आज और पहले की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा ही अंतर नजर आता है। पहले विद्यालयों में शिक्षकों को मात्र पढ़ाई करवाने के लिए रखा जाता था और ईमानदारी से पढ़ाई होती थी , लेकिन आज आज की शिक्षा व्यवस्था दिखावे की हो चुकी है और बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते नजर आती है।
इसका एक उदाहरण- वर्ष 2018-19 का प्रशिक्षण जो अप्रैल 2018 में हो जाना चाहिए था और उसका लाभ बच्चों को उस सत्र में मिलना चाहिए था लेकिन अधिकारियों की हीलाहवाली कहें या फिर सरकार की उदासीनता इसके लिए बजट नवंबर 2018 में प्राप्त होता है और जनवरी और फरवरी 2019 में प्रशिक्षण होने जा रहे हैं ।जनवरी में शिक्षकों की छुट्टियों में कैंची चलाकर उन्हें अत्यधिक ठंड में प्रशिक्षण हेतु रुद्रपुर जैसे गर्म क्षेत्र के अलावा डाइट बड़कोट(उत्तरकाशी),टिहरी,चमोली, भीमताल जैसे ठंडे क्षेत्रों में भेज जाता है और 16 जनवरी से 25 जनवरी तक और फरवरी में लगातार प्रशिक्षणों के द्वारा शिक्षकों को व्यस्त रखने का कार्यक्रम है जबकि फरवरी माह में ही सरकार व विभाग ने 1 फरवरी से 24 फरवरी तक प्रयोगात्मक परीक्षाओं की तिथि भी जारी कर दी है,मार्च में होने वाली बोर्ड परीक्षा के लिए शिक्षक को अपने छात्र छात्राओं के साथ उनका मनोबल बढ़ाने और उनकी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए विद्यालयों में होना चाहिए था लेकिन उत्तराखण्ड में तो पढ़ाई मात्र कागजों में ही होती है।और छात्रों का भविष्य की कोई चिंता न तो सरकार को है और न ही विभाग को। इन्हें तो आंकड़े चाहिए।
प्रशिक्षण के नाम पर पैसे की बंदरबाँट से उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया है।
प्रशिक्षण से जहाँ एक ओर सरकारी धन को ठिकाने लगाने की व्यवस्था हो रही है वहीं दूसरी ओर नैनिहालों का भविष्य चौपट हो रहा है एक ही स्कूल से सभी टीचर्स की ड्यूटी प्रशिक्षण में 10दिनों के लोए लगाई गई है ऐसी स्थिति में बच्चे कहाँ जाएं किस्से अपने सवालों का जबाव पूछें कुछ समझ नही आ रहा है।
प्रशिक्षण में जहां एक ओर 10 दिन के प्रशिक्षण में 190000 एक लाख नब्बे हजार रुपये खपाये जा रहे हों –
जिसमे 380प्रशिक्षकों के 10 दिन के लिए
खाने पर प्रति प्रशिक्षक-110रुपये*38*10=41800=00
सूक्ष्म जलपान पर-50 रुपये *38*10=19000=00
स्टेशनरी आदि -350रुपये*38=13300=00
टी ए डी ए आदि पर-1500रुपये *38=57000=00
3 प्रशिक्षकों का मानदेय-200रुपये प्रतिदिन*10दिन=6000=00
प्रशिक्षण साहित्य मुद्रण पर-50 प्रतिभागी*150=7500=00
आकस्मिक व्यय आदि पर-30000=00
प्रशिक्षण अनुश्रवण -15400=00
कुल धनराशि 10 दिनों के लिए -190000=00एक लाख नब्बे हजार रुपये।
अगर यह धनराशि काश स्कूलों के प्रधानाचार्यो को अस्थाई शिक्षकों को रखने के लिए दी जाती जब तक स्थाई शिक्षक नही आ जाते तो कितना अच्छा होता और बच्चों का भविष्य सुधरता। लेकिन नही क्योंकि नौनिहालों के भविष्य की चिंता न तो विभाग को है और नही सरकार को ।
सरकार जब विद्यालयों में शिक्षकों को नही दे पायी तो प्रशिक्षण तो ढोंग है जब विद्यालयों में विषय के शिक्षक ही नही हैं तो उन शिक्षकों को स्कूल जाकर फिर वही प्रधानाचार्य,बाबूगिरी,चौकीदारी, और लोकसभा चुनाव के लिए फिर ट्रेनिंग लेनी है फिर मार्च में परीक्षा ड्यूटी,अप्रैल में मूल्यांकन,मई में चुनाव,जून में मतगणना आदि कार्यों में व्यस्त रहना है।
बाद में बोर्ड रिजल्ट खराब आने पर सारा ठीकरा शिक्षक के सिर में फोड़ा जाएगा।आखिर बच्चों की पढ़ाई व भविष्य चौपट कौन कर रहा है ।आखिर शिक्षक को पढ़ने क्यों नही दिया जा रहा है? आखिर इन प्रशिक्षणों को सत्रांत में क्यों करवाया जा रहा है ? आखिर प्रशिक्षणों के नाम पर इतनी लूट क्यों? और इन सबके लिए कौन दोषी?