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पटरी पर लौटने लगी जिंदगी

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आपदा के दौरान बुरी तरह टूट चुके ग्रामीणों में मानव भारती संस्था ने न सिर्फ जीने की आस जगाई, बल्कि उन्हें आधुनिक खेती और अन्य रोजगारपरक प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनने में मदद की

भूपेंद्र कुमार

एक समय वह था, जब आपदा में अपनों को खो चुके लोगों के सामने जीने का मकसद ही खत्म हो चुका था। उन लोगों को मानसिक अवसाद ने घेरना शुरू कर लिया था। ऐसे समय में श्रीजन परियोजना ने मनोवैज्ञानिकों से कई बार की इन लोगों की काउंसलिंग कराई, तब जाकर वे लोग सामान्य हो पाए।
श्रीजन ने आपदा में सब कुछ खो चुके इलाकों के पुनर्निर्माण का अभियान चलाया। भूकंपरोधी तकनीक पर आधारित भवन बनाए। प्रभावितों की आजीविका के लिए स्थायी संसाधन उपलब्ध कराए और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बनाया। श्रीजन ने लोगों को स्वरोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका से जुड़े हर मुद्दे की जानकारी उपलब्ध कराई।
आपदा के अंधेरे में उम्मीदों की रोशनी बनी श्रीजन
आपदा प्रभावितों की मदद करने के लिए गेल इंडिया और मानव भारती की श्रीजन परियोजना के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। श्रीजन ने आपदा प्रभावित परिवारों के दीर्घगामी और स्थाई पुनर्वास का जिम्मा संभाला है। आपदा के बाद आजीविका के संसाधन जुटाना इस परियोजना के माध्यम से ही पूरे हो पाए हैं।

मालदेई देवी को बनाया आत्मनिर्भर

मालदेई देवी रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लाक स्थित बुटोलगांव की है। 2013 की आपदा में मालदेई देवी की खेती की अधिकांश जमीन बह गई थी। पांच सदस्यों वाला परिवार, जिसमें पति, सास और दो बच्चे हैं, के सामने बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया। उनका परिवार बेघर हो गया था, लेकिन मालदेई ने हिम्मत नहीं हारी। मानव भारती सोसाइटी की श्रीजन परियोजना ने हर कदम पर उनको सहयोग किया। उन्होंने परिवार के सहयोग से पशुपालन और सब्जियों की खेती शुरू की। श्रीजन परियोजना की टीम ने उनको कंपोस्ट और कंपोस्ट पिट बनाने की ट्रेनिंग दी और उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए। मालदेई देवी को उन्नत नस्ल की हाइब्रिड गाय उपलब्ध कराई। मालदेई देवी रोजाना 35 रुपये प्रति किलो के हिसाब से चार किलो दूध बेच रही है। उनको हर माह लगभग 4 हजार की आमदनी हो रही है। श्रीजन परियोजना ने उनकी गाय का तीन साल का बीमा भी कराया है।

10 हजार आपदा प्रभावितों का सहारा श्रीजन

श्रीजन परियोजना की शुरुआत जनवरी 2014 में रुद्रप्रयाग जिले के दस गांवों में हुई। श्रीजन परियोजना ने 4 हजार लोगों को सीधे तौर पर राहत पहुंचाई और १० हजार से ज्यादा लोगों को अप्रत्यक्ष तौर पर लाभ हासिल हुआ। श्रीजन ने 93 लोगों की प्रोफेशनल साइकोलॉजिस्ट से काउंसलिंग उपलब्ध कराई। शुरुआत उन 9 महिलाओं की काउंसलिंग से हुई, जिनका आपदा में मौत से सामना हुआ था। इनमें आठ महिलाओं के पति आपदा में मारे गए थे। एक महिला वो थी, जिनके दो बेटों की आपदा में मौत हो गई थी। आपदा प्रभावित परिवारों के 32 स्कूली बच्चों के लिए काउसलिंग के कई सत्र आयोजित कराए गए।

श्रीजन से ट्रेनिंग मिली, बना रहे भूकंपरोधी भवन

श्रीजन परियोजना ने डिजास्टर प्रूफ कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी की ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए। अब तक 119 लोग इसका लाभ उठा चुके हैं। आपदा प्रभावित इलाकों के 17 राजमिस्त्रियों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम के साथ ही फील्ड में व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया गया। यही कारण है कि अब स्थानीय लोग निर्माण में भूकंपरोधी तकनीकी पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।

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जागरूकता से बढ़ी आपदा प्रभावितों की भागीदारी

श्रीजन परियोजना में उन परिवारों के लिए 12 मकान बनाए गए, जो सरकारी राहत की लिस्ट में शामिल नहीं किए गए थे। श्रीजन परियोजना की मदद से डिजास्टर प्रूफ मकान बनाकर दिए गए। ये घर उन राजमिस्त्रियों ने बनाए, जिनको श्रीजन की टीम ने ट्रेनिंग दी थी।

