आखिरकार काफी मशकत के बाद नैनीताल पुलिस टीम चिटफंड कंपनी के नाम पर लोगों को धोखा देने वाले सीएमडी अवधेश कुमार राजभर को गिरफ्तार करने मे सफल रही और कल 24 अगस्त 2018 को अभियुक्त अवधेश कुमार राजभर को माननीय न्यायालय के समुख पेश कर जेल भेज दिया गया !
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प्रदेश मे सरकार की नाक के नीचे कुकुरमुत्ते की तरह उग आई निवेश कम्पनियां जहाँ एक ओर जनता की गाड़ी कमाई को तो हड़प कर ही रही है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के युवाओं को उज्जवल भविष्य का सपना दिखा मौत की दहलीज़ तक ला कर खड़ा कर रही हैं ! इसी की एक झलक इस वर्ष दिनांक 22 मार्च 2018 को हल्द्वानी मे भी देखने को मिली जब वाराणसी उत्तरप्रदेश से संचालित “शिव गंगा निधि नैनीताल लिमिटेड” नाम की चिटफण्ड कंपनी के एक स्थानीय निदेशक/मैनेजर चतुर सिंह बिष्ट ने मौत को गले लगा लिया।
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चतुर सिंह ने आत्महत्या से पूर्व अपने सहकर्मियों को वट्सैप के माध्यम से कंपनी के CMD अवधेश कुमार राजभर को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया वहीं पुलिस को भी प्राप्त सुसाइड नोट मे CMD अवधेश कुमार राजभर का मुख्य रूप से जिक्र पाया गया। इस के बाद चतुर सिंह की पत्नी ने CMD को अपने पति की मौत का ज़िम्मेदार बता मुकदमा दर्ज करवा दिया, किन्तु काफी समय तक जब इस केस मे कोई प्रगति न हुई तो अंततः चतुर सिंह की कैंसर पीड़ित पत्नी को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। तब कहीं जाकर न्यायालय के हस्तक्षेप से पुलिस हरकत मे आई और अवधेश कुमार राजभर की गिरफ्तारी हेतु मुखानी थानाध्यक्ष नंदन सिंह रावत द्वारा टीम बना उपनिरीक्षक नीरज बल्दिया व हमराही कांस्टेबल रमेश कांडपाल को बलिया उत्तर प्रदेश भेजा गया। और उसे गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया।
अब यहाँ सवाल यह खड़ा होता है कि क्या चतुर सिंह की तरह प्रदेश के युवाओं के परिवार को बर्बाद करने को सिर्फ अवधेश कुमार राजभर जैसे लोग ही जिम्मेदार हैं या प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन भी उतना ही जिम्मेदार है जितना कि इस तरह की कम्पनियों के मालिक।
इस तरह कोई भी कम्पनी किस प्रकार जिला प्रशासन व खुफिया तंत्र की मौजूदगी मे बरसों तक सफलता पूर्वक संचालित होती रहती हैं और फिर एक दिन सुनियोजित तरीके से अपने कर्मचारियों व निवेशको को चूना लगा रफूचक्कर हो लेती हैं !
अगर सिर्फ इसी कम्पनी की बात करें तो पूरे प्रदेश मे इस के चार दफ्तर थे। हल्द्वानी, देहरादून, अल्मोड़ा व चम्पावत। किन्तु प्रशासन ने कभी भी यह जानने की जहमत तक नहीं उठाई कि आखिर यहाँ चल क्या रहा है!पूरे प्रदेश से एक वर्ष तक लगभग 3 करोड़ जुटाने के बाद कम्पनी कुछ समय तक तो निवेशकों को पैसा देती रही फिर कुछ समय बाद निवेशकों का पैसा ही नहीं बल्कि अपने कर्मचारियों की तनख्वाह तक रोक दी गयी। कर्मचारियों की मानें तो उन को 9 महीने तक तनख्वाह नहीं मिली। अंत मे थक हार कर 6 मार्च को सभी कर्मचारी वाराणसी पंहुचे किन्तु वहां भी कम्पनी का CMD उनको मिलने से टालता रहा यहाँ तक कि वाराणसी ऑफिस की एक महिला कर्मचारी उनको वापस नहीं लौटने पर झूठे आरोपों मे फ़साने की धमकी तक देने लगी। हालांकि काफी कोशिशों के बाद ये लोग अवधेश कुमार राजभर से मिलने मे कामयाब हो पाये। जिसका विडियो पर्वतजन को प्राप्त हुआ है, 17 मार्च को वाराणसी से वापस आने के कुछ दिन बाद ही चतुर सिंह ने मौत को गले लगा लिया !