उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार में नौकरशाहों के बेलगाम होने की खबर नई नहीं है। तमाम ऐसे अवसर आए हैं, जब नौकरशाहों के बेलगाम होने के कारण सरकार की छिछालेदर हुई है, किंतु सरकार ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया। जिस कारण इस प्रकार की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं।
ताजा मामला दो आईएएस अफसरों का आपस में भिडऩे का है। दरअसल निकाय चुनाव में लगातार हो रही देरी के मद्देनजर सरकार ने अब निकायों में प्रशासक बिठा दिए हैं। देहरादून नगर निगम की कमान जिलाधिकारी एस. मुरुगेशन के हाथ आते ही उन्होंने ऐसा निर्णय लिया कि विपक्षी दल कांग्रेस को सरकार पर हमला करने का अवसर मिल गया। एस. मुरुगेशन ने नगर निगम देहरादून प्रशासक का जिम्मा संभालते ही कुछ दिन पहले मेयर रहे विनोद चमोली द्वारा आठ लाख रुपए का गेट बनवाए जा रहे के पिलर को तुड़वा दिया। जिलाधिकारी एस. मुरुगेशन का कहना था कि यह पिलर न तो नियम कायदे से डिजाइन हुआ और न ही इसके टेंडर में नियमों का पालन हुआ। ठेकेदार का दावा है कि इसको बनाने में अभी तक उसके तीन लाख रुपए खर्च हो चुके हैं और अब इसकी भरपाई कैसे होगी।
ऐसा नहीं कि इस गेट के डिजाइन की खामी की जानकारी सिर्फ मुरुगेशन को तब हुई हो, जब वे प्रशासक बने। जिलाधिकारी रहते प्रतिदिन सैकड़ों शिकायतें जिलाधिकारी के पास आती हैं, किंतु उन पर अमल नहीं होता। आईएएस अफसरों की आपस में कितनी बनती है या इनके बीच कितना सामंजस्य रहता है, इसका ज्वलंत उदाहरण भी इस घटना में तब देखने को मिला, जब जिलाधिकारी गेट को गिरवाने का आदेश दे रहे थे, उस वक्त दूसरे आईएएस अधिकारी नगर आयुक्त वीके जोगदंडे नगर निगम में ही मौजूद थे। अर्थात गेट के निर्माण की टेंडर प्रक्रिया से लेकर उसकी डिजाइन और निर्माण की समस्त जानकारी आईएएस वीके जोगदंडे को थी।
एस. मुरुगेशन ने वीके जोगदंडे से पूछने की भी जुर्रत नहीं समझी और आनन-फानन में गेट गिरा दिया गया। जिस ठेकेदार के इस पर तीन लाख रुपए खर्च हो चुके हैं, उसे नहीं मालूम कि जो धनराशि खर्च हो चुकी है, वह कैसे मिलेगी, मिलेगी भी या नहीं मिलेगी।
कुल मिलाकर इस घटनाक्रम से आईएएस अफसरों के बीच सामंजस्य की भारी कमी सामने देखने को मिली है आौर संभवत: एक वर्ष के भीतर काम का माहौल न दिखाई देने के पीछे भी यही कारण रहा होगा।