प्रमोद कुमार डोभाल, देहरादून
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र यूसेक कर्मचारी की पत्नी ने पौड़ी गढ़वाल के पैठाणी में 19 अगस्त को अपने दो बच्चों के साथ नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली थी। यूसेक से निष्कासित कर्मचारी देवेंद्र रावत यूसेक से निकाले गए अन्य कर्मचारियों के साथ पिछले काफी लंबे समय से परेड ग्राउंड में दोबारा से नियुक्ति को लेकर धरने पर बैठा हुआ था।
देवेंद्र रावत का परिवार गांव में गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा था। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सचिव रविनाथ रमन ने भी कर्मचारियों को वापस सेवा में लेने के लिए यूसेक के निदेशक एमपीएस बिष्ट को पत्र लिखकर आदेश किया था, तथा फोन पर भी इन कर्मचारियों को वापस लेने के लिए निर्देश दिए थे। लेकिन बिष्ट ने सचिव की बात भी नहीं सुनी।
पैठाणी के स्योली मल्ली गांव का रहने वाला देवेंद्र सिंह रावत इसी साल जून माह में अन्य कर्मचारियों के साथ यूसेक से निकाल दिया गया था। 28 वर्षीय रावत की पत्नी मुन्नी देवी ने अपने दो बेटे आदित्य (8 वर्ष) तथा अंकुश (4 वर्ष) के साथ सिलोगी पुल के पास से नयार नदी में छलांग लगा दी थी।
यूसेक के निदेशक एमपीएस बिष्ट कहते हैं कि कर्मचारियों के आरोप बेबुनियाद हैं। किंतु यह बात साफ है कि यदि इन कर्मचारियों को वापस सेवा में ले लिया जाता तो देवेंद्र सिंह रावत के परिवार को यह कदम नहीं उठाना पड़ता।
ऐसे में अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक एमपीएस बिष्ट निष्कासित कर्मचारी के परिवार के आत्महत्या करने में अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते।
अंतरिक्ष उपयोग केंद्र में व्यापक पैमाने पर गड़बड़ियां हैं। संस्थान के पैसे की बर्बादी अनाप-शनाप कार्यों पर की जा रही है, किंतु कर्मचारियों को तनख्वाह देने के नाम पर उन्हें संस्थान से ही चलता कर दिया गया।
यह लोग विगत 17-18 सालों से महज 12-13 हजार रुपए के वेतन पर यूसेक में काम कर रहे थे। ऐसे में किसी तरह गुजारा कर रहे यह लोग अब सड़क पर आ गए हैं और विगत कई महीने से परेड ग्राउंड में धरना दे रहे हैं।
लाखों रुपए वेतन और अन्य अय्याशियों पर उड़ाने वाले डायरेक्टर को इन सब से कोई मतलब नहीं है। इस संस्थान से ही सबसे पहले निकाली गई शीला रावत तो अपनी बहाली के लिए लगभग 3 महीने तक संस्थान के बाहर धरने पर बैठी रही लेकिन डायरेक्टर का दिल नहीं पिघला। आखिरकार प्रशासन की मदद से शीला रावत को धक्के देकर धरना स्थल से हटा दिया गया था अब शीला रावत भी अन्य निष्कासित कर्मचारियों के साथ परेड ग्राउंड में धरने पर बैठी हैं।
निष्कासित कर्मचारियों का परिवार दाने-दाने को मोहताज है, लेकिन इनकी पीड़ा सुनने की संवेदना न तो सरकार में बची है और ना ही शासन प्रशासन में।