श्रीजन का डिजास्टर रिलीफ वाहन

श्रीजन परियोजना ने आपात स्थिति से निपटने के लिए डिजास्टर रिलीफ वाहन भी तैनात किया है, जो राहत सामग्री और अन्य जरूरी सामान के साथ हिमालय क्षेत्र में आपदा के मद्देनजर अतिसंवेदनशील इलाकों का दौरा कर सकेगा। इसको रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ स्थित संसारी गांव स्थित केंद्र पर तैनात किया है।

घर-घर पहुंचा जागरूकता अभियान

श्रीजन परियोजना की टीम ने इंफार्मेशन, एजुकेशन और कम्युनिकेशन (आईईसी) टूल्स के जरिये आपदा प्रभावित इलाकों में जागरूकता अभियान चलाए, जिनमें 63 वर्कशाप आयोजित की गई। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को लेकर चलाए अभियानों में 990 ग्रामीणों ने भाग लिया। इनको आपदा न्यूनीकरण प्रबंधन, ग्लोबल वार्मिंग, जल संरक्षण और आर्गेनिक फार्मिंग को लेकर जागरूक किया गया। आपदा की स्थिति में मदद के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है। जल्द ही आनलाइन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म होगा, जिस पर लोग एक दूसरे के संपर्क में रहकर सूचनाओं को साझा कर सकेंगे। वहीं दस गांवों में मॉक ड्रिल करके सजगता को परखा गया।

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शिक्षा की अलख जगाई

स्कूलों को लाइब्रेरी बनाने के लिए किताबें और अलमारियां उपलब्ध कराई गईं। अभी तक 40 स्कूलों को 4918 किताबें दी जा चुकी हैं। वहीं 28 स्कूलों में 747 स्कूल किट बांटी गईं। सात सरकारी स्कूलों को लाइब्रेरी बनाने के लिए सात अलमारियां उपलब्ध कराई गईं।

आपदा प्रभावितों कीआर्थिक सुधारी

श्रीजन की टीम ने ग्रामीणों को खेती के नई उन्नत तकनीकी से जोड़ा और युवाओं और महिलाओं को रोजगारपरक कौशल विकास ट्रेनिंग प्रोग्रामों को हिस्सा बनाया।

स्वयं सहायता समूहों के जरिए सुधार रहे आर्थिक स्थिति

स्वयं सहायता समूहों और सामाजिक सहभागिता ने श्रीजन परियोजना में प्रमुख भूमिका निभाई। क्षेत्र के 45 स्वयं सहायता समूहों में से 23 को स्वीकार कर लिया गया, जबकि परियोजना वाले इलाकों में 22 नये ग्रुप बनाए गए थे। अपने संसाधनों से छोटी-छोटी बचत और ऋण देने की व्यवस्था को स्थापित किया। ग्रुप का प्रत्येक सदस्य हर माह 50 रुपये की बचत कर रहा है। धीरे-धीरे ये समूह बचत और लोन देने का काम भी करने लगे। सभी समूहों ने अपने बैंक खाते खुलवा लिए हैं। पास बुकों, बैठकों की मिनट बुक व कैश बुक को व्यवस्थित किया जा रहा है। ये महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं और अब वे अपने फैसले खुद लेती हैं। वे माइक्रो फाइनेंस से जुड़कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं।

खेती के तरीके बदलने से आत्मनिर्भरता की ओर

स्किल डेवलपमेंट और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए गए, जिनका 2563 लोगों ने लाभ उठाया, जिनमें 1981 महिलाएं शामिल थी। इससे ग्रामीण भी आर्गेनिक खेती करने के लिए तैयार हो गए। आर्गेनिक खेती के तरीके जानने के लिए 166 ग्रामीणों ने श्रीजन परियोजना की ट्रेनिंग में भाग लिया। 76 ग्रामीणों को वर्मी कंपोस्ट और वर्मी वॉश का प्रशिक्षण दिया गया। इस इलाके में 247 वर्मी कंपोस्ट और वर्मी वॉश ड्रम बनाए गए। प्रत्येक यूनिट से प्रति सीजन में कम से कम 500 किलो आर्गेनिक खाद पैदा हुई। अब वर्मी कंपोस्ट ग्रामीणों की आय बढ़ाने वाला साधन बन गया है।
सब्जियों का उत्पादन: खाद्य ही नहीं,आर्थिक सुरक्षा भी
सब्जी उत्पादन की ट्रेनिंग में 70 ग्रामीण शामिल हुए। दस गांवों के 449 ग्रामीणों में हाइब्रिड सब्जी के बीज बांटे गए। सब्जी उत्पादन का फायदा यह हुआ कि आर्थिक रूप से कमजोर ग्रामीण परिवारों को पौष्टिक हरी सब्जियां खाने में मिलने लगी हैं। यदि अन्य स्वैच्छिक संस्थाएं भी रुचि लेकर कार्य करें तो यह पहाड़ फिर से हौसले के साथ खड़ा हो सकता है।

