विनोद कोठियाल
उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश बनाने की बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं, लेकिन पर्यटकों की सुविधाओं के लिए सरकार जरा भी गंभीर नहीं है।
पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश में काफी मारामारी हो रही है। पूरा सरकारी अमला किसी न किसी तरह से इसका श्रेय ले रहे हैं, किंतु अव्यवस्थाओं पर सब एक दूसरे के पाले में गेंद सरका रहे हैं। कुछ जगह पर पर्यटन की राह का रोड़ा बनता है वन विभाग। इस विभाग की गलत कार्य प्रणाली के कारण पर्यटकों में काफी रोष है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है नेलांग घाटी। भारत-चीन युद्ध के बाद पहली बार इस घाटी को विगत वर्ष पर्यटकों के लिए खोला गया, किंतु पर्यटकों को कई विभागों से एनओसी लेने के बाद ही इस घाटी में प्रवेश करने दिया जाता है। जिला प्रशासन व वन विभाग का इसमें सबसे महत्वपूर्ण रोल रहता है। इस प्रक्रिया में पर्यटकों को एक विभाग से दूसरे विभागों में चक्कर काटने पड़ते थे और कई दिन लग जाते थे। इस व्यवस्था को ठीक करने और सुगम बनाने के लिए जिला प्रशासन की एक मुहिम जरूर चली कि इस पूरे सिस्टम को सिंगल विंडो सिस्टम बना दिया। इसका उद्घााटन स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा कराया गया, किंतु इस पूरी व्यवस्था से मुख्यमंत्री को अंधकार में रखा गया। कहा गया कि यह सिस्टम पूर्ण रूप से सिंगल विंडो है और पर्यटकों को एनओसी के लिए अब नहीं भटकना पड़ेगा, जबकि हकीकत यह है कि उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में अभी तक कोई कार्यालय इस कार्य हेतु अमल में नहीं आया, बल्कि अब व्यवस्था और भी ज्यादा जटिल हो गई है। पहले जब कोई पर्यटक नेलांग वैली घूमने आता था तो उसे पता था कि जब तक उसे परमिट जारी नहीं होता, तब तक वह पर्यटक अपने आगे की बुकिंग नहीं करवाता था, किंतु अब सिंगल विंडो सिस्टम होने से पर्यटक से केवल जाने की दिनांक पूछी जाती है और उसके मोबाइल पर एक मैसेज आता है कि आपका प्रार्थना पत्र जमा हो चुका है। इससे आगे की जानकारी पर्यटक को नहीं मिल पाती। तिथि निश्चित होने के कारण पर्यटक अपने आगे की आवासीय व्यवस्था कर लेता है, किंतु जब वह उत्तरकाशी पहुंचता है तो उसे फिर विभागों के चक्कर काटने पड़ते हैं और उस दिन यदि अधिकारी उपलब्ध न हो तो उसका आगे का सारा कार्यक्रम खराब हो जाता है।
वेबसाइट पर किसी भी अधिकारी या कार्यालय का कोई फोन नंबर उपलब्ध नहीं है, जिससे पर्यटक अपने परमिट के संबंध में अग्रिम जानकारी हासिल कर सकें। इन सब अव्यवस्थाओं से उत्तराखंड के पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩा तय है।
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नेलांग घाटी से कभी चीन और भारत का व्यापार होता था। आज भी इस व्यापार के चिन्ह गरतान्गली में पहाड़ी पर बने लकड़ी के पुल से प्रमाणित होते हैं।
भारत-चीन युद्ध के बाद से घाटी के लोगों का विस्थापन किया गया था। ये लोग अब डुंडा व हर्षिल आदि स्थानों पर रहते हैं। इन लोगों को भी घाटी में जाने की अनुमति नहीं है। इनकी राह में रोड़ा वन विभाग बनता है।
पूरी घाटी सेना और आईटीबीपी के अधीन है, किंतु पर्यटकों पर सबसे अधिक अंकुश वन विभाग का है। ऑनलाइन सिस्टम में जो साइट बनी है, उसमें घाटी में घूमने के लिए स्थान निश्चित नहीं है। केवल नेलांग घाटी के नाम से ही बुकिंग होती है, किंतु जब परमिट और काफी जोखिमभरे रास्ते से पर्यटक नेलांग पहुंचता है तो वन विभाग के कर्मचारी पर्यटक को वहीं से वापस कर देते हैं, क्योंकि पर्यटक को बताया जाता है कि आपकी अनुमति यहीं तक है, आगे नहीं जा सकते, जबकि पर्यटक को पता ही नहीं होता कि उसे जाना कहां तक है, क्योंकि घाटी की सुंदरता उसी स्थान से शुरू होती है, जहां पर्यटकों को रोका जाता है। यह सब वन विभाग के रहमोकरम पर निर्भर करता है कि किस पर्यटक को आगे जाने दिया जाएगा और किसे नहीं, जबकि नेलांग से आगे जादोंग गांव है, जो कि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, किंतु विभाग की धींगामुश्ती के कारण पर्यटक तो दूर इस गांव के मूल निवासी भी आज वहां नहीं आना चाहते।
यह मनमानी भारत के सामरिक दृष्टि से तो खराब है ही, उत्तराखंड के पर्यटन के लिए भी काफी नुकसानदायक है। प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से जब नेलांग में स्थानीय समस्याओं और ऑनलाइन सिस्टम की खामियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि व्यवस्थाएं अब पहले से आसान कर दी गई हंै।
इस घाटी में प्रवेश के लिए वन विभाग द्वारा प्रति व्यक्ति १५० व २५० प्रति वाहन का ईको शुल्क लिया जाता है। शुल्क हमेशा से विवादों में रहा। शुल्क का वन विभाग कोई हिसाब नहीं बता पाता कि पर्यटकों से वसूली जाने वाली यह धनराशि किस मद में खर्च की जाती है! घाटी में रखरखाव के नाम पर कुछ नहीं है। सड़क भारत सरकार बना रही है। फिर पर्यटकों से लिए जाने वाले धन का हिसाब न होना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।
उत्तराखंड को भले ही सरकार पर्यटन प्रदेश के रूप में प्रचारित कर रही है, किंतु धरातल पर होने वाली इस प्रकार की परेशानियों से पर्यटक अच्छा अनुभव लेकर नहीं लौट रहे। यह प्रदेश के पर्यटन के लिए शुभ संकेत नहीं है।