कृष्णा बिष्ट
अपने दैनिक जीवन में हम समाज की कई समस्याओं से रूबरू होते हैं। उनको हल करने का विचार हमारे दिमाग में आता भी है लेकिन हमारी अन्य तात्कालिक प्राथमिकताओं और व्यस्तताओं के चलते वह विचार कहीं नेपथ्य में चला जाता है।
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इन विचारों के समाधान को मूर्त रुप देने की राह पर आगे बढ़ जाते हैं। ऐसा ही एक ख्याल पिछले दिनों अल्मोड़ा टूर के दौरान वहां के एक बालिका निकेतन को देख कर आया। इन अनाथ बच्चियों को यहां शरण तो मिल रही है, लेकिन इनकी शिक्षा दीक्षा की भी व्यवस्था होती तो कितना अच्छा होता !
यहां पर 18 वर्ष पूरे हो जाने के बाद बालिका को रखने की व्यवस्था ही नहीं है। उसके बाद वह कहां जाती है, क्या करती है, इसका कोई ट्रैक रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं है। और न ही इसके लिए कोई योजना ही है।
जिज्ञासावश जब यह सवाल हमने बालिका निकेतन के संचालकों से पूछा तो उन्होंने जो कुछ बताया, उसमें से एक सुखद आश्चर्य जनक बात हम आपसे साझा कर रहे हैं।
आइएएस सबिन का संकल्प
बात ज्यादा पुरानी नहीं है। कुछ समय पहले अल्मोड़ा के तत्कालीन डीएम सबिन बंसल के संज्ञान में भी यही समस्या आई थी। उन्होंने व्यक्तिगत प्रयासों से कुछ करने की ठानी और 4 अनाथ कन्याओं की शिक्षा दीक्षा की जिम्मेदारी उठा ली।
वाकई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के नारे को अगर कोई सही मायने में निस्वार्थ भाव से सार्थक बना रहा है तो वह हैं आई.ए.एस सबिन बंसल जो अपने निस्वार्थ प्रयासों से अल्मोड़ा के बालिका निकेतन केंद्र मे रहने वाली बालिकाओं का भविष्य संवारने में बड़ी शिद्दत से लगे हुए हैं। उन से प्रेरणा लेकर जिले के और भी अधिकारी इस कार्य में सहयोग के लिए सहर्ष तैयार हो गए और यह लोग अब सविन बंसल के स्थानांतरण के बाद भी यह जिम्मेदारी उठा रहे हैं।
संचालकों से बात करने पर पता चला कि कुछ वर्ष पूर्व श्री सबिन जब जिलाधिकारी अल्मोड़ा के पद पर थे तो तब ही से उन्होंने वहां के बालिका निकेतन मे रहने वाली बालिकाओं की उच्च शिक्षा के लिये अपने स्तर से काफी प्रयास किए।
संकल्प से सिद्धि
इसका नतीज़ा यह हुआ कि उस बालिका निकेतन की चार बालिकाओं रजनी, उर्मिला, निर्मला व संगीता का दाखिला 2015–2016 के प्रोफेशनल कोर्स के लिए हरिद्वार के प्रतिष्ठित “देव संस्कृति विश्वविद्यालय” मे हो पाया।
यहाँ से रजनी “बी.एस.सी एनिमेशन”, उर्मिला “बी.एड” तो निर्मला व संगीता “बैचलर ऑफ रूलर स्टडीज” का कोर्स कर रहीं हैं।
इनकी पूरी शिक्षा का खर्च भी श्री बंसल के निजी प्रयासों द्वारा ही संभव हो पाया। वर्ष 2018-19 के लिए छह कन्याओं की शिक्षा दीक्षा स्पॉन्सर करने का प्रस्ताव है।
यहां यह बताना भी आवश्यक है कि बालिका निकेतन में इन बच्चियों को मात्र 18 वर्ष की आयु तक ही रखा जा सकता है।इसके बाद इनको यहां से जाना होता है। यानी एक तरह से इनको इनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। न घर का पता और न इस स्तर की शिक्षा कि ये कुछ कर ही लें, जिस कारण इन अनाथों के शोषण की आशंका भी बन जाती है। इसी पहलू को देखते हुए श्री बंसल ने इन कन्याओं को उनके पैर पर खड़ा करने का बीड़ा उठाया है।
अन्य अफसरों का सहयोग
