कुलदीप एस राणा
इंद्रेश से आगे निकला जॉलीग्रांट
शुल्क वृद्धि पर शासन सरकार ने साधी चुप्पी
दोनों मेडिकल विश्वविद्यालयों ने सरकार द्वारा स्वीकृत फीस पर एडमिशन देने से किया इनकार।
सात लाख से 30 लाख बढ़ाई फीस सरकार और शासन को सूंघा सांप
एमडी की सीट पर दाखिला हेतु फीस पूर्ववत रखे जाने के सरकार के निर्णय से दोनों मेडिकल कॉलेज मुकर गए हैं।
दोनों मेडिकल कॉलेजों ने साफ कह दिया है कि सिर्फ बढ़ी हुई दरों पर ही एडमिशन दिया जाएगा।
गौरतलब है कि दाखिले की सालाना फीस ₹7लाख से बढ़ाकर 26 से 30लाख रुपए तक कर दी गई है।
12 april गुरु राम राय विश्वविद्यालय और हिमालयन विश्वविद्यालय में दाखिले का अंतिम दिन था। एक ओर सरकार ने साफ कर दिया था कि अब फीस पूर्ववत ली जाएगी। काउंसलिंग के बाद सरकारी कोटे में चयनित हुए छात्र जब अपनी फीस चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय में जमा करने के बाद महंत इंद्रेश विश्वविद्यालय पहुंचे तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें एडमिशन देने से साफ मना कर दिया और कह दिया कि उन्हें एडमिशन तभी दिया जाएगा जब वह पूरे ₹26लाख जमा करेंगे।
विश्व विद्यालय प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ जब कुछ छात्र कोर्ट गए तो कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि यह छात्र यह अंडरटेकिंग दे देते हैं कि उनकी फीस कोर्ट के फाइनल आदेश के अंतर्गत ही बढ़ाई घटाई जा सकेगी तो फिर वह सरकार द्वारा स्वीकृत धनराशि जमा कराने पर एडमिशन ले सकते हैं। किंतु यह अंडरटेकिंग सिर्फ उन्हीं छात्रों के लिए मान्य था जो कोर्ट गए थे।
जाहिर है कि इस पूरे सिलसिले में सरकार तमाशबीन की तरह तटस्थ होकर खड़ी है और छात्रों को मेडिकल माफिया अथवा कोर्ट की दया के भरोसे छोड़ दिया है।
पर्वतजन ने जब शासन को सरकार की इस गैर जिम्मेदारी से अवगत कराया तो शासन में हड़कंप मच गया और आनन-फानन में कोर्ट के आदेश को उन छात्रों पर भी लागू करने के लिए कहा गया जो कोर्ट नहीं गए थे। यह तो एक तरीके से आग पर पानी डालने वाली बात है किंतु यह स्थाई समाधान नहीं है।
सरकार जब निजी संस्थानों के हाथों की कठपुतली मात्र बन कर रह जाये तो शिक्षा व्यवस्था का क्या हाल होता है! उत्तराखंड राज्य दिन प्रति दिन इसका ज्वलंत उदाहरण बनता जा रहा है। सूबे की डबल इंजन सरकार द्वारा निजी विश्वविद्यालयों को मेडिकल की सीटों पर दाखिले हेतु स्वयं शुल्क निर्धारण का अधिकार दिए जाने से उत्पन्न स्थिति के बाद से तो जैसे निजी विवि को फीस पर लूट मचाने के हौसलों को जैसे पंख लग गए हों। सरकार यह बात क्यों नहीं समझ रही कि जब वह विश्वविद्यालयों के लिए कोई नियम लागू कर सकती है तो फिर उस नियम में कोई बदलाव करने अथवा वह नियम वापस लेने का अधिकार भी सरकार के पास सुरक्षित होता है।
