एक क्लिक से देश विदेश में देख सकेंगे पहाड़ की लोक संस्कृति
वर्ड थियेटर डे पर लोक संस्कृति को संरक्षण का सुरु हुआ अभियान
कलाकरो से भी कर सकेंगे संपर्क।
पर्यटन से जुड़ेगी पहाड़ की संस्कृति डीएम उत्तरकाशी का बयान
गिरीश गैरोला
विश्व रंग मंच दिवस के मौके पर उत्तरकाशी जनपद के सुदूर क्षेत्रों से मुख्यालय पहुचे कलाकारों ने विलुप्ति की कगार पर पहुच चुके 17 लोक नृत्यों को सड़क से लेकर रंग मंच पर इस तरश से पिरोया कि दर्शक एकटक देखते रह गए। जिला पंचायत अध्यक्ष जसोदा राणा ने डिवाइन डांस ऑफ़ उत्तरकाशी की वेब साइट का विधिवत शुभारम्भ करते हुए डीएम उत्तरकाशी के इस अनूठे प्रयास की सराहनाया करते हुए अपने स्तर से हर संभव सहयोग का भरोसा दिलाया। इस दौरान उत्तरकाशी जनपद के निवासी और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के सुवर्ण रावत और मुंबई से आए कलाकारो को मंच पर सम्मानित किया गया।
उत्तरकाशी के विकास में एक और पहल करते हुए डीएम उत्तरकाशी डॉ आशीष चौहान ने डीओ पीआरडी विजय प्रताप भंडारी, लोग गायक ओम बधानी और लोक कलाकार सुरेंद्र पूरी से जनपद के समृद्ध संस्कृति के परिचायक और विलुप्त की कगार पर पहुंच रहे लोक नृत्य और गीतों को सहेजकर पूरी डिटेल के साथ प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया, जिसे वर्ल्ड थिएटर डे के मौके पर उत्तरकाशी मुख्यालय में स्थित ऑडिटोरियम में प्रस्तुत किया गया। हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगे उत्तरकाशी जनपद के मोरी ब्लॉक के देवदासी, थोठा और जोगटा नृत्य समेत 17 सूचीबद्ध लोकनृत्यों को देखकर खुद जनपद वासी भी हैरान रह गए। गौरतलब है कि मंच न मिलने के चलते लोक परंपराएं और लोकगीत अपने क्षेत्र तक सीमित होकर रह गए हैं । डीएम उत्तरकाशी डॉ आशीष चौहान ने बताया कि पूर्व में पिथौरागढ़ जनपद में कार्य करते हुए उन्होंने इस तरह का अभियान शुरू किया था जिसे वहां व्यापक जनसमर्थन मिला था। उत्तरकाशी जनपद के इन 17 विलुप्तप्राय डिवाइन डांस को रंगमंच के माध्यम से यात्रा काल में विदेशी पर्यटक को दिखाने की मुहिम शुरू की जाएगी ताकि धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ सांस्कृतिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सके और देश और दुनिया के लोग जनपद के समृद्धि लोक संस्कृति के दर्शन कर सकें ।
मोरी ब्लॉक के सरास गांव से थोठा नृत्य प्रस्तुत करने उत्तरकाशी पहुंचे बबलू चौहान ने बताया के अप्रैल महीने में 12 से 15 अप्रैल तक बीसू त्योहार मनाया जाता है इस दौरान थोठा नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। उन्होंने बताया कि पौराणिक परंपरा के अनुरूप वीरता का प्रतीक यह नृत्य धनुष बाण के साथ किया जाता है। कुछ खास युवकों में ही धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने और उससे तीर चलाने की क्षमता होती है । इस नृत्य के लिए विशेष रूप से ड्रेस बनाई जाती है जिसमें से शरीर के ऊपर वाला पहनावा तो आसानी से मिल जाता है किंतु निचला पायजामा को बनाने वाले कलाकार अब बहुत कम रह गए हैं। करीब 12 फीट लंबा इस पैजामे के अंदर चमड़े का प्रयोग किया जाता है ताकि नृत्य के दौरान तीर के हमले से घायल होने से खुद को बचाया जा सके। उन्होंने बताया कि पुरखों से चली आ रही इस परंपरा को वे आगे बढ़ाते जा रहे हैं और उनके बाद उनके बच्चे इस परंपरा को आगे लेकर जाएंगे। उन्होंने बताया कि दो सगे भाई इस नृत्य को नहीं खेल सकते हैं। बबलू चौहान ने बताया कि वह सदियों से अपने गांव इलाके में इस नृत्य को करते आ रहे हैं किंतु पहली बार उन्हें मंच पर से प्रस्तुत करने का मौका मिला है जिसे लेकर वे उत्साहित है।
वही दोनी गांव से आए लोक कलाकारों ने बताया कि किस तरीके से सिर कुड़िया महासू देवता के दरबार में गरीब 20 परिवार पुरखों से अपनी सेवा देते आ रहे हैं । इन्हें देवदासी कहा जाता है यह लोग भादो और चैत के महीने में महासू महाराज के जागरा मेले के दौरान देवदासी नृत्य प्रस्तुत करते हैं। देवदासी नृत्य शुरू होने के बाद ही मेले का विधिवत शुभारंभ माना जाता है । दोनी गांव के बरफ दास अनीता देवी और सुशीला देवी ने बताया कि नृत्य में महिलाएं जो घाघरा पहनती हैं उसे बनाने के लिए 18 मीटर लंबे कपड़े की जरूरत होती है। इस नृत्य के माध्यम से देवदासियां महासू देवता को प्रसन्न करने के लिए गीत गाती हैं।