पर्वतजन को अपने सूत्रों से केदारनाथ में गिरते एमआई-17 हेलीकॉप्टर का वीडियो प्राप्त हुआ।
जब एमआई-17 हेलीकॉप्टर केदारनाथ में भारी भरकम मशीनों के पार्ट ला रहा था तो ओवरलोड होने के कारण और एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम की व्यवस्था ना होने के कारण हेलीकॉप्टर का पायलट हवा का रुख ना भांप सका और ओवरलोडिंग हेलीकॉप्टर उससे संभल न सका।
आप वीडियो में देख सकते हैं कि किस तरह यह हेलीकॉप्टर यहां डगमगाते हुए आया और आखिरकार बाउंड्री पर लगे लोहे के एंगिल से टकराकर गिर पड़ा।
बड़ा सवाल अब भी अपनी जगह स्थिर है कि वायु सेना का यह एमआई-17 हेलीकॉप्टर किसके आदेश पर भारी भरकम मशीनों को ढो रहा था ?
इससे पहले भी इस हेलीकॉप्टर में खराबी आ आई थी तो इसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया ! ओएनजीसी के साइंटिस्ट पिछले 4 दिनों से इस हेलीकॉप्टर में कौन सी खराबियां और और पार्ट ठीक करने के लिए केदारनाथ आए थे?
आख़िर क्यों यह हेलीकॉप्टर हवा का रुख नहीं भांप पाया ? एयर ट्रैफिक कंट्रोल की सुविधा क्यों नहीं थी ?
और ग्राउंड स्टाफ वहां पर क्यों उपलब्ध नहीं था ?
यह हेलीकॉप्टर लगभग 100 करोड़ रुपए की लागत का है किंतु शुक्र है कि सभी की जान बच गई। यदि पायलट सूझबूझ से हेलीकॉप्टर को मिट्टी वाले धरातल पर ना टकराकर कठोर धरातल पर टकराता तो आग लगने से कई जान जा सकती थी।
यदि यह हेलीकॉप्टर प्राइवेट ठेकेदार का सामान ले जा रहा है तो इसकी सेवा शर्तें क्या है ?
यह एक गंभीर जांच का विषय है। यदि यह हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त न होता तो यह सवाल भी नज़र नही आता।
केदारनाथ आपदा के समय भी जो फैब्रिक के टिकट बनी थी उनका सामान भी गढ़वाल मंडल विकास निगम के बंधुआ मजदूरों द्वारा सरकारी हेलीकॉप्टरों में सरकार के खर्चे पर धोया गया था पर वह दौर तत्कालीन ब्यूरोक्रेट राकेश शर्मा और मुख्यमंत्री हरीश रावत का दौर था यदि आज जीरो टॉलरेंस की सरकार में भी प्राइवेट ठेकेदार का काम सरकार के खर्चे पर हो रहा है तो फिर यह गंभीर सवाल खड़े कर सकता है।