सरकार के इस निर्णय से उत्पन्न स्थिति के बाद गुरु रामराय इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस(इंद्रेश) ,देहरादून द्वारा राज्य के एक अन्य निजी विवि हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (जॉलीग्रांट) ने इन्देश से भी दो कदम आगे बढ़ाते हुए अपने संस्थान में एमडी/एमएस/डिप्लोमा की सीटों पर दाखिले हेतु फीस की नई दरें घोषित करने के साथ ही एक तुगलकी फरमान भी जारी कर रखा है जिसके अंतर्गत अब एमडी /ऍम एस/ डिप्लोमा की सीटों पर दाखिला लेने वाले छात्रों को फीस की बढ़ी हुई दरों के साथ अपने शपथ पत्र में यह ” I agree to pay the tuition fees for the said coures as determine by the fees committee of swami Rama himaliyan umiversity and displayed in the website of university ” भी लिखकर देना होगा ,उक्त शपथ पत्र दिये बिना जॉलीग्रांट विवि किसी भी अभ्यर्थी को अपने संस्थान में प्रवेश नहीं देगा. इसी के साथ ही जॉलीग्रांट विवि ने शुल्क निर्धारण कमेटी द्वारा तय शुल्क व उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए बढ़ी हुई दरों के साथ नया फीस स्ट्रक्चर भी जारी कर दिया है जिसमे कोर्स के सन्मुख उसकी फीस कई गुना वृद्धि कर दर्शायी गयी है ।
जॉलीग्रांट विवि के इस निर्णय से वहां दाखिला लेने वाले मेडिकल के स्टूडेंट के साथ उनके परिजन भी सकते में हैं. उन्होंने तो सोचा था कि उत्तराखंड सरकार के फीस वृद्धि का फैसला वापस लेने के बाद जॉलीग्रांट विवि मेंं भी पूर्व निर्धारित दर पर ही दाखिले होंगे। लेकिन जब वह दाखिला लेने जॉली ग्रांट विश्वविद्यालय पहुंचे तो उन्होंने छात्रों को सरकार की दरों पर दाखिला देने से मना कर दिया और कहा कि हमने अपना फीस स्ट्रक्चर पहले ही विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपडेट किया हुआ है।” हम उसी दर से फीस लेंगे, अगर आपको एडमिशन लेना है तो निर्धारित शुल्क का 50% अभी जमा करना होगा। शेष धनराशि बाद में जमा करनी होगी।”
अभिभावक और छात्रों का कहना है कि आज दाखिले का अंतिम दिन था। हमने सरकार के निर्णय पर भरोसा करते हुए जॉली ग्रांट विवि का ऑप्शन चुना, यहां आकर पता चला कि फीस कहीं कम नहीं हुई है। अब इस अंतिम समय में हम कहीं और भी नहीं जा सकते हैं बीते चार-पांच दिनों में हमने एचएनबी चिकित्साशिक्षा विवि से लेकर निदेशक ,चिकित्सा शिक्षा तक गुहार लगाई लेकिन नतीजा सिफर ही रहा ।
इन चिकित्सा विश्वविद्यालय के इस रवैये से न सिर्फ मेडिकल के छात्र ही निराश हैं, बल्कि उनके परिजन भी हैरत में हैं ।क्योंकि इंद्रेश मेडिकल विवि के प्रकरण में जॉलीग्रांट विश्वविद्यालय का पक्ष रखते हुए विवि के कुलपति डॉ विजय धस्माना ने पत्रकार वार्ता कर खुद को पाकसाफ जताने की कोशिश करते हुए कहा था ,-“निजी संस्थानों की मनमानी पर अंकुश लगाने का सरकार को पूर्ण अधिकार है। हमने अपने विवि में नियम के तहत ही शुल्क का निर्धारण किया है।”
एक तरफ तो जॉलीग्रांट के वीसी नियम और कानून की बात करते हैं, वहीं सरकार के शुल्क वृद्धि आदेश को वापस लेने के बावजूद भी बढ़ी हुई दरों पर ही दाखिले को लेकर दबाव बना रहे है।
इससे पता चलता है कि चिकित्सा विश्वविद्यालयों ने किस तरह मेडिकल के छात्रों और सरकार की आंखों में धूल झोंकने का काम किया है।
सवाल यहाँ यह भी उठता है कि शुल्क वृद्धि विषय पर इंद्रेश विवि को नोटिस भेजने में तेजी दिखानी वाली सरकार अब जॉलीग्रांट के मुद्दे पर खामोशी क्यों ओढ़े हैं!
