विनोद कोठियाल
देहरादून के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सहस्त्रधारा वन भूमि पर अवैध कब्जों के लिए काफी कुख्यात हो चुका है।
समय-समय पर सहस्त्रधारा क्षेत्र अवैध कब्जों और फॉरेस्ट की वन भूमि पर कब्जों के लिए चर्चा में रहा है। परंतु वर्तमान में यह चर्चा किसी और की न होकर वन विभाग के ही एक आला अधिकारी द्वारा वन भूमि पर कब्जा होने के बाद प्रकाश में आया।
इस वरिष्ठ अधिकारी ने वन विभाग की भूमि को कब्जे में लेकर कमर्शियल प्रयोग हेतु अपने लिए एक रिजार्ट बना डाला।
स्थानीय लोगों ने इसकी शिकायत वन विभाग के मुखिया जयराज से भी की परंतु अभी तक केवल विभागीय सर्वे के अलावा कोई भी कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई। जबकि विभाग की सर्वे रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि अधिकारी द्वारा वन विभाग की भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है।
सहस्त्रधारा में दिन प्रतिदिन पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखकर पर्यटन व्यवसायियों द्वारा नए-नए रिजोर्ट तथा होटल बनाये जा रहे हैं। इसी प्रकार वन विभाग के एक डीएफओ द्वारा भी इस रिजोर्ट के नाम से एक रिजोर्ट बनाया गया। आईएफएस उपाध्याय ने लगभग 2 बीघा से अधिक की वन भूमि को कब्जा करके इसका कॉमर्शियल प्रयोग किया जा रहा है। वन विभाग के डीएफओ इंद्रेश उपाध्याय ने इस रजोर्ट की जमीन की रजिस्ट्री अपनी पत्नी और अपने नाम की है। परंतु रजिस्ट्री में मात्र एक बीघा जमीन के लगभग ही है, जबकि रिजॉर्ट काफी अधिक जमीन पर फैला हुआ है। ऐसे में सवाल है कि जब रजिस्ट्री की जमीन उतनी नहीं है तो रिजॉर्ट इतनी अधिक भूमि पर कैसे फैला हुआ है !
हालांकि इस विषय पर डीएफओ इंद्रेश उपाध्याय का कहना है कि मेरे द्वारा जितनी जमीन की रजिस्ट्री की गई है वहां अभी तक भी पूरा कब्जा मेरे पास नहीं आया है। परंतु स्थलीय निरीक्षण कर स्थिति कुछ और ही बयां करती है। विभाग द्वारा सर्वे करा कर अपना काम कर दिया है।
अब गेंद राजस्व विभाग के पाले में डाल दी है। सवाल यह है कि जब अन्य जगह कब्जे होते हैं तो विभाग द्वारा तुरंत कार्रवाई की जाती है, परन्तु यह मामला वन विभाग के ही उच्च अधिकारियों से जुड़ा होने के कारण इस पर लीपा-पोती की जा रही है।
सत्ताधारी पार्टी से है कनेक्शन
बताया जा रहा है कि इस अधिकारी की सत्ताधारी पार्टी से भी काफी गहरा कनेक्शन है, जिसके कारण ऊंची पहुंच पकड़ के चलते इस मामले को दबाया जा रहा है। डी एफ ओ उपाध्याय की ऊंची पकड़ का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वरिष्ठता सूची मे नीचे स्थान होने पर भी पदोन्नति पहले हो गयी जो कि विभाग में काफी चर्चा का विषय रहा। काफी शिकायतों के बाद आखिरकार शासन को अन्य लोगों को भी पदोन्नति देनी पड़ी। आखिर कौन नेता है जो विभाग के अनुशासन हीन अधिकारियों और घोटाले बाजों को बचा रहा है !
यही नहीं इसके अलावा भी तमाम तरह के उदाहरण है जो यह साबित करता है कि विभाग में गहरा राजनैतिक हस्तक्षेप है। ऐसे ही आरोपों से घिरे एक वन विभाग के आला अधिकारी को मन माफिक पोस्टिंग और दो जगह का अतिरिक्त कार्यभार दिया है जबकि अभी उस अधिकारी पर विजिलेंस जांच चल रही है।
अब देखना यह है कि उपरोक्त प्रकरण पर विभाग कुछ ठोस कार्यवाही करता है कि कब्जाधारियों के आगे नतमस्तक होकर इसे भविष्य के लिए नजीर बनाता है।