सचिवालय के उच्चाधिकारियों की शह पर लोक निर्माण विभाग में भर्ती में हुआ एक घोटाला सामने आया है।
इसकी पोल तब खुली जब अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने लोक सेवा आयोग को नीरज कुमार त्रिपाठी नाम के अफसर का पदोन्नति हेतु जो अधियाचन भेजा उसके दस्तावेजों और अभिलेखों तक में भी कूट रचना की गई थी।
आखिर नीरज कुमार त्रिपाठी ने किसकी शह पर अपने दस्तावेजों और अभिलेखों में कूट रचना की है और इसमें लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियंता तथा विभाग अध्यक्ष ने भी अपनी संस्तुति दी है। जाहिर है कि अधिकारियों के संज्ञान में यह फर्जी दस्तावेज अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों ने भी कई बार लाए लेकिन ओमप्रकाश से लेकर प्रमुख अभियंता तथा विभागाध्यक्ष आखिर क्यों आंखें मूंदे रहे यह एक बड़े सवाल खड़े करता है !!
नीरज कुमार त्रिपाठी मूल रूप से कहां का रहने वाला है और इसको इतना संरक्षण क्यों दिया जा रहा है, यह एक गहन जांच का विषय है।
यह तक जाने के लिए पहले आपके सम्मुख दो तथ्य रखे जा रहे हैं।
पहला तथ्य यह है कि
पर्वतजन के पास उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार नीरज कुमार त्रिपाठी नाम का व्यक्ति 26 दिसंबर 2005 से लेकर 8 मई 2012 तक ग्रामीण अभियंत्रण सेवा विभाग में कार्यरत था त्रिपाठी पहली बार राजकीय सेवा में वर्ष 2005 में ही आया था।
दूसरा तथ्य यह है कि
लोक सेवा आयोग द्वारा पीडब्ल्यूडी में वर्ष 2002 में एक लिखित परीक्षा आयोजित की गई थी, जिसके साक्षात्कार 2003 में हुए थे, किंतु यह भर्तियां कोर्ट केस में फंसने के कारण वर्ष 2012 में जाकर क्लियर हो पाई।
अब आते हैं असली कहानी पर
नीरज कुमार त्रिपाठी नाम के व्यक्ति ने पीडब्ल्यूडी में भी परीक्षा दी हुई थी और पीडब्ल्यूडी मे भी इनका सिलेक्शन हो गया था। नीरज त्रिपाठी उस समय आरईएस कर्णप्रयाग में तैनात थे।
अब पहला कारनामा जनाब ने क्या किया कि 8 मई 2012 को पूर्वाहन में कर्णप्रयाग से कार्यमुक्त हुए और 8 मई 2012 को उसी दिन पूर्वाहन में ही प्रांतीय खंड लोक निर्माण विभाग देहरादून में अपना योगदान दे दिया। अब भला बताइए कि कर्ण प्रयाग से देहरादून पूर्वाहन में ही कैसे कोई रिलीव हो करके जॉइन कर सकता है। अगर कोई कार्यालय 10:00 बजे भी खुलकर तुरंत इनको रिलीव भी कर देता तब भी पूर्वाहन 1:00 बजे से पहले किसी भी हालत में कर्ण प्रयाग से देहरादून नहीं आया जा सकता। जाहिर है कि यह सेटिंग उन्होंने अपनी सीनियरिटी बनाने के लिए की और इसमें अन्य अधिकारियों की भी भूमिका है।
दूसरा किस्सा देखिए कि नीरज कुमार त्रिपाठी ने अपने कार्यालय में सेटिंग करके अपने पूर्व विभाग में की गई सेवा (सीसीएस रेगुलेशन के नियम 422 पेंशन लाभ तथा वित्तीय हस्त पुस्तिका के नियम 22 सी वेतन संरक्षण के अंतर्गत) जुड़वा ली। जिसके अंतर्गत केवल पेंशन तथा वेतन संरक्षण का लाभ प्रदान किया जाता है। अब भला पिछले विभाग में की गई सेवा दूसरे विभाग में कैसे जुड़ सकती है ! लेकिन उच्चाधिकारियों का संरक्षण है तो सब कुछ संभव है। जिस समय अनुसार त्रिपाठी ने अपनी सेवाएं जुड़ा दी थी उससे पहले पेंशन स्कीम खत्म हो चुकी थी लेकिन त्रिपाठी ने सेटिंग से अपनी पेंशन भी बरकरार रखी है।
तीसरा किस्सा सुनिए। त्रिपाठी ने अपने कार्यालय में सेटिंग करके बिना विभागीय प्रशिक्षण अथवा विभागीय परीक्षा पास किए ही स्वयं को विभाग में स्थाई प्रदर्शित कर दिया और प्रथम द्वितीय एसीपी के तहत 5400 ग्रेड पर वेतन भी प्राप्त कर दिया, जबकि बिना विभागीय प्रशिक्षण परीक्षा पास किए विभाग में स्थाई होना संभव ही नहीं था। यह घोर वित्तीय अनियमितता ही नहीं बल्कि विभागीय राजकोष की भी खुली लूट है।
लीजिए चौथा कारनामा भी हाजिर है। नीरज त्रिपाठी ने जब इतनी सेटिंग कर दी तो इसके बाद नीरज त्रिपाठी ने अपने पूर्व विभाग में की गई सेवा अवधि पदोन्नति के लिए भी जुड़वा ली। इस कार्य में जाहिर है कि लोक निर्माण विभाग से लेकर शासन में तैनात अधिकारियों का भी खुला संरक्षण प्राप्त था।
उत्तराखंड शासन को भेजे गए पदोन्नति के प्रस्ताव में पीडब्ल्यूडी के अनुभाग अधिकारी संदीप जोशी ने नीरज त्रिपाठी की लोक निर्माण विभाग में प्रथम नियुक्ति की तिथि ही बदल दी। आप यहां दिए गए दस्तावेजों में साफ देख सकते हैं कि कृपा की वर्ष 2005 से 2010 तक ग्रामीण अभियंत्रण सेवा में ही कार्यरत था।
फिर भला उसने खुद को वर्ष 2002-3 से चल रही पीडब्ल्यूडी की नियुक्ति प्रक्रिया में कैसे दिखा दिया जबकि तब वह अभियंत्रण सेवा में भी नहीं था।
त्रिपाठी ने विभाग में अपनी प्रथम नियुक्ति तिथि 26-12-2005 दर्शा दी और पीडब्ल्यूडी के प्रमुख अभियंता से साइन करवा कर फाइल फरवरी 2018 में शासन को भेज दी गई।
शासन में अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने पदोन्नति का अधियाचन लोक सेवा आयोग को भेज दिया और वर्तमान में स्थिति यह है कि नीरज कुमार त्रिपाठी की पदोन्नति अपर सहायक अभियंता से सहायक अभियंता सिविल के पद पर करवाई जा चुकी है।
सवाल यह है कि इन चार कारनामों से रूबरू होने के बाद भी हमारे पाठक क्या सोचते हैं। इनके कारनामे से जिनका हक मारा गया होगा उन पर क्या गुजरती रही होगी।
त्रिपाठी ने अधिकारियों को ऐसा क्या पाठ पढ़ाया है कि शासन मे चीफ ओमप्रकाश से लेकर विभागीय चीफ उप्रेती तक इसके काले कारनामों को संरक्षण दे रहे हैं।
क्या यही है त्रिवेंद्र सरकार का जीरो टोलरेंस !!