राज्य निर्माण के 16 वर्ष बाद भी उत्तराखंड की सरकारें पर्यटन को लाभकारी व्यवसाय बनाने की दिशा में ठोस प्रयास नहीं कर पाए। ्रपर्यटन व्यवसाय को लेकर विभिन्न विकल्पों पर एक नजर
केदार सिंह फोनिया
उत्तराखंड राज्य निर्माण के 16 वर्ष पूरे हो चुके हैं। क्या अब तक के मुख्यमंत्रियों की सोच में उत्तराखंड की पीड़ा झलक रही थी या नित्यानंद स्वामी को छोड़कर बाकी सभी में सरकारी बंगला, घोड़ा, गाड़ी और सरकारी तामझाम हड़पने की पीड़ा दिखाई दे रही थी। तथ्य जो भी हो उसे पूरा राज्य अवगत है। पता हताशे के इस वातावरण के बीच संतोष की एक बात अवश्य आई कि वर्तमान सरकार पर्यटन व्यवसाय को प्रदेश के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा संसाधन मानकर चल रही है। टिहरी झील को जल क्रीड़ा का केंद्र बनाना, जागेश्वर को योग धाम बनाना, मुनस्यारी की पहाडिय़ों को ट्रेकिंग क्षेत्र बनाना, द्रोणागिरी को ट्रेकर ऑफ द इयर बनाना, चारधाम यात्रा को बढ़ावा देना, हिटो केदार कार्यक्रम से श्री केदारधाम की यात्रा को बढ़ावा देना, इसी सोच को प्रमाणित करते हैं। यह सब ठीक है, लेकिन विश्व पर्यटन संस्थान का कहना है कि पर्यटन व्यवसाय विश्व का सबसे बड़ा उद्योग है और इसके विकास के लिए सरकार के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।
धार्मिक पर्यटन जो सबसे बड़ा पर्यटन है, का विकास हो।
राष्ट्र और प्रदेश की पर्यटन नीति कैसी हो।
अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन से आर्थिक लाभ मिले।
पर्यटन सुविधाओं का विकास हो। 12 महीनों के पर्यटन का विकास हो।
प्रचार प्रसार का सही तरीका अपनाया जाए।
धार्मिक पर्यटन
पर्यटन व्यवसाय की शुरुआत धार्मिक पर्यटन से ही हुई है। विश्व के हर धर्म के लोग अपनी आस्था के केंद्रों में जाते रहे और इस प्रकार की यात्राएं हर धर्म में जीवन के लिए अनिवार्य मानी जाने लगी। उत्तराखंड के चारधामों की यात्रा भी इसी मान्यता के आधार पर विकसित हुई। हरिद्वार से उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्र इस यात्रा से लाभान्वित होते हैं।
प्रदेश की पर्यटन नीति
पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश की पर्यटन नीति पर्यटन प्रेमी होनी चाहिए। हमारी सरकार तो देखती होगी कि हमारे प्रदेश का प्रशासन पर्यटन प्रेमी हैं या पर्यटन विरोधी। वर्ष 2008 की बात है। मैं विधायक था। जोशीमठ से देहरादून जा रहा था। खांकरा पर एक सहायक परिवहन अधिकारी अपने सिपाहियों के साथ हरियाणा नंबर की 3 प्राइवेट कारों को रोक कर उनसे पूछताछ कर रहा था। इस प्रकार प्राइवेट गाडिय़ों को रोककर यात्रियों को परेशान किया जाना मुझे अच्छा नहीं लगा।
मैंने कभी भी अपनी गाड़ी पर विधायक का नेमप्लेट नहीं लगाया था। मैंने गाड़ी रोकी और अधिकारी को अपना परिचय दिया। परिचय सुनकर गाड़ी के मालिक भी मुझसे बतियाने लगे। उन्होंने बताया कि तीन परिवार अपने-अपने निजी वाहनों से बद्री-केदार यात्रा पर निकले हैं। आपके ये अधिकारी कहते हैं कि हमारी गाडिय़ां प्राइवेट टैक्सियां हैं। हमने सारे कागजात दिखा दिए, लेकिन इन्होंने हमें आधे घंटे से यहां पर रोके रखा है और यह भी नहीं कहते हैं कि हमें क्या करना है। सुनकर मुझे उत्तराखंड की इस धूमिल छवि पर दुख हुआ और मैंने उक्त अधिकारी से उनको रोकने का कारण पूछा। अधिकारी ने कारण वही बताया जो गाड़ी मालिक ने बताया। मैंने अधिकारी से कहा कि इनको आगे जाने दें। यह हमारे मेहमान हैं। अगर इनको दुखी करोगे तो भविष्य में कोई पर्यटक आपके प्रदेश में आने से कतराएगा। अगर ये किराए की प्राइवेट टैक्सियां हंै तो इसकी सूचना हरियाणा सरकार को दें, वे ही पर कार्रवाई करेंगे। इस पर अधिकारी सहमत हो गया। पर्यटक भी धन्यवाद दे कर आगे बढ़ गए।
