उत्तराखंड बनने से पहले भी यहां के कई बेरोजगार अन्य प्रदेशों के होटलों में बर्तन धोने की नौकरी करते थे और अब भी युवाओं के लिए कोई संरक्षण न होने के कारण युवाओं के लिए पीसीएस का मतलब “पाॅट क्लीनिंग सर्विस” बना हुआ है। इसी के लिए वह ज्यादा पलायन कर रहे हैं।
उत्तराखंड राज्य अलग बनाए जाने का एक मात्र उद्देश्य था कि हमारी आने वाली पीढ़ी को रोजगार देने के साथ-साथ एक मजबूत अर्थव्यवस्था दी जा सके लेकिन इस राज्य में बेरोजगारों के साथ ही सबसे बड़ा खिलवाड़ हो रहा है तो भला अलग राज्य का औचित्य क्या है !!
हाल ही में उच्च न्यायालय ने समूह ग की भर्तियों में राज्य के सेवायोजन कार्यालय में पंजीकृत होना आवश्यक न मानते हुए इन पदों पर आवेदन के लिए देशभर के युवाओं के लिए उत्तराखंड में नौकरी के द्वार खोल दिए हैं।
यह यहां के स्थानीय युवाओं के साथ बहुत बड़ा मजाक है।सरकार की न्यायालय में कमजोर सरकार की न्यायालय में कमजोर पैरवी और उदासीन रवैए के चलते आज अन्य प्रदेशों की युवाओं के लिए भी उत्तराखंड में नौकरी के अवसर पैदा कर दिए हैं। वहीं दूसरी ओर सरकार प्रदेश में समूह ग के ही कुछ पदों को राजपत्रित घोषित करके बेरोजगारों में रोष उत्पन्न कर दिया है और अन्य समकक्ष कर्मचारियों के लिए भी आंदोलन का, हड़ताल करने का रास्ता बना दिया है।
जाहिर है कि राजपत्रित पदों के लिए भी भर्ती अखिल भारतीय स्तर पर होगी तो यहां के बेरोजगार युवाओं के साथ बहुत बड़ा मजाक किया जा रहा है।अधीनस्थ पदों पर भर्ती की प्रक्रिया को हर रोज बदला जा रहा है।
अन्य राज्यों में स्थानीय को प्राथमिकता
गौरतलब है कि अन्य राज्यों जैसे कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र मे अधीनस्थ पदों पर भर्ती के लिए उन्ही प्रदेश के युवाओं को अवसर दिया जाता है।
महाराष्ट्र में मराठी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य अहर्ता में रखा गया है।
राजस्थान में भी pcs के पदों पर अनिवार्य योग्यता राजस्थानी संस्कृति को रखा गया है ।।
हिमाचल में वांछित क्वालिफिकेशन भी वहां के बेरोजगारों के दृष्टिगत रखी गयी है एकदम सटीक है उत्तराखंड के लिए इसे उत्तराखंड में भी अपनाया जाना चाहिए ।।
महाराष्ट्र का भाषा ज्ञान जरूरी
अधीनस्थ सेवाओं के अतिरिक्त पीसीएस के पदों पर राज्य के बेरोजगारों को प्राथमिकता देने के लिए वहां की स्थानीयता, भाषा बोली, संस्कृति व भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार कार्य किए जाने के लिए विषय, ज्ञान और मूल निवासी को अधिमानी अर्हता अथवा आवश्यक अहर्ता में रखा गया है।
हिमाचल का लोकल ज्ञान जरूरी
जिसके फलस्वरूप राज्य लोक सेवा आयोग में बाहरी राज्यों के युवाओं को व्यवहारिक , परंपरागत रुप से कुछ ही फीसदी चयनित किया जाता है। लेकिन उत्तराखंड में सरकार का कमजोर प्रशासन और प्रबंधन तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का असर यहां के युवाओं को भुगतना पड़ रहा है।
राजस्थान का ज्ञान जरूरी
यह कृत्य सरकार को गुमराह किया हुआ लगता है।
क्योंकि कोई भी सरकार व्यापक रूप से बे-रोजगारी से पीड़ित राज्य के नौजवानों के साथ इस प्रकार का जन विरोधी कदम नही उठा सकती।
यूपी में भी मांगते हैं मूल निवास
कदाचित यह कृत्य वास्तविक तथ्यों को छुपाकर सरकार की छवि खराब करने की नियति से अन्य राज्यों के कर्मचारियों द्वारा सरकार को गुमराह कर कराया गया निर्णय है।
और ये अन्य राज्यों के सचिवालय /आयोग में तैनात अधिकारी/कर्मचारी इस कृत्य को अंजाम देने में लगे हुये हैं। जब से समीक्षा अधिकारी को सिर्फ उत्तराखण्ड के मूल निवासी अभ्यार्थियों हेतु किया गया है तब से वे लोग इसी उधेड़बुन में लगे हुए हैं।
क्योंकि 18 साल से pcs के पदों पर राज्य के युवा बेरोजगारों को प्राथमिकता दिए जाने का कोई प्रावधान ही नही रखा गया है। जबकि अन्य प्रदेशों में यह सब व्यवस्था है। जब अन्य प्रदेशों में pcs के पदों पर यह व्यवस्था रखी गयी है तो समूह ग में तो 100% राज्य के बेरोजगार को ही परीक्षा हेतु योग्य होना चाहिए जैसा कि सभी राज्यो में व्यवस्था विद्यमान है।
समूह ग के पदों पर तो अधीनस्थ चयन आयोग के अंतर्गत भर्ती की जाती है, अन्य कतिपय राज्यो में तो pcs के पदों पर राज्य के बेरोजगार मूल निवासियों को pcs के परीक्षा में प्राथमिकता देने हेतु इस तरह के प्रावधान किए गए है। परंतु इस राज्य के नीति निर्धारकों को कौन समझाए यही व्यथा है।