ढाई सौ परिवारों की रोजी बना जूस और बेकरी उत्पाद

पहाड़ की जलवायु माल्टा, बुरांश, संतरे आदि फलों के मुफीद है और इन फलों के जूस का उत्पादन आमदनी के शानदार अवसर के रूप में सामने आया। श्रीजन परियोजना की टीम ने 202 ग्रामीणों को बुरांश का जूस बनाने की ट्रेनिंग दी। 33 लोगों ने माल्टा का जूस निकालने का प्रशिक्षण लिया। 29 ग्रामीणों को बेकरी उत्पाद और जैम बनाने की ट्रेनिंग दी गई। ग्रामीणों ने अपनी दक्षता में वृद्धि करते हुए बेकरी उत्पादों बिस्कुट, ब्रेड, केक, पिजा आदि बनाने का तकनीकी ज्ञान हासिल किया। यह ट्रेनिंग पाकर वो खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए तैयार हो गए। 24 लोगों ने अचार बनाने की ट्रेनिंग ली। उसके बाद उन्होंने अचार, जैम, स्कवॉश और बेकरी उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग लेकर इसकी बिक्री शुरू कर दी है।

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युवतियों को आत्मनिर्भर बनाया

स्वयं सहायता समूहों में शामिल महिलाओं को क्राफ्ट और डिजाइन की ट्रेनिंग दी गई। 20 महिलाओं ने हैंडीक्राफ्ट और 74 ने डिजाइनिंग की ट्रेनिंग हासिल की। इन्होंने ज्वेलरी बनाना, हैंडीक्राफ्ट उत्पाद, लकड़ी, पत्थर और बांस की कारीगरी सीखी। ट्रेनिंग लेने वालों में ज्यादातर युवतियां थीं। इन युवतियों ने चाबी, मोबाइल, मिरर और चूडिय़ों के स्टैंड तथा फ्लावर पॉट व बैग बनाना सीखे। इन उत्पादों की सीआरटीसी के काउंटर पर सेल भी कराई गई। एक स्थानीय युवती हैंडीक्राफ्ट ट्रेनिंग प्रोग्राम से एक साल से भी अधिक समय तक नियमित रूप से जुड़ी रही। श्रीजन परियोजना में 35 युवतियों को ब्यूटी केयर की ट्रेनिंग दी गई। ऐसी युवतियां अपने खुद के पार्लर संचालित संचालित कर स्वरोजगार अपना सकती हैं।

स्वरोजगार के लिए महत्वपूर्ण

41 महिलाओं को दो माह की सिलाई की ट्रेनिंग दी गई, ताकि वे स्वरोजगार के माध्यम से आर्थिक रूप से निर्भर हो सकें। 96 महिलाओं को सैनिटरी नैपकीन बनाना सिखाया गया। 177 किशोरों को कंप्यूटर दक्षता की ट्रेनिंग देकर सर्टिफिकेट उपलब्ध कराए गए। 32 ग्रामीणों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया गया, जिनमें 27 महिलाएं शामिल थीं। डेयरी चलाने के इच्छुक 10 परिवारों को दस हाइब्रिड गाय दी गईं, ताकि दुग्ध उत्पादन करके आजीविका चला सकें। एक परिवार को पोल्ट्री फार्म बनाकर दिया गया।

सामुदायिक केंद्रों पर बहुआयामी गतिविधियां

आपदा प्रभावित इलाकों में स्थाई रूप से तीन सामुदायिक केंद्र चल रहे हैं। इन केंद्रों पर स्थानीय उत्पादों विभिन्न किस्म के अचार, बेकरी उत्पाद, स्कवाश, जैम, दस्तकारी का सामान, ज्वेलरी, ऊनी वस्त्र बनाकर बेचे जा रहे हैं। इसके लिए मार्केटिंग की व्यवस्था भी की गई है। स्थानीय स्तर पर इनको हाट व बाजार तथा पर्यटक रूटों से लिंकेज किया गया है।

वैकल्पिक ऊर्जा प्रमोशन

वैकल्पिक ऊर्जा को प्रमोट करने के लिए आपदा प्रभावित इलाकों मे 5 नये घराट बनाए गए हैं। ये घराट बाढ़ मे बह गए थे। घराट चलाने के लिए 111 लोगों को ट्रेनिंग दी गई है, जिनमें से 72 महिलाएं हैं। ये घराट कुछ घरों को बिजली भी देने लगे हैं।

धुआंरहित घरेलू ईंधन

आपदा वाले क्षेत्रों में 100 धुआं रहित चूल्हे बांटे गए। जिनके पास बीपीएल परिवारों और जिनके पास घरेलू गैस कनेक्शन नहीं थे, उनको ये चूल्हे दिए गए।
यदि अन्य स्वयंसेवी संस्थाएं भी श्रीजन से प्रेरणा ले सकें तो केदारनाथ की खुशहाली बहुत जल्दी लौट सकती हैं।

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