टिहरी बांध के विस्थापित विभिन्न समस्याओं को लेकर आज भी शासन प्रशासन और सरकारों के समक्ष अपनी एड़ियां रगड़ रहे हैं।
माटू जन संगठन के नेतृत्व में विस्थापितों ने कई अफसरों से हाल ही में मुलाकात की किंतु लगता नहीं निकट भविष्य में भी उन्हें आश्वासन के सिवाय कुछ ठोस हासिल को पाएगा।
अपनी कहीं सुनवाई होने से यह लोग हताश और निराश हो चुके हैं।आइए आज इनकी समस्याओं पर डालते हैं एक नजर।
टिहरी बांध के पुनर्वास की समस्याओं का समाधान अभी तक नही हो पाया है। मुख्यमंत्री ने पुनर्वास की समस्याओं को देखते हुये जून2017 में केन्द्रीय बिजली मंत्री के साथ एक बैठक में टिहरी झील का पानी 825 मीटर तक ही रखने के फैसला किया था।ड़
टिहरी बांध के विस्थापितों को हरिद्वार के पथरी भाग 1, 2, 3 व 4 के ग्रामीण क्षेत्र में पुनर्वास के नाम पर 1979 से भेजा जा रहा है। विस्थापितों ने इस ग्रामीण क्षेत्र को रहने लायक बनाया है। यहां लगभग 40 गांवों के लोगों को पुनर्वासित किया गया है किन्तु उन्हें जो मूलभूत सामुदायिक सुविधायें अधिकार रुप में पुनर्वास के साथ ही मिलनी चाहिये थी, उनको वे आज 37 वर्षाें बाद भी सरकार से मांग रहे हैं। किन्तु इस बारे में आज तक कोई सुनवाई नही हुई है। जिसके कारण उनका जीवन दुष्कर हो गया है।
भूमिधर अधिकारः यहां के विस्थापितों को भूमिधर अधिकार भी नही मिल पाया है। जिसके बिना उन्हें कृषि संबधी कोई सुविधा जैसे किसान क्रेडिट कार्ड, उर्वरकों में छूट आदि नही मिल पाती है। वे लोग बैंक लोन आदि या किसी प्रकार की जमानत भी नही ले सकते। कोई गारंटी नही दे सकते। हमें यहां के निवासी होने का प्रमाण तक नही है।
स्वास्थयः लगभग 24,000 की विस्थापितों की आबादी के लिये निम्नतम स्तर की सुविधा तक नही है। प्राथमिक चिकित्सा, जच्चा-बच्चा केन्द्र आदि भी नही है।
शिक्षाः बहुत ही कठिनाई से 10वीं कक्षा तक के स्कूल की व्यवस्था हो पाई। किन्तु इसके बाद की शिक्षा का कोई प्रबंध है ही नही।
बैंकः मात्र भाग एक में को-आपरेटिव सोसाईटी का बैंक है तथा इतने सालों के बाद दिसंबर 2013 में भाग एक में ही अब इंडियन ओवरसीज़ बैंक खुल पाया है।यातायातः इसकी कोई सरकारी व्यवस्था तक नही है।जंगली जानवरों से सुरक्षाः इस हेतु सुरक्षा दीवार का काम भी अभी रुका हुआ है। जिससे जानवर उनकी फसलों को लगातार नुकसान पहुंचा रहे है।
बिजलीः नीति के अनुसार हमें बिजली मुफ्त मिलनी चाहिये थी। किन्तु दाम देने पर भी बिजली की सुचारु व्यवस्था नही है। जब सुशील कुमार शिदें उर्जा मंत्री थे तो उन्होने टिहरी के एक कार्यक्रम में प्रति विस्थापित व प्रभावित परिवारों को 100 यूनिट बिजली देने की घोषणा की थी।
