 60विद्यार्थी वर्तमान समय में पढ रहे है तथा उनके पढाने के लिए तीन शिक्षक कार्यरत है।विद्यालय भवनों की शोभा देखते की बनती है।एक स्वच्छ संदेश देते विद्यालय के कक्ष, अनुशासित छात्र,स्कूली वेषभूषा के साथ स्कूल पहुँचते हैजो एक आदर्श विद्यालय के दर्शन कराते है ।
लेकिन जनप्रतिनिधि की उपेक्षा और गांव से सुविधा जनक स्थल पर पलायन करना जरूर खलता है।इन खूबसूरत गांवों को एक सामाजिक बुराई अफीम तथा अन्य मादक पदार्थों के सेवन के नशे ने युवापीढ़ी को अपनी गिरफ्त में लेकर बर्बादी की जो कहानी लिखी जा रही है वह सोचनीय है। प्रकृति की नेमतों से भरे इन खूबसूरत गांवों को सजाने संवारे की दरकार है ।
यही हाल बरी गांव के पडोसी गांव उतराखण्ड का अंतिम गांव सेवा का है।सिस्टम की सुस्त कार्य प्रणाली तथा सरकार की उपेक्षा के चलते सीमांत वासी मूलभूत सुविधाओं से बंचित है।
उम्मीद की जानी चाहिए सरकार तथा जनप्रतिनिधि भूल सुधार कर इन गांवों की सुध लेगी और नव वर्ष में इन गांवों में विकास की किरण पहुंचेगी । बरी गांव के दिन बहुरेंगे तथा सेवा गांव मूलभूत सुविधा से जोड कर सरकार सुध लेगी।