इन्वेस्टर्स मीट को लेकर उत्साहजनक परिणाम न मिलने के कारण हो रही आलोचनाओं से घिरे सीएम अब अपना आपा खोने लगे हैं।
आज मीडिया से एक सवाल पर बौखलाए सीएम ने यहां तक कह दिया कि “किसी के पेट में पीड़ा हो रही है और शूल चुभ रहे हैं तो मतलब सरकार अच्छा काम कर रही है।” लोग CM के इस बयान पर अपनी अपनी तरह से चुटकियां ले रहे हैं।
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उनकी यह शार्ट टेंपर्ड छवि उन्हें और आलोचनाओं का शिकार बना रही है। पिछले दिनों इन्वेस्टर्स मीट को लेकर कांग्रेस ने उन पर निशाना साधा तो भाजपा के कुछ नेता भी दबी जुबान में यह आलोचना करते नजर आए कि इधर प्रदेश में आपदा आ रखी है और उधर सी एम साहब इंवेस्टर्स मीट में रोड शो करने में लगे हुए हैं।
सिंगापुर की इंवेस्टर्स मीट में पत्नी और बच्चों सहित उनका एक फोटो वायरल होने के बाद लोग सोशल मीडिया में यह व्यंग्य भी कसने लगे कि “सीएम साहब ने पूरे परिवार को प्रदेश में निवेश लाने के लिए झोंक रखा है।ऐसे में अब उन्हें निकम्मा सीएम नहीं कहना चाहिए।”
गौरतलब है कि इंवेस्टर्स मीट में परिवार के अलावा ऐसे अफसर भी पहुंच रहे हैं, जिनका इन्वेस्टमेंट से कोई लेना-देना नहीं है और ना उनके पास पास ऐसे कोई विभाग हैं।
निवेशकों को बुलाने वाली टीम के साथ सीएम का परिवार
इंवेस्टर्स मीट की तैयारियों में लगे हुए सरकारी अफसर ही दबी जुबान में यह बात कह रहे हैं कि देहरादून में होने वाले इस आयोजन का खर्चा लगभग ढाई सौ करोड़ रुपए रखा गया है, लेकिन इसके खर्च के मुकाबले 200 करोड़ रुपए का निवेश आना भी मुश्किल लग रहा है। अधिकारी भले ही सामने कुछ ना कह रहे हो लेकिन पीठ पीछे यह जरूर कह रहे हैं कि भला रोड शो करने से इन्वेस्टर्स कैसे आएगा !
जब इस प्रदेश में जिन चीजों के लिए इन्वेस्टमेंट लाने की बात हो रही है, उनसे संबंधित ना कोई नीति सरकार ने अभी तक बनाई है और न कोई ऐक्ट ! ऐसे में इनवेस्टर्स पूछ रहे हैं कि निवेश के लिए आप की क्या नीति है ! और सरकार के कर्ताधर्ता बगलें झांक रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड में लोगों के पास जो भूमि है, वह कृषि भूमि है। इस पर कोई भी स्वरोजगार का काम जैसे कि होम स्टे योजना को ही ले लीजिए इसके लिए जब उद्यमी बैंक में लोन लेने जाता है तो बैंक उनसे कहता है कि पहले इस जमीन को 143 कराइए। अर्थात इसका लैंड यूज कृषि से बदलकर अकृषि कराइए।
एन एच 74 के मामले से नाराज और घबराए अफसर 143 कराने में बिल्कुल भी रुचि नहीं ले रहे हैं।
एनएच 74 घोटाले के खुलासे के बाद से ऐसे सैकड़ों मामले लंबित हैं, जिसमें SDM ने 143 की परमिशन ही नहीं दी। जब तक सरकार इन मूलभूत समस्याओं को हल करने में रुचि नहीं लेती, तब तक इन्वेस्टर्स मीट के लिए तमाम रोड शो महज ड्रामा बाजी से अधिक कुछ नहीं है।
