चारधाम विकास परिषद में होने वाले तमाम खर्चों और इस परिषद की उपयोगिता की तुलना करने पर ऐसे तमाम विभागों के औचित्य पर सवाल खड़े हो गए हैं।
कुमार दुष्यंत
नेताओं द्वारा राजकोष को चूना लगाने की घटनाएं तो सामने आती रहती हैं, लेकिन इस काम में अब राजनीति में प्रवेश पा चुके साधु-संतों ने भी महारथ हासिल कर ली है। चारधाम विकास परिषद में उपाध्यक्ष रहे सुबोधानंद ब्रह्मचारी ने कुछ ऐसा ही कमाल कर दिखाया है। उन्होंने तीन साल के अपने कार्यकाल में बिना हिले-डुले ही अपने वाहन पर सात लाख रुपए खर्च कर डाले। सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने परिषद में अपनी उपयोगिता साबित किए बिना ही वेतन-किराए मद में भी शासन से १० लाख रुपए वसूलने में भी गुरेज नहीं किया। सुबोधानंद ब्रह्मचारी को विजय बहुगुणा सरकार ने पर्यटन एवं चारधाम विकास परिषद् का उपाध्यक्ष बनाया था। वे दिसंबर 16 तक इस पद पर रहे। इन तीन सालों में अकेले वाहन मद में ही उन्होंने सात लाख रुपए खर्च डाले और ये कारनामा उन्होंने चारधाम विकास परिषद् में बिना अपनी कोई उपयोगिता सिद्ध किए ही कर डाला।
सुबोधानंद ब्रह्मचारी शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के वैयक्तिक सहायक हैं। स्वरूपानंद सरस्वती महाराज को कांग्रेसी संत माना जाता है और केंद्र से लेकर प्रदेश तक सभी शीर्ष कांग्रेसी नेता उन्हें शीश नवाते हैं। संभवत इसी वजह से सुबोधानंद महाराज को चारधाम विकास परिषद् में उपाध्यक्ष बनाया भी गया होगा, लेकिन अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में सुबोधानंद महाराज ने परिषद को कभी कोई सुझाव नहीं दिया, क्योंकि वयोवृद्ध स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती निरंतर भ्रमण पर रहते हैं। इसलिए स्वामी सुबोधानंद को भी प्राय: शंकराचार्य जी के साथ ही रहना पड़ता है। जिसके कारण सुबोधानंद को मिला हुआ परिषद का वाहन अधिकांश समय शंकराचार्य के हरिद्वार में कनखल स्थित आश्रम पर ही खड़ा रहा, लेकिन इसके बावजूद यह वाहन न केवल ईंधन पीता रहा, बल्कि इसकी मरम्मत पर भी ठीकठाक खर्चा किया जाता रहा।
ये हैरत की बात है कि चारधाम विकास परिषद् का ये वाहन खड़े-खड़े ही सात लाख रुपये हजम कर गया, जबकि इतनी धनराशि से ऐसा ही नया वाहन खरीदा जा सकता था। उपाध्यक्ष महोदय के खर्चों पर इसलिए भी उंगली उठ रही है, क्योंकि उन्होने परिषद् के हित में बिना कोई काम किये ही विभिन्न मद में शासन के करीब १७ लाख रुपए ठिकाने लगा दिए। सुबोधानंद महाराज ने हरिद्वार स्थित शंकराचार्य जी के आश्रम में ही अपना कार्यालय भी बनाया, जिसमें वह आमतौर पर शंकराचार्य जी के साथ ही आया करते थे। शंकराचार्य जी के न होने पर प्राय: यह आश्रम खाली ही रहता है, लेकिन उपाध्यक्ष महोदय ने १० हजार रुपए प्रति माह के हिसाब से सरकार से, यहां दिखाए गए अपने कार्यालय का किराया भी वसूला।
सुबोधानंद महाराज ने शासन पर एक और ज्यादती की। चारधाम विकास परिषद् के उपाध्यक्ष के लिए निजी सहायक अनुमन्य न होने के बावजूद उन्होंने आश्रम के ही अपने सहायक श्रवणानंद ब्रह्मचारी को उपाध्यक्ष के रूप में अपना निजी सहायक दर्शाते हुए सात हजार प्रति माह के हिसाब से करीब साढे तीन लाख रुपए उसके वेतन के रूप में भी वसूल लिए।
जगतगुरू स्वामी स्वरूपानंद महाराज द्वारका एवं ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य हैं। अपनी व्यस्तता के कारण वह यदा-कदा और कुछ दिन के लिए ही हरिद्वार आते हैं। उनका अधिक समय भ्रमण में ही व्यतीत होता है। सुबोधानंद वैयक्तिक सहायक होने के कारण सदैव शंकराचार्य जी के साथ रहते हैं। इन परिस्थितियों में उनका चारधाम विकास परिषद् की बैठकों में भाग लेना वैसे भी संभव नहीं। विभागीय जानकारी भी उनकी निष्क्रियता सिद्ध करती है। बावजूद इसके उनके द्वारा चारधाम विकास परिषद् की गतिविधियों के नाम पर १७ लाख रुपए ठिकाने लगा देना संदेह पैदा करता है।