शिव प्रसाद सेमवाल//
तथाकथित मुख्यधारा का प्रिंड या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उन्हीं के बारे में अच्छा-बुरा लिखता-दिखाता है, जिनका समाज में एक प्रोफाइल होता है। कमोबेश वही लोग मीडिया को पढऩे-देखने वाले होते हैं और उन्हीं लोगों द्वारा दिए जा रहे विज्ञापन के टुकड़ों से मीडिया की दाल-रोटी चलती है।
कुल मिलाकर एक वर्ग कह लीजिए या एक कॉकश, जिनके इर्द-गिर्द यह छपना-छुपाना चलता है। आम ग्रामीणों तक न तो अखबार-चैनल सही से पहुंचते हैं और न ही मीडिया को उन ‘डाउन मार्केट’ स्टोरीज में कोई दिलचस्पी होती है। एक विधायक को भी यह अच्छे से पता होता है कि उसकी कितनी पब्लिक तक अखबारों या डीटीएच केबल आदि से पहुंचने वाली खबरें पहुंचती हैं। एक साधारण ग्रामीण भी अगर एक व्हाट्सएप ग्रुप या फेसबुक की वाल पर ही गांव की विकास योजनाओं का हिसाब-किताब लिख दिया करें। योजना पर हो रहे कार्यों का मूल्यांकन भी दो लाइनों में लिखा जा सकता है या गांव में किसी भी तरह के कार्यक्रम आदि की सूचनाएं भी लिखी जा सकें तो इस तरह का व्हाट्सएप ग्रुप अथवा फेसबुक वाल ग्रामीणों को ज्यादा उपयोगी सूचनाएं दे सकता है। वरना आप दिनभर न्यूज चैनल देखते रहिए, शाम तक आप बता नहीं पाएंगे कि इन सूचनाओं का करें क्या! अधिकांश सूचनाओं का आम आदमी या ग्रामीणों की जिंदगी से कोई लेना-देना नहीं होता। मीडिया सेलिब्रिटी और सत्ता केंद्रों की चारणगिरी छोड़ नहीं सकता, मजबूरी है। दाल-रोटी उन्हीं से चलती है।
इस दौर के कई साफ छवि और मिशनरी भावना के कई पत्रकार हैं जो लालाओं के अखबारों से सिर्फ इसलिए निकाल दिए गए या नौकरी छोडऩे के लिए मजबूर कर दिए गए, क्योंकि उनकी खबरें विज्ञापनदाताओं और मीडिया मालिकानों के हितों को प्रभावित करने लग गई थी।
वेब पत्रकारिता का दौर आया तो लगा कि यह उन सैकड़ों पत्रकारों के लिए पत्रकारिता का सपना सच होने जैसा होगा, जो खबरों की कीमत पर बाजार और सरकार के इशारे पर कदमताल नहीं कर सकते। लिहाजा या तो मीडिया संस्थानों से बाहर हो जाने के लिए विवश हो गए अथवा अपना प्रकाशन शुरू करने के बाद या तो घाटे में चल रहे थे या फिर बाजार के माहौल में घुटन महसूस कर रहे थे।
वेब पोर्टल को संचालित करने में होने वाला खर्च काफी कम होने के कारण यह उम्मीद जगी थी कि मिशनरी पत्रकार बिना आर्थिक दबाव के अब और गंभीर और जन सरोकारों वाली पत्रकारिता कर सकेंगे, किंतु या तो मैं गलत था या फिर मेरा आकलन गलत था। वेब पोर्टल शुरू होते ही सत्ता ने उन्हें भी प्रलोभन में फंसा दिया। पिछली सरकार ने बाकायदा टेंडर निकाला और पोर्टल को जितने लोग विजिट करते हैं, उसके अनुसार उनकी ए-बी-सी कैटेगरी तय करके विज्ञापनों का लॉलीपॉप पकड़ा दिया। अधिकांश वेबपोर्टल इस राह पर ज्यादा से ज्यादा विजिटर बटोरने की होड़ में पड़ गए। इस होड़ में हो यह रहा है कि अधिकांश वेब पत्रकार रोज के अखबार को सुबह-सुबह कॉपी-पेस्ट करके अपने पोर्टल पर डाल कर सबको धकाधक व्हाट्स एप ग्रुप पर लिंक फारवर्ड कर रहे हैं या फेसबुक पर सौ-पचास
लोगों को टैग कर दे रहे हैं। सबके फोन एक जैसी खबरों के लिंक से भरे पड़े हैं।
इससे होगा यह कि कुछ समय पहले तक जो सुधि पाठक अखबारों और टीवी न्यूज की चारणगिरी से उकताकर गंभीर खबरों के लिए व्हाट्स एप ग्रुप बनाते थे और बाकायदा ताकीद करते थे कि इस ग्रुप में गुड मॉर्निंग, श्लोक, फोटोबाजी के बजाय सिर्फ न्यूज डालें, वही लोग फिर से ताकीद करने लगेंगे कि जो भी न्यूज के लिंक ग्रुप में डालेगा, उसे रिमूव कर दिया जाएगा। आजकल जो भी किसी की फेसबुक वाल पर न्यूज टैग करता है, उसे लोग अनफ्रेंड करने लगे हैं।
एक नया दौर शुरू हो रहा है जब तत्काल और खांटी खबर व्हाट्स एप ग्रुप में ही पढऩे को मिल रही है। लोग अखबार टीवी देखना छोड़ रहे हैं, क्योंकि खबरों की भूख तो व्हाट्स एप शांत कर दे रहा है। पहले वाले संचार माध्यम एकतरफा थे। अब वाले फेसबुक-व्हाट्स एप दोतरफा संयोजन के कारण अद्वितीय भूमिका में हैं। यह मूलभाव में लगभग मेरी श्यामपट वाली अवधारणा जैसा है। इसमें कोई भी संवाददाता बन सकता है और सूचनाओं का रियल टाइम आदान-प्रदान कर सकता है।
लगभग सभी कंपनियां प्रतिस्पद्र्धा के इस दौर में जितनी सस्ती दरों पर हाईस्पीड इंटरनेट डाटा उपलब्ध करा रही हैं और जितनी कम दरों पर बेहतरीन कैमरे वाले मोबाइल फोन वर्तमान में उपलब्ध हैं, वैसे पहले कभी न था। अगर वाकई किसी के खून में पत्रकारिता है तो यह दौर उसका स्वर्णिमकाल है। अगर आपमें भी है वो जोश और जुनून, जो वंचित तबके और हाशिये पर जी रहे समाज की आवाज को बुलंदी देने की ख्वाइश रखता हो तो हम पर्वतजन के रूप में आपकी अभिव्यक्ति को एक बेहतरीन और विश्वसनीय मंच प्रदान कर सकते हैं। आप हमें अपनी खबरें हमारे व्हाट्सएप नंबर 94120 56112 पर भेजकर हमें कॉल कर सकते हैं। अथवा आप खबरें फोटोग्राफ और वीडियो हमारी Email ID: [email protected] पर भी भेज सकते हैं।