इन्वेस्टर्स मीट के लिए किए जा रहे कार्यक्रमों को देशभर में कोई तरजीह नहीं मिल रही है। इसका एक उदाहरण यह भी है कि पिछले दिनों बैंगलुरू में सरकार ने इन्वेस्टर्स मीट के लिए एक आयोजन रखा था और इसके लिए बेंगलुरु के अखबारों में संपूर्ण पृष्ठ के रंगीन विज्ञापन लाखों रुपए खर्च करके छपवाए गए, लेकिन मीडिया ने अगले दिन सरकार के इस कार्यक्रम की दो लाइन तक अखबारों में नहीं लिखी। ऐसे में निवेशक सरकार के इस कार्यक्रम को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं, यह समझा जा सकता है।
इन्वेस्टर्स मीट के लिए निवेशकों को लुभाने के लिए किए जा रहे कार्यक्रमों के फीके रिस्पांस के कारण मुख्यमंत्री का गुस्सा लाजमी है लेकिन यह गुस्सा इस तरह से फूट पड़ेगा, किसी को अंदाजा न था।
आज मीडिया से रूबरू होते हुए मुख्यमंत्री से जब इस विषय में बात की गई तो उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोगों के पेट में दर्द हो रहा है और शूल चुभ रहे हैं तो इसका मतलब है कि सरकार अच्छा काम कर रही है।
उत्तरा प्रकरण के बाद अचानक जब तब आपा खोने वाले मुख्यमंत्री अब अक्सर तुनकमिजाजी पर उतर आ रहे हैं।
त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि हम बिना विपक्ष के आरोपों की परवाह किए हुए प्रदेश के लिए कुछ अच्छा कर रहे हैं तो विरोधियों से यह पच नहीं रहा है।
किंतु हकीकत यह है कि इन्वेस्टर्स मीट और रोड शो को बहुत ही फीका रिस्पांस मिल रहा है। इन्वेस्टर्स के पास यह फीडबैक भी है कि सिडकुल के अंतर्गत लगी फैक्ट्रियां अपना बोरिया बिस्तर समेट रही हैं। तथा चमोली उत्तरकाशी जैसी जगहों पर जो औद्योगिक आस्थान स्थापित किए गए थे, उनमें प्लॉट लेने के सात-आठ साल बाद भी उद्यमियों ने कोई भी कार्य शुरू नहीं किया है। इसमें यह प्राविधान भी रखा गया था कि यदि 3 साल के अंदर-अंदर उद्योग शुरू नहीं किए गए तो प्लॉट कैंसिल कर दिया जाएगा। लेकिन कोई भी कार्यवाही करने के बजाय सरकार उद्यमियों को रिमाइंडर पर रिमाइंडर दे रखी है और आवंटन निरस्त करने की चेतावनी भी दे रही है लेकिन इसके बावजूद यह सरकार की नीतियों में खामियां ही होंगी कि कोई भी उद्यमी इन औद्योगिक आस्थानों में निवेश करने को राजी नहीं है।
हकीकत यह भी है कि उत्तराखंड में सोप स्टोन की बागेश्वर आदि की खदानों से खड़िया खनन की सामग्री राजस्थान जा रही है किंतु इससे संबंधित उद्योग लगाने में सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है। जबकि जिन उद्योग धंधों से संबंधित संसाधन तथा कच्चा माल इस राज्य में बाहर से मंगाने की मजबूरी है, उन उद्योगों के लिए कई प्रोत्साहन वाली नीतियां लागू है। तथा टैक्स पर भी काफी छूट दी जाती है। यही कारण है कि उद्योगपति यहां पर औद्योगिक उत्पादन करने के बजाय सिर्फ टैक्स की छूट का लाभ लेने के लिए उत्तराखंड की मुहर का इस्तेमाल करते हैं तथा केवल पैकिंग उत्तराखंड के नाम की करते हैं। जिससे उत्तराखंड को कोई फायदा नहीं हो रहा है।
यही कारण है कि निवेशकों को लुभाने की हवा हवाई तैयारियों के कारण इस पर विपक्ष ही नहीं बल्कि भाजपा के अंदर से ही सवालिया निशान लग रहे हैं। तथा इन्वेस्टर्स मीट की आयोजन समिति में जो हाई पावर कमेटी बनी हुई है, उसमें शामिल अफसर ही इसकी आलोचना कर रहे हैं और इसे महज एक पिकनिक से ज्यादा कोई तरजीह नहीं दे रहे हैं।