हुजूर की ‘पेरासिटामोल’ नहीं बचा पाई हंसती खेलती जिंदगी मुख्यमंत्री की विधानसभा में ज्योति को डेंगू से मिली मौत!
राजेश शर्मा
देहरादून। कोई माने या न माने मौजूदा समय में उत्तराखण्ड के अंदर डेंगू की बीमारी एक महामारी बन चुकी है क्योंकि तापमान में आ रही गिरावट के बावजूद इसके मरीजों की संख्या का ग्राफ रूकने का नाम नहीं ले रहा है?
धीरे-धीरे यह बीमारी जानलेवा होती जा रही है और जो कारण सामने आ रहे वह यह कि मरीजों को उपयुक्त इलाज नहीं मिल पा रहा है? राज्य का स्वास्थ्य महकमा सरकार के मुखिया के हाथों में है बावजूद इसके इस विभाग की व्यवस्थाएं पटरी पर आने का नाम नहीं ले रही? डेंगू को लेकर हुजूर दावा करते है कि राज्य में इस बीमारी ने महामारी का रूप नहीं लिया है और इसका इलाज तो पेरासिटामोल की बड़ी डोज़ लेकर भी संभव है?
हुजूर का यह कथन उस समय हास्यास्पद लगता है जब डेंगू के बढ़ते आंकड़ों की तरफ नजर जाती है और इस बीमारी से हुई मौतों की संख्या सामने आती है? कितनी हैरानी वाली बात है कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी जिनके कंधों पर है वह ऐसी बयानबाजी कर रहे है जो कहीं न कहीं मरीजों के मनोबल को गिराने का काम कर रही है? डेंगू से मरने वाले की संख्या में एक मरीज का इजाफा उस समय हो गया जब 18 अक्टूबर को एक पीड़ित महिला अपने परिजनों के साथ एंबुलेंस से समूची राजधानी में आईसीयू तलाशती रही है लेकिन उसे किसी भी अस्पताल में आईसीयू न मिला, जिसका नतीजा यह हुआ कि डेंगूं से पीड़ित महिला पे एंबुलेंस के अंदर ही अपनी आखिरी सांस ली।
महिला की मौत से यह सवाल उभर कर सामने आता है कि आखिर उसकी मौत का जिम्मेदार कौन है, डेंगू या सिस्टम? हुजूर कहते है कि यह बीमारी पेरासिटामोल के हेवी डोज़ से ठीक हो जाती है लेकिन हकीकत यह है कि हुजूर की पेरासिटामोल एक हसती खेलती को बचा न सकी, जो यह साबित करने के लिए काफी है कि राज्य में डेंगू के डंक को कुचलने में हुजूर पूरी तरह से फेल साबित हुए है?
कितनी हैरानी वाली बात है कि मुख्यमंत्री की विधानसभा डोईवाला में एक व्यापारी महिला को डेंगू हुआ और उसे इलाज की जगह मौत मिली। ऐसे में सवाल उठता है कि राज्य के मुखिया अपनी ही विधानसभा की जनता को डेंगू के डंक से नहीं बचा पा रहे है तो राज्य की जनता को क्या बचाएंगे? उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड के इतिहास में पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है जब राज्य में डेंगू महामारी का रूप ले गया लेकिन स्वास्थ्य महकमे के मुखिया त्रिवेन्द्र सिंह रावत की नजर में डेंगू एक आम बीमारी है और उन्होंने विश्व विख्यात डॉक्टर की तरह राज्यवासियों को सलाह दे दी कि यह बीमारी तो पेरासिटामोल की हेवी डोज़ से ठीक हो जाती है? मुख्यमंत्री को राज्य में डेंगू से हो रही मौतों का आंकड़ा शायद मजाक नजर आ रहा है, जिसके चलते वह इस प्रकार की बयानबाजी करने से पीछे नहीं हट रहे? गजब बात तो यह है कि इस बीमारी को लेकर उत्तराखण्ड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य भी चिंतित नजर आई थी और उन्होंने प्रशासन के अधिकारियों को तलब करते हुए डेंगू की रोकथाम के लिए निर्देश दिए थे।
राज्यपाल के निर्देशों के बावजूद भी उत्तराखण्ड सरकार के हाकिम डेंगू की महामारी को रोकने के लिए किसी बड़े मिशन के तहत आगे आए हो ऐसा देखने को नहीं मिला और यहीं कारण है कि राजधानी व हल्द्वानी में डेंगू के दानव ने कुछ जिंदगियों को आकाल मौत दे दी? इन मौतों का जिम्मेदार कौन है, इसपर राज्य के हाकिम कब जनता को जवाब देंगे?
बता दें कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की विधानसभा के हंसुवाला में आशू जयसवाल डोईवाला चौक पर अपनी पत्नी ज्योति जयसवाल के साथ कपड़े की दुकान चलाते है। बताया जा रहा है कि 14 अक्टूबर को आशू जयसवाल अपनी पत्नी व परिवार के साथ विकासनगर में एक शादी समारोह में गए हुए थे और वहां से लौटने के बाद ज्योति जयसवाल के सिर में दर्द हुआ और अगले दिन जब उनका टेस्ट कराया गया उसमें डेंगू की पुष्टि हुई। जिसके बाद परिवार ने ज्योति को डोईवाला के जॉलीग्रांट अस्पताल में भर्ती कराया और तीन दिन बाद वहां के डॉक्टरों ने परिवार को कहा कि ज्योति की प्लैटलेट्स गिर रही है और उसे सांस लेने में दिक्कत आ रही है और उनके पास आईसीयू वार्ड नहीं है। इसलिए उसे कैलाश अस्पताल ले जाएं।
बताया जा रहा है कि जॉलीग्रांट अस्पताल में सहसपुर से एक मरीज को लेकर 108 एंबुलेंस आ रखी थी। इसके चालक से आशू ने गुहार लगाकर अपनी पत्नी को अस्पताल ले जाने के लिए कहा। जिसके बाद ज्योति को उसका पति व परिवार के लोग पहले कैलाश अस्पताल ले गए जहां आईसीयू रूम न मिलने के कारण परिवार के लोग शहर के कुछ जाने माने प्राइवेट अस्तपालों में ले गए लेकिन किसी में भी आईसीयू रूम नहीं मिला और जब कुछ घंटों बाद जीएमएस रोड पर स्थित केशव अस्पताल में ज्योति को ले जाया जा रहा था तो अस्पताल से कुछ दूर पहले ही 35 वर्षीय ज्योति जयसवाल ने दम तोड़ दिया।
ज्योति की आकाल मौत ने उत्तराखण्ड सरकार के माथे पर डेंगू से होने वाली मौतों का एक और दाग लगा दिया? ज्योति के परिवार की आंखों में सरकार की नाकामी को लेकर गुस्सा और आंसू थे कि अगर उसे समय रहते आईसीयू रूम मिल जाता है तो ज्योति आज जिंदा होती?