पेयजल व सिंचाईः इसके लिये विस्थापितों ने ज्यादातर अपनी व्यवस्था की है। सिंचाई के लिये बरसों की मांग के बावजूद उन्हें पास बहती गंगनहर से सिंचाई का पानी नही मिल पाया है। जबकि उनके गांवों को डुबोकर ही पानी आ रहा है।मंदिर, पितृकुड़ी, सड़क, गुल आदि की सुविधायें भी उन्हें सालों बाद व्यवस्थित रुप में नही मिल पाई है।
2. रोशनाबाद विस्थापित क्षेत्र की समस्यायेंः-
इस क्षेत्र में टिहरी जिले के खांड-बिडकोट, सरोट, छाम, सयांसू आदि गांवों के लगभग 400 परिवार सन्2005-6 से आये है।यहां पीने का पानी 300 फुट पर है, जिसे लोगों ने स्वंय अपने प्रयासों से निकाला है। किन्तु अभी प्रापर्टी डीलरों की एक समिति इस पानी का इंतजाम देखती है। जिसकी अनियमितताओं के बारे में बहुत शिकायत करने पर सीडीओ हरिद्वार ने जांच की। जिसकी रिपोर्ट में इस समिति के चुनाव को गलत बताया गया है तथा वित्तीय लेने-देन में बहुत अनियमितता पाई गई है।पीने का पानी विस्थापितों का पुनर्वास नीति के अनुसार हक है।सामुदायिक भवन, प्राथमिक स्कूल इमारत पर किसी नवोदय नगर विकास समिति का कब्जा है।यहां भी सड़क नही, सिंचाई व पीने के पानी की व्यवस्था, स्वास्थ्य केन्द्र, स्कूल व गन्दे नाले यानि ड्रेनेज की व्यवस्था नही है।
3. सुमननगर विस्थापित क्षेत्र की समस्यायेंः-
यहां पर भी सिंचाई व पीने के पानी की भयंकर समस्या है। जबकि मात्र 1किलामीटर के दायरे में टिहरी बांध से दिल्ली व उत्तर प्रदेश को पानी जाता है। 2-टिहरी बांध विस्थापितों के शहरी पुनर्वास स्थल नई टिहरी समस्यायें।
पीने के पानी की समस्या अभी भी गंभीर है। प्लाट, दुकान, मकान से लेकर पात्रता की समस्यायें भी अनसुलझी है। हजारों केस अनेक न्यायालयों में लंबित है। इन सबके लिये एक मानवीय दृष्टिकोण वाली समिति बना कर उसको हल करने की जरुरत है।
3-टिहरी बांध की झील के किनारे के गांवों की समस्यायें।
लगभग 40 गांवों में जमीन-मकान धसकने की स्थिति है।झील के आर-पार जाने आने के लिये सभी पुल अभी तक पूरे नही बने है। जिस कारण बरसात में ग्रामीणों को आर्थिक बोझ तो हुआ ही है साथ में उनके सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन पर भी बुरा असर आया है। जीवन का खतरा तो बढ़ा ही है। मजबूरी में लोग आधे डूबे चिन्याली सौड़ वाले पुल से आवाजाही करते है।सुप्रीम कोर्ट में जिनको मान्य किया था ऐसे 400 से ज्यादा परिवारों का भी पुनर्वास अभी तक नही हो पाया है।टिहरी झील में जमा हो रही रेत किनारे के गांवों में उड़कर जाने से लोगो के दैनिक जीवन में कठिनाई पैदा कर रही है। स्वास्थ्य की भी समस्यायें हुई है जिसका कोई मूल्याकंन तक नही हो रहा है। हमने इस समस्या के समाधान के लिये पहले भी राज्य सरकार को पत्र भेजा था। इस पत्र के साथ पुनः राज्य,केन्द्र व बांध कंपनी को पत्र भेज रहे है।ग्रामीण व्यापारियों की समस्याओं का भी निराकरण बाकी है।जिस सम्पाशर्विक नीति को सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने मान्य किया था उसका भी पालन नही हो रहा है।
यह लोग लगातार सरकारों से यह मांगे विभिन्न समयों पर उठाते आ रहे हैः-
विस्थापितों को मूलगांव जैसा ‘‘संक्रमणी जैड ए श्रेणी क‘‘ स्तर वाला भूमिधर अधिकार तुरंत दिये जाये। जिसके लिये सभी ग्रामीण पुनर्वास स्थलों को राजस्व ग्राम भी घोषित करने की प्रक्रिया में तेजी लाई जाये। जिसके लिये अलग से कर्मचारी नियुक्त किये जाये।हरिद्वार के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले टिहरी बांध विस्थापितों की शिक्षा,स्वाथ्यय, यातायात, सिंचाई व पेयजल और अन्य मूलभूत सुविधायें तुरंत पूरी की जाये। इन कार्यो के लिये टिहरी बांध परियोजना से, जिसमें कोटेश्वर बांध भी आता है, मिलने वाली 12 प्रतिशत मुफ्त बिजली के पैसे का उपयोग किया जा सकता है।टिहरी बांध से दिल्ली व उत्तरप्रदेश जाने वाली नहरों से बांध प्रभावितों को पानी मिलना चाहिये।पुनर्वास के लिये इंतजार कर रहे प्रभावितों का तुरंत पुनर्वास किया जाये।पुलों के निमार्ण कार्य में आ रही रुकावटों को दूर किया जाये।ऊर्जा मंत्रालय की नीति के अनुसार विस्थापितों को 100 यूनिट मुफ्त बिजली दिये जाने के प्रावधान को लागू करें।सभी कार्यों के लिये विस्थापितों की ही समितियां बनाकर काम दिया जाये ताकि कार्य की गुणवत्ता बने और सही निगरानी भी हो सके।चूंकि विस्थापन और पिछले तीन दशको से ज्यादा इन सुविधाओं के न मिलने के कारण यह लोग सामाजिक, आर्थिक,राजनैतिक, शैक्षिक रुप बहुत पिछड़ गये है। इसलिये टिहरी बांध के ग्रामीण पुनर्वास स्थलों पथरी भाग 1, 2, 3 व 4हरिद्वार को पिछड़ा क्षेत्र घोषित किया जाये।
इस समय केन्द्र, उत्तराखंड व उत्तरप्रदेश राज्यों में एक ही दल की सरकारें है। यह एक सुनहरा मौका है कि टिहरी बांध विस्थापितों की समस्याओं का समाधान आसानी से किया जा सके।
विस्थापितों का कहना है कि जिस तरह से पंचेश्वर के बांधों की शुरुआत के लिये बहुत ही तेजी से कार्यवाही हो रही है। ऐसे समय में टिहरी बांध विस्थापितों की समस्याओं का निदान पहली प्राथमिकता होनी चाहिये। उत्तराखंड में प्रस्तावित नये बांधों को बनाने से पहले कार्यरत बांधों के विस्थापन-पर्यावरण की समस्याओं का निदान आवश्यक व न्याय की मांग है।
टिहरी बांध 11 साल पहले चालू हो चुका है। 415 विस्थापितों का भूमि आधारित पुनर्वास आज भी बाकी है। ग्रामीण पुनर्वास स्थलों पानी ,स्वास्थ्य, शिक्षा, यातायात और अन्य सुविधाएं आज भी पूरी नहीहैं विस्थापितों को 2008 की ऊर्जा नीति के अनुसार 100 यूनिट बिजली प्रति माह नही मिलती। मुख्यधारा से कटे यह लोग आने वाले समय अपने प्रतिरोध को और अधिक बुलंद करेंगे तो हमारी संवेदनहीन सरकारें इन पर माओवादी अथवा चरम पंथी होने का ठप्पा लगाकर दमन पर उतर आएगी। समय रहते इन चीज समस्याओं का समाधान की जाने की जरुरत है।