कृष्णा बिष्ट
भूमाफियाओं ने आरक्षित वन क्षेत्र की 800बीघा भूमि को कब्जाने का षड्यंत्र रच डाला। सितारगंज की वन भूमि कब जाने के लिए स्थानीय निवासी कुलदीप सिंह और अन्य लोगों ने एसडीएम के फर्जी आदेश तथा पटवारी तहसीलदार की फर्जी रिपोर्ट लगाकर अपने नाम 800 बीघा वन भूमि दर्ज करने के आदेश करा दिए। इन आदेशों में इन लोगों ने दर्शाया कि वे विभाजन के समय पाकिस्तान से यहां आए थे और उन्हें यह जमीन खेती के लिए दी गई थी तथा वे 70 साल से इस भूमि पर काबिज हैं, इसलिए यह भूमि अब इनके नाम चढ़ा दी जाए!
फर्जी आदेश तैयार कराने के बाद वन भूमि अपने नाम जुड़वाने के लिए यह लोग हाई कोर्ट गए लेकिन हाईकोर्ट ने मना करते हुए उधम सिंह नगर के डीएम को 3 महीने में इस प्रकरण का निस्तारण करने के आदेश दे दिए।
आदेश के अनुपालन में जब एसडीएम सितारगंज ने वन विभाग से राय मांगी तो इस पूरे खेल का खुलासा हुआ। जंगलात को अब तक इस मामले की भनक तक नहीं थी। इस फर्जीवाड़े के खिलाफ दंग रह गए उधम सिंह नगर प्रशासन ने मुकदमा दर्ज करा दिया है।
डी एफ ओ तराई पूर्वी वन प्रभाग 29 मणि त्रिपाठी का कहना है कि इस जमीन से संबंधित सैटेलाइट मैप और अन्य अभिलेख राजस्व विभाग को उपलब्ध करा दिए गए हैं इस जमीन पर जंगल है एसएसपी सदानंद दाते ने बताया कि आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है।
यह है पूरा मामला
सितारगंज के कुलदीप सिंह तथा साथ के अन्य लोगों ने वर्ष 2009 के सहायक अभिलेख अधिकारी, सितारगंज के नाम का एक फर्जी आदेश बना लिया था कि इस भूमि पर यह लोग साथ 70 साल से काबिज है लिहाजा यह भूमि इनके नाम चढ़ा दी जाए।
उस फर्जी आदेश को आधार बना उत्तराखंड उच्च न्यायालय में वनविभाग को पक्षकार बनाए बिना इस वर्ष में दो बार केस फ़ाइल कर उच्च न्यायालय की डबल बैंच से 27 जून 2018 को जिलाधिकारी उधमसिंह नगर को तीन माह के अंतर्गत प्रकरण को निस्तारित करने का निर्देश करवा लिया। वनविभाग को इस केस में पक्षकार न बनाए जाने से इस फर्जीवाड़े की वन विभाग को कानों-कान भनक तक नहीं लगी।
मामला तब पकड़ में आया जब कुछ दिन पूर्व वन विभाग के अधिकारियों को एसडीएम सितारगंज द्वारा आख्या मांगी जाने पर उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बारे मे पता चला।
फिर तो पूरे विभाग में हडकंप मच गया। आनन–फानन में विभाग इस मामले की पड़ताल में जुट गया। वन विभाग द्वारा जब सम्बंधित वन प्रभाग के कोर्ट सेल से 2009 के सहायक अभिलेख अधिकारी, सितारगंज के आदेश से सम्बंधित अभीलेख मांगे गये, जिसे उच्च न्यायालय में आधार बनाया गया था, तो पता चला कि ऐसा कोई केस संबंधित वन प्रभाग के अभिलेखों में उपलब्ध ही नही है। और न ही विभाग को सहायक अभिलेख अधिकारी से कोई नोटिस ही मिला था।
तब किसी तरह पहले वन विभाग ने 2009 के सहायक आभलेख अधिकारी, सितारगंज के नाम वाले आदेश की कॉपी हासिल की, जिसमें ऊधमसिंह नगर के सितारगंज तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले ध्यानपुर ग्राम की लगभग 64 हेक्टेयर वन भूमि को लगभग 46 लोगों के नाम राजस्व विभाग के अभिलेखों में दर्ज करने का आदेश दिया गया था।
सहायक आभलेख अधिकारी का कहना था कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय इन लोगों के पूर्वज विस्थापित होकर इस स्थान पर आ गये थे, जिन को भारत सरकार द्वारा कृषि कार्य हेतु वर्ष 1950 मे ध्यानपुर ग्राम में भूमि आवंटित की गई थी, किन्तु उस वक्त अपीलकर्ता के पूर्वजों ने राजस्व विभाग के अभिलेखों में अपना नाम दर्ज नही करवाया। वर्ष 1950 से आज तक ये लोग इस भूमि पर काबिज हैं, अतः उक्त 64 हेक्टेयर भूमि को इन लोगों के नाम पर राजस्व विभाग के अभिलेखों में दर्ज कर लिया जाये।
सहायक आभलेख अधिकारी का यह आदेश अपने आप मे वन संगरक्षण अधिनियम का घोर उल्लंघन था, क्यों कि सहायक अभिलेख अधिकारी के पास वन भूमि के संदर्भ में इस प्रकार का आदेश पारित करने का अधिकार ही नहीं है। जब इस संबंध में वन विभाग ने राजस्व विभाग से संपर्क किया तो तब जाकर पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि उक्त केस तो पूरी तरह फ़र्ज़ी है। यानी इस तरह का कोई भी केस राजस्व विभाग के समक्ष कभी आया ही नहीँ ।
इस विषय मे वन विभाग की पड़ताल में जो तथ्य सामने आये वो न केवल वन विभाग बल्कि प्रशासन के भी पैरों तले ज़मीन खिसकाने को काफी हैं।
सूत्रों के मुताबिक अब इस बारे में पता चलने से प्रशासन पूरी तरह हरकत में आ चुका है। संभवतः आज कुछ गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं।