इंद्रजीत असवाल,पौड़ी गढ़वाल
पौड़ी गढ़वाल के धुमाकोट तहसील के जामून गाँव को देखकर लगता है कि ये गाँव भारत के नक्शे में ही नही होगा।
न तो इस गाँव में बिजली है, न पानी, न ही रास्ते बने हैं। ब्रिटिश काल में जो रास्ते इस गाँव के लिए बने थे, उनको अब टाइगर रिजर्व ने बंद कर दिया है, जिससे अब गाँव पूरी तरह से बंधक हो गया है। गाँव वालों से गांव में जाने के लिए 250 रुपये वसूले जाते हैं। जिस रास्ते गाँव वाले कभी बैल गाड़ी लेकर जाते थे, उसे अब वन विभाग ने जेसीबी से खोदकर बंद कर दिया है। वन विभाग की इस करतूत से ऐसा लगता है कि इससे बेहतर तो ब्रिटिश राज ही ठीक था, कम से कम अपने घर में जाने के लिए मोटी धनराशि तो नहीं चुकानी पड़ती थी।
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इसी गाँव के युवा अजय भदोला का कहना है कि उनके द्वारा मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री सहित सभी विभागों को सूचित किया जा चुका है परंतु किसी ने भी उनकी मदद नही की।
अजय भदोला जिनकी यहां पर पैतृक संपत्ति है, उनके रिश्तेदारों को तक उनके गांव नही जाने दिया जाता।
जबकि इसी पार्क के अंदर एक रेस्टोरेंट चल रहा है, किसी बाहरी व्यक्ति का तो उनके यहाँ पर्यटकों को भी जाने दिया जाता है।
इसी संबंध में जब मीडिया के द्वारा डायरेक्टर वन विभाग रामनगर से पूछा गया तो उनका कहना था कि कोर्ट का आदेश है कि बाहरी लोगों व निजी गाड़ियों को पार्क के अंदर नही जाने दिया जाता है। लेकिन उक्त जगह पर बाहरी लोगों की गाड़ियां व कई बाहरी लोग मौजूद रहते हैं।
सवाल बनता है कि एक तरफ सरकार कहती है कि पलायन रोको वही इस गांव के लोगों को जबरदस्ती पलायन करने को वन विभाग मजबूर कर रहा है।
गाँव वालों को गाँव में पहुंचने के लिए नदी को बांस के डंडों की नाव से तैरकर जाना पड़ता है।
गाँव की मूलभूत सुविधाओं के बारे मे जब ग्राम सभा प्रधान से व उनके पति से पूछा गया तो उनका कहना था कि उस गाँव की जनसंख्या कम है, इसलिए उस गाँव में कोई भी विकास कार्य नही हुआ है।
अब प्रश्न उठता है कि यदि किसी गाँव की जनसंख्या कम हो तो उनके लिए कोई भी सरकारी सुविधाएँ नही है
इस गाँव की स्थिति देखकर लगता है कि ये गांव शायद भारत के नक्शे में नही है।
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