उत्तराखंड के मुख्यमंत्री आजकल पत्रकारों के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। यही कारण है कि खुद सीएम की विधानसभा में ही कोतवाल ओमवीर सिंह रावत दैनिक हिंदुस्तान अखबार के संवाददाता संजय शर्मा की तहरीर पर भी मुकदमा दर्ज करने को राजी नहीं।संजय शर्मा उत्तराखंड श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के पूर्व अध्यक्ष हैं। 2 दिन बाद भी तहरीर पर कोई कार्यवाही ना होने के बाद थाने पहुंचे संजय शर्मा से कोतवाल ओमबीर ने उल्टे इतनी अभद्रता कर दी कि उन्हें बीपी हाई होने के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
यह था मामला
हुआ यह कि एक नवंबर को नितिन गोला नाम के व्यक्ति ने खुद को वकील और कांग्रेस का नेता बताते हुए संजय शर्मा को धमकी दी कि या तो पत्रकारिता छोड़ दे अथवा गोली मारकर जान से मार दूंगा।
संजय शर्मा ने तत्काल डोईवाला कोतवाली में इसकी तहरीर दे दी किंतु कोतवाल तहरीर दबा कर बैठ गया। जब नितिन गोला से धमकी देने का कारण जानने के लिए फोन किया गया तो उनका फोन स्विच ऑफ था। डोईवाला पत्रकार यूनियन के अध्यक्ष राजेंद्र वर्मा और महामंत्री प्रीतम वर्मा ने भी पुलिस से कार्यवाही करने की मांग की है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों संजय शर्मा को उनके मोबाइल पर कांग्रेस के एक छुट भैया नेता ने धमकी दी थी, इससे पत्रकारों में काफी रोष था और उन्होंने विरोध प्रदर्शन भी किया तथा थाने में जाकर तहरीर भी दी लेकिन मुख्यमंत्री की विधानसभा का एक बदनाम कोतवाल सीएम का इतना सर चढ़ा है कि तहरीर पर मुकदमा लिखने को राजी नहीं।
पत्रकारों ने उसे तहरीर पर मुकदमा दर्ज करने को कहा तो उसने यह कहते हुए मना कर दिया कि ऐसे में वह कांग्रेसी नेता से भी एप्लीकेशन ले लेगा और क्रॉस मुकदमा दर्ज कर देगा।
इस मामले में पत्रकारों ने उप जिला अधिकारी को भी कार्यवाही करने के लिए ज्ञापन सौंपा लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात है।
इस घटना को 3 दिन हो गए हैं लेकिन सवाल यह है कि इस कोतवाल का आखिर सैयां कौन है जो एक तहरीर पर मुकदमा तक दर्ज करने को राजी नहीं। मुकदमा दर्ज करना तो दूर कल 3 नवम्बर को जब पत्रकार दोबारा से कोतवाल से इस मामले पर कार्यवाही करने को कहने गए तो कोतवाल ने उल्टा पत्रकार संजय शर्मा से ही अभद्रता कर दी।
नतीजा यह हुआ कि पत्रकार को ब्लड प्रेशर हाई होने के कारण अस्पताल में दाखिल होना पड़ा। हालांकि आज संजय शर्मा की छुट्टी कर दी गई है।
फिर भी यह सवाल जरूर जनता के बीच में चर्चा का विषय है कि इतने पापड़ बेलने के बाद भी एक पत्रकार और उनका संगठन एफआईआर दर्ज नहीं करा सकता तो जनता की सुनवाई आखिर कहां होगी! यह उदाहरण प्रदेश की वीवीआइपी विधानसभा में कानून व्यवस्था की स्थिति को आइना दिखाने के लिए काफी है।