जबकि इसी सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने प्रेस वार्ता कर कहा था कि “कोई भी विवि अपनी मनमर्जी से शुल्क वृद्धि नही कर सकता है। निजी विवि ने किस नियम के तहत शुल्क बढ़ाया है इसकी जानकारी ली जा रही है. इस संबंध में कॉलेजों को नोटिस भी भेजा जा रहा है निजी विश्वविद्यालयों को नियंत्रित किया जाएगा किसी को भी मनमर्जी की इजाजत नहीं दी जाएगी।”
आखिर इन विश्वविद्यालयों के हौसले इतने बुलन्द कैसे हो गए कि वह सरकार और न्यायालय के आदेशों के विरुद्ध जाकर शुल्क वृद्धि का निर्णय ले रहा है इन हौसलों के पीछे जो कारण निकल कर आएं हैं, वे चौकाने वाले हैं।
जॉलीग्रांट विवि के हमारे सूत्रों ने बताया कि संस्थान में सूबे के वरिष्ठ मंत्रियों , शीर्ष आईएएस अधिकारियों ,विधायकों से लेकर न्यायाधीशों तक के बच्चे संस्थान में हैं,जिनके दम पर इन विश्वविद्यालयों को लगता है कि सरकार- शासन सब उनकी मुठ्ठी में है और वह जब चाहे अपनी मनमानी करता रहता है।
फीस की नई दरें लागू होने से जॉली ग्रांट विश्वविद्यालय में एमडी /एमएस की सीटों पर एडमिशन को लेकर परिजनों में संशय उत्पन्न हो गया है कि कैसे इतनी भारी भरकम रकम का इंतजाम किया जाये ।
इस सम्बन्ध में छात्रों ने हेमवंती नंदन चिकित्साशिक्षा विवि के रजिस्ट्रार व् निदेशक, चिकित्साशिक्षा को भी पत्र लिख कर उक्त प्रकरण से अवगत कराया है।
लेकिन HNB चिकित्सासा शिक्षा विश्वविद्यालय ने जॉली ग्रांट को उक्त प्रकरण पर नोटिस जारी करने के बजाए मात्र पत्र लिखकर अपना पल्ला झाड़ लिया ।
एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विवि के रजिस्ट्रार विजय जुयाल का कहना है कि हमने जॉलीग्रांट मेडिकल विवि को पत्र लिखा है कि संस्थान अपने शपथ पत्र केे प्रावधानों में संसोधन कर एचएनबी चिकित्साशिक्षा विवि की वेबसाइट में दर्शाये शुल्क अनुरूप ही प्रवेश देना सुनिश्चित करें ।
बहर हाल लब्बोलुआब यह है कि सरकार के जिम्मेदार अधिकारी थाईलैंड की यात्रा पर हैं और इधर चिकित्सा शिक्षा के छात्र छात्राओं को मेडिकल माफिया के भरोसे लूटने के लिए छोड़ दिया गया है।
सरकार के मीडिया कोऑर्डिनेटर दर्शन सिंह रावत का कहना है कि छात्रों के लिए अभी उम्मीद खत्म नहीं हुई है। वह दूसरी और तीसरी काउंसलिंग में भी भाग ले सकते हैं। तब तक स्थिति संभाल ली जाएगी। अब यह कोई नया जुमला है या फिर वह यह बात किसी मजबूत आधार पर कह रहे हैं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। आज की हकीकत तो यह है कि न्याय है कि उम्मीद में कोर्ट का ही सहारा लेना पड़ रहा है तो सरकार के पिछले दिनों किए हुए वादों और दावों का क्या दीन ईमान है ! क्या सरकार के आश्वासन पर फिर कभी जनता विश्वास कर पाएगी ! इससे सरकार की विश्वसनीयता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है!
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