यह सोचने की बात है कि क्या पर्यटक इस प्रकार के व्यवहार से आपकी प्रदेश में आना चाहेंगे? अगर ये प्राइवेट कारें, प्राइवेट टैक्सी बनकर चल रही थी तो इनको दंडित करने का पैमाना क्या था? चालक को दंडित करना या पर्यटकों को दंडित करना। इस गंभीर विषय पर सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए।
अंतर्राष्टट्रीय पर्यटन के लाभ
विदेशी सीमा से जुड़े राज्यों को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन का लाभ मिलता है। विदेशी मुद्रा अर्जित होती है और स्थानीय लोग लाभान्वित होते हैं। उत्तराखंड की सीमा भी विदेश (चीन) को छूती है। भारत से हर वर्ष सैकड़ों पर्यटक पिथौरागढ़ लिपुलेख होकर कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाते हैं और कई तिब्बत (चीन) में रहकर उस मुल्क को लाखों रुपयों का लाभ देते हैं। भारत को केवल आस्था का लाभ मिलता है। आस्था के साथ भारत को भी आर्थिक लाभ मिलना चाहिए।
लिपुलेख का सीमाद्वार एक तरफा द्वार है। भारतीय पूजक कैलाश जा सकते हैं, लेकिन उसी द्वार से कोई विदेशी पर्यटक भारत में नहीं आ सकता है। हमारी सरकार का प्रयास होना चाहिए कि सीमा द्वार दो तरफा हो जाए, ताकि जापानी और अन्य विदेशी पर्यटक इसी द्वार से उत्तराखंड में प्रवेश करें और इसका आर्थिक लाभ भी मिल जाए।
एक वर्ष पूर्व पाटा ने अपने सिंगापुर बैठक में बताया कि हर वर्ष २० लाख जापानी, अमेरिकन, यूरोपियन पर्यटक दलाई लामा के प्राचीनतम गढ़ पोटाला देखने जाते हैं। इनमें से कई लोग कैलाश मानसरोवर भी जाते हैं। अगर लिपुलेख का सीमाद्वार दोतरफा बन जाता है तो इनमें से कई लोग कैलाश के बाद भारत आना चाहेंगे और उत्तराखंड लाभान्वित होगा।
कैलाश के लिए अभी एक ही एकतरफा सीमाद्वार लिपुलेख है। जहां यात्रियों को कुछ पड़ाव पैदल या घुड़सवारी से चलना पड़ता है। इस मार्ग को पूर्णतया मोटरीय बनाना आवश्यक है। कैलाश के लिए कम दूरी वाला एक दूसरा मार्ग माणा पास से है, जहां पैदल चलने की जरूरत नहीं है। इसे भी दोतरफा सीमाद्वार बनाया जाता है तो पर्यटन व्यवसाय का सही लाभ उत्तराखंड और भारत को मिल सकता है।
सुविधा संसाधनों का विकास
मुझे खुशी है कि सरकार द्वारा पर्यटनोन्मुख कार्यों के विकास पर ध्यान दिया जा रहा है। 2013-१४ की त्रासदी के पश्चात केदारघाटी में सराहनीय कार्य किया गया। सड़कें, आवासीय सुविधाओं का निर्माण हुआ। इस प्रकार के कार्य सभी पर्यटन क्षेत्रों में तेज गति से होने चाहिए। जंगली जानवरों और पक्षियों के लिए भी चिन्हित स्थानों पर इस प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए।
बारह महीनों का पर्यटन
उत्तराखंड का लक्ष्य होना चाहिए कि पर्यटन हमारा हमारा बारह महीनों का व्यवसाय बन जाए। इसके लिए निम्न बातें आवश्यक होंगे-
चारधाम यात्रा बारह महीनों चले
धार्मिक यात्रा पर्यटन की जननी है। यहां सर्व विदित है कि क्रिसमस के अवसर पर इटली के पोप के वेटिकन सिटी में 4 फीट बर्फ जमी रहती है, लेकिन पूरा ईसाई समाज पोप के दर्शन हेतु वहां पर एकत्रित हो जाता है और चर्च के कपाट बंद नहीं होते हैं। सऊदी अरब के मक्का मदीना में गर्मियों के महीने में 50 से 55 डिग्री का तापमान रहता है, लेकिन मस्जिद के कपाट खुले रहते हैं। इसी प्रकार यह देखना आवश्यक है कि चारधाम यात्रा सालभर की यात्रा किस प्रकार सालभर की यात्रा बन सकती है।
