कार्तिक उपाध्याय
“पहाड़ों को ठण्डो पाणि, कि भलि मीठी बाणी” आज भी इस गीत को सुनकर पहाड़ी होने पर गर्व महसूस होता है। आदरणीय कबूतरी देवी जी हमारे प्रदेश की पहली लोकगायिका। आज अपनी आवाज़ और बहुत सारे गीत हमारे बीच छोड़कर चली गई है। वर्ष 2004 में आपके प्रिय प्रकाशन पर्वतजन के द्वारा इन्हें लोक गायन के क्षेत्र में “पर्वतजन सम्मान” भी दिया गया था।
यह गीत नम कर देगा आंखें
आज फिर उत्तराखंड ने एक बहुत बड़ा कलाकार खोया है।आज फिर दिल एक सदमे में हैं। मित्रों कबूतरी देवी जी का एक मात्र पुत्र भी उत्तराखंड पहाड़ से पलायन कर गया, लेकिन आदरणीय कबूतरी देवी जी को पहाड़ छोड़ना मंजूर ही नहीं हुआ। कुछ ऐसा लगाव था उन्हें देवभूमि से।
कबूतरी देवी मूल रुप से सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के मूनाकोट ब्लाक के क्वीतड़ गांव की निवासी हैं। जहां तक पहुंचने के लिये आज भी अड़किनी से 6 कि.मी. पैदल चलना पड़ता है। इनका जन्म काली-कुमाऊं (चम्पावत जिले) के एक मिरासी (लोक गायक) परिवार में हुआ था। संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने गांव के देब राम और देवकी देवी और अपने पिता श्री रामकाली जी से ली, जो उस समय के एक प्रख्यात लोक गायक थे। लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली। पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरन्तर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग है। विवाह के बाद इनके पति श्री दीवानी राम जी ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया। उस समय तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थीं। 70 के दशक में इन्होंने पहली बार पहाड़ के गांव से स्टूडियो पहुंचकर रेडियो जगत में अपने गीतों से धूम मचा दी थी।
उत्तराखंड के लोकगीतों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाली पहली लोकगायिका श्रीमती कबूतरी देवी जी का निधन होना एक सदमे सा है। नमन ।
मुख्यमंत्री जी से अनुरोध है कि कबूतरी देवी जी का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाए।
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