मो. असलम जिला विकास अधिकारी अल्मोड़ा बताते हैं कि जब श्री.बंसल जिलाधिकारी अल्मोड़ा के पद पर थे तो उन का एक कथन आज भी उनको याद है, उन का कहना था कि इस बालिका सदन मे एक दिवसीय सामुदायिक कार्यक्रम तो कई बार हुए हैं, किन्तु किसी ने इन बालिकाओं के बारे मे नहीं सोचा “यदि मैं जिलाधिकारी और आई.ए.एस इन के भविष्य संवारने का कार्य नहीं कर सकता तो फिर कौन करेगा !” उनके यही कथन आज तक मेरे मन में हैं, जिस कारण मैं आज भी उनकी इस मुहिम से जुड़ा हुआ हूं। श्री.बंसल को उन के इस नेक काम में उनके पूर्व सहयोगी श्री. मो. असलम जिला विकास अधिकारी, डॉ. अजीत तिवारी आयुर्वेदिक चिकित्सक, श्री.राजीव नयन तिवारी जिला प्रोबेसन अधिकारी, श्री.राकेश जोशी जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी व श्रीमती. मंजू अधीक्षिका बालिका निकेतन का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है।
उच्च शिक्षा मे दाखिला
अल्मोड़ा से स्थान्तरण के बाद आज भी सबिन अल्मोड़ा के उस बालिका सदन से जुड़े हुए हैं और वहां की अन्य बालिकाओं को भी उच्च शिक्षा देकर उनको भी स्वावलंबी बनाने की कोशिश मे लगे हुए हैं, जिस कारण इस वर्ष भी इस बालिका सदन की 5बालिकाओं विद्या, जानकी, नीमा गोस्वामी, सुनीता व भावना राठोर का दाखिला “देव संस्कृति विश्वविद्यालय” मे संभव हो पाया। जिसमें विद्या व जानकी का इनरोलमेंट “बैचलर ऑफ रूलर स्टडीज” नीमा गोस्वामी “बी.एड”, सुनीता “बी.एस.सी. एनिमेशन” व भावना राठोर का बी.बी.ए के लिए हुआ है। आजकल श्री बंसल अपने स्तर से इन बालिकाओं की पूरी शिक्षा के खर्च की व्यवस्था मे लगे हुए हैं। जब इस संबंध में अधिक जानकारी लेने के लिए सबिन बंसल से संपर्क किया गया तो पहले तो वह काफी हिचकिचाए और इसे एक निजी कार्य बताते हुए प्रकाशन के लिए मना करते रहे, लेकिन जब उन्हें यह बताया गया कि यह कार्य समाज की नजरों में आने से अन्य सक्षम लोग भी प्रेरित हो सकते हैं, तब वह बात करने को राजी हुए।
विश्वविद्यालय के संस्थापक भी साथ
सबिन बंसल ने बताया कि वह अभी भी अल्मोड़ा बालिका निकेतन के संपर्क में हैं और अन्य अधिकारियों को भी मदद करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।
बंसल ने बताया कि वह लगभग हर माह एक बार अपनी पत्नी के साथ हरिद्वार स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय में जाकर उन छात्राओं की समस्याओं को हल करने के लिए तथा अन्य मदद के लिए मिलते रहते हैं।
उनकी इस लगन को देखते हुए देव संस्कृति विश्वविद्यालय के संस्थापक प्रणव पंड्या ने उन्हें आश्वासन दिया है कि शिक्षा दीक्षा के बाद इन बालिकाओं को किसी अच्छे संस्थान में नौकरी लगा दिया जाएगा, अन्यथा वह अपने ही संस्थान में इनको नियुक्ति दे देंगे।
बन सकती दीर्घगामी नीति
जब सबिन बंसल से पूछा गया कि बालिका निकेतन में सिर्फ 18 वर्ष तक रखे जाने के बाद उनके भविष्य के विषय में सरकार की कोई योजना क्यों नहीं है ! इस पर बताया कि उन्होंने प्रमुख सचिव बाल विकास राधा रतूड़ी से मिलकर इस समस्या को साझा किया है और जल्दी ही उन्होंने 18 वर्ष के बाद ही बालिकाओं को भरण पोषण तथा शिक्षा दीक्षा के साथ ही रोजगार के विषय में भी कोई योजना शुरू करने का आश्वासन दिया है।राधा रतूड़ी के सकारात्मक रुख से सबिन बंसल काफी उत्साहित हैं।
अन्य सहयोगियों का साथ
उन्होंने व्यक्तिगत प्रयासों से कुछ बैंकों से भी अनुरोध किया है कि वह भी इन बालिकाओं की उच्च शिक्षा का खर्च उठाएं। HDFC और Bank of Baroda जैसे कुछ बैंक इसके लिए सहर्ष तैयार भी हो गए हैं। शिक्षा- दीक्षा, खाने- रहने सहित समस्त शुल्क लगभग एक लाख रूपये सालाना है।
….और एक सुखद बात
एक और बात, जिसका जिक्र करना हम भूल गए थे। वह यह है कि शिक्षा प्राप्त कर रही इन कन्याओं ने भी यह संकल्प लिया है कि नौकरी लगने के बाद वह भी अपने वेतन से एक निश्चित रकम जमा करके अपने जैसी निराश्रित कन्याओं को अपने पैरों पर खड़ा करने में मदद करेंगी। वाकई आज के दौर में सविन बंसल जैसे अधिकारी अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा स्रोत हैं। आप भी इस नेक कार्य में सहयोगी बनना चाहते हैं तो आगे आइए !