सुरा उत्पादन की दिशा : आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
मुकेश प्रसाद बहुगुणा
संतों,
मुझे यह जानकर दारुण हर्ष होता है कि अपुन की देवभूमि अब सुरा के मामले में स्वावलंबी होती जा रही है, अब हम सुरा आपूर्ति के लिए हरियाणा के मोहताज नहीं रहेंगे।
स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की इस अभूतपूर्व उपलब्धि के लिए मैं राज्य की समस्त जनता को बधाई देते हुए सभी नीति-नियंताओं को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहता हूं।
मुझे यह देखकर अत्यंत विकट प्रसन्नता भी होती है कि देव अर्थात सुर भूमि में सुरा उत्पादन के लिए पतित पावनी भागीरथी एवं अलकनंदा का संगम स्थान-देवप्रयाग चुना गया है। मां गंगा के पवित्र जल के साथ सुरापान करने से भक्तों का न सिर्फ इहलोक सुधरेगा, अपितु परलोक भी धन्य होगा, ऐसा मुझे विश्वास है।
अहो, क्या भव्य दृश्य होगा जब संगम तट पर हो रही सायंकालीन आरती के घंटे-घडिय़ाल और वैदिक मंत्रों के स्वर के साथ जाम से जाम टकराए जाने की मधुर ध्वनि की संगति होगी। नि:संदेह हिमालय के शिखरों से आती ठंडी हवा वातावरण की मादकता में वृद्धि करेगी और भगीरथ सहित सभी ऋषि-मुनियों की आत्माएं अपनी संतति को भक्ति के मद में झूमते हुए देखेंगी…. अहा.. अलौकिक होगा यह दृश्य… अहा.. धन्यास्ति ते भारत भूमि भागे… अहा.. अहा।
सिर्फ एक छोटी सी शिकायत है। वह यह कि एक सच्चा संस्कारी हिन्दू होने के नाते मुझे यह कदापि सहन नहीं होता कि हम विदेशी नामों का प्रयोग करें। हिल टॉप मलेच्छ भाषा का शब्द है, जो कि मेरे जैसे अनेकों संस्कारी एवं संस्कृति प्रेमी शराबियों के लिए सर्वथा धर्मविरुद्ध है- भाषा विरुद्ध है- संस्कारहीनता है, अत: सब विधि से त्याज्य है। मेरे जैसे सभी धार्मिक व्यक्ति स्वप्न में भी मलेच्छ भाषायुक्त सुरा का पान करने की बजाय निम्बू की शिकंजी पीना पसंद करेंगे।
अत: हे संतों, धर्म और संस्कृति की मर्यादा बनाए रखने के लिए विनम्र दंडवत निवेदन है कि तत्काल इस दैवी सुरा का नाम ‘शैल शिखर’ रख दिया जाय, ताकि पूरे विश्व (खासतौर से मलेच्छ आंग्लजनों) को यह संदेश स्पष्ट रूप से मिल जाय कि हम ही विशुद्ध जगतगुरु हैं।
हे संतों, सुरा के साथ ‘संगम क्षार (सोडा)’, ‘पवित्र नमकीन’, ‘वैदिक चखना’, ‘स्वदेशी जड़ी बूटी युक्त धूम्रदण्डिका’ आदि जैसी ठोस, द्रव एवं वायु जैसी वस्तुओं के उत्पादन की भी समुचित व्यवस्था हो जाय तो विकास को ऐसे चार चाँद लग जाएंगे, जहां राज्य की जनता को चाँद के साथ दिन में तारे भी दिखने लगेंगे। सुझाव है कि इस पुनीत कार्य के लिए ‘देवभूमि सुरा आयोग’ और ‘संस्कारी शराबी परिषद्’ का गठन भी शीघ्र ही किया जाए। अध्यक्ष चाहे जिसे बना देना, सचिव पद के लिए मैं अपनी निस्वार्थ सेवायें देने के लिए तैयार रहूंगा। सचिव बनते ही अपने सभी सालों को इनका सदस्य नामित कर दूंगा। (मैं यहां यह बताना आवश्यक समझता हूं कि मैं बचपन से सभी सालों को आयोग और परिषदों का सदस्य बनाने का घोर समर्थक भी रहा हूं)।
और हे संतों, विकास के इस अद्भुत-अलौकिक प्रयास में दस-बीस स्कूल-अस्पताल बंद भी करने पड़ जाएं तो भी कोई हर्ज नहीं।