बर्फबारी से सड़क को आवागमन हेतु ठीक बनाने के लिए बॉर्डर रोड के पास उपयुक्त साधन हैं। गंगोत्री और श्री बद्रीनाथ तो मोटर मार्ग से जुड़ चुके हैं। कम से कम यह दो धाम तो सालभर खुले रखे जा सकते हैं, जिससे यात्रा के साथ-साथ बर्फ का भी यात्रियों और पर्यटकों को मिल सकेगा।
यात्रा से इस समय हरिद्वार से ऊपर के क्षेत्र को 400 करोड़ का लाभ मिलता है। सालभर की यात्रा से होने वाले लाभ का अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
रिवर राफ्टिंग की ठोस योजना बने
रिवर राफ्टिंग से उत्तराखंड को प्रतिवर्ष 70 करोड़ से अधिक की आय होती थी, जिससे हजारों नौजवानों को रोजगार मिलता था। अब पर्यावरण के नाम पर इस व्यवसाय का पूर्व वाला स्वरूप समाप्त हो गया, जिससे फिर बेरोजगारी का वातावरण आ गया। पूरा उत्तराखंड पर्यावरण की रक्षा का पक्षधर है। नौजवानों को रोजगार देने की बात भी पर्यावरण की रक्षा करना है। पर्यावरण की रक्षा करते हुए रिवर राफ्टिंग व्यवसाय को पूर्व वाला विशालतम स्वरूप देने का काम हो सकता है, लेकिन प्रदेश की सरकार को इस जनहित वाले प्रश्न पर सजग होकर काम करना होगा।
शीतकालीन क्रीड़ा केंद्रों का विकास हो
औली आज विश्व प्रसिद्ध शीतकालीन कला केंद्र के रूप में उभर चुका है। यहां पर प्रस्तावित ‘आइस स्केटिंग रिंकÓ का निर्माण कार्य अधूरा छोड़ा गया है। समझना कठिन है कि किन कारणों से दूसरे को तैयार नहीं किया जा रहा है। यह रिंक स्कीइंग के साथ एक अतिरिक्त आकर्षण बन सकता है।
औली की तर्ज पर दयारा और मुनस्यारी के बुग्याल भी स्कीइंग के लिए विकसित किए जा सकते हैं।
यात्रा मार्गों पर बरसाती लैंड स्लाइड बिंदुओं का सही उपचार हो
यात्रा मार्गों पर बरसाती स्लाइडों का उपचार अति आवश्यक है। इनमें मुख्यतर लामबगड़, कलियासौड़ और गंगनानी है। सुरंग या फ्लाईओवर का निर्माण ही इनका इलाज है, ताकि बरसात में यात्रा निर्विघ्न चलती रहे।
लिपुलेख से दोतरफा सीमा द्वार बनाना
इस विषय पर पहल के लिए प्रदेश सरकार के पास अभी भी समय है। प्रदेश के पहल पर केंद्र सरकार अवश्य सकारात्मक कार्रवाई करेगी।
हस्तशिल्प का विकास
कश्मीर से हर साल लाखों की हस्तकला की वस्तुएं पर्यटक खरीद कर ले जाते हैं। कश्मीर की तरह उत्तराखंड भी अखरोट की लकड़ी के लिए जाना जाता है। कश्मीर की सरकार सस्ते दरों पर अखरोट की लकड़ी हस्त शिल्पियों को बांटती है। यह शिल्पी सर्दियों में सजावट की नाना प्रकार की वस्तुएं तैयार करते हैं और पर्यटन सीजन में उनकी बिक्री कर धन अर्जित करते हैं।
उत्तराखंड भी लकड़ी और ऊन की हस्तकला वस्तुओं के लिए जाना जाता है। क्या उत्तराखंड सरकार भी गरीब कारीगरों को इस प्रकार की योजना से लाभांवित करने की सोच रखेगी!
प्रचार-प्रसार
सही प्रचार-प्रसार से व्यवसाय को लाभ मिल सकता है। सरकार द्वारा मेरे बुजुर्ग मेरे तीर्थ योजना अच्छी है। इससे अपने ही लोगों को अपने तीर्थों की जानकारी मिलती है, लेकिन हमारे लिए तो पूरे राष्ट्र को इसकी जानकारी देना आवश्यक है। इसलिए इसी प्रकार का कार्यक्रम लेखकों, पत्रकारों, छायाकारों और ट्रेवल एजेंटों के लिए भी बनाए जाने चाहिए, ताकि इनके माध्यम से पूरे राष्ट्र एवं दुनिया को उत्तराखंड के तीर्थों की जानकारी मिल सके और पर्यटक उत्तराखंड आते रहें।
पर्यटन व्यवसाय को उत्तराखंड का बड़ा व्यवसाय बनाने हेतु सरकार द्वारा उपरोक्त बातों को गंभीरता से लेना आवश्यक होगा।