१६-१७ वर्षों से प्रदेश में अभाव में रहकर भीषण आपदाओं में रात-दिन न देखकर राहत एवं बचाव कार्य करने वाले आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के कर्मचारियों पर बर्खास्तगी की तलवार लटक गई है। इस बात की पूरी संभावना है कि आगामी १२ जुलाई को होने वाली कैबिनेट बैठक में आपदा न्यूनीकरण प्रबंधन केंद्र को समाप्त करने और इसमें कार्यरत लगभग ५२ कर्मचारियों को हटाने में सहमति बन जाएगी।
आज दिनांक ७ जुलाई को ५ बजे सचिवालय में १०-१५ हजार की मामूली तनख्वाह पर काम कर रहे इन कर्मचारियों की बर्खास्तगी के प्रस्ताव पर मुख्य सचिव से लेकर सचिव स्तर के अफसर एसी कमरों में बैठकर हस्ताक्षर कर देंगे। बर्खास्तगी की तलवार पर लटक रहे ये कर्मचारी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर सभी उच्चाधिकारियों से मिल चुके हैं, किंतु उनके हाव-भाव से ऐसा लगता है कि ये उन्हें मीठी गोली देकर आखिर करेंगे वही जो उनके उनके मन में है।
ये वही आपदा राहत कर्मी हैं, जिन्होंने वर्ष २०१३ की केदारनाथ आपदा से लेकर उससे पहले २०१० और ११ की ऊखीमठ, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी की भीषण आपदाओं में खोज, राहत और बचाव कार्य करते हुए कभी रात-दिन नहीं देखा, नींद-भूख नहीं देखी और जान की बाजी लगाकर उत्तराखंड को आपदा से राहत दिलाने के लिए लगातार कार्य किया। अपनी जवानी के स्वर्णिम दिन आपदा राहत के कार्यों में दे चुके इन कर्मचारियों में कोई नेशनल स्की प्लेयर है तो किसी का नाम लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज है तो कइयों ने कॉमेट पर्वत से लेकर उत्तराखंड की दुर्गम पहाडिय़ों को नापा है। इन कर्मचारियों ने एसडीआरएफ से लेकर तमाम पुलिस कर्मियों को कई-कई बार आपदा खोज एवं बचाव कार्यों की ट्रेनिंग भी दी है। कई युवतियां हैं, जिन्होंने इस काम में दिली लगन होने के कारण अब तक विवाह तक नहीं किया।
अब जब वल्र्ड बैंक से हजारों करोड़ रुपए लोन मिल रहा है तो उत्तराखंड शासन में बैठे अफसर एसडीआरएफ और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण सरीखे ढांचों को गठित करने जा रहे हैं। इसमें अफसरों के और नेताओं के चहेते लोगों की नियुक्ति करने की दृष्टि से १६-१७ सालों से कार्यरत कर्मियों को बाहर का रास्ता दिखाने की पूरी तैयारी हो गई है। अब जबकि ये लोग कहीं और रोजगार की दृष्टि से ओवर एज भी हो गए हैं, ऐसे में इनको बर्खास्त करना कितना न्यायोचित है तथा इसके पीछे क्या मंशा है, यह तो शासन के अफसर ही बेहतर बता सकते हैं।
अन्य राज्यों में यह व्यवस्था है कि आपदा प्रबंध प्राधिकरण के साथ-साथ आपदा न्यूनीकरण केंद्र भी काम कर रहे हैं। ऐसी व्यवस्था हिमाचल, पंजाब, उड़ीसा और बिहार सहित कई राज्यों में है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम २००५ की धारा १८ व १९ के अनुसार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण सिर्फ एक परामर्शी संस्था है। वह केवल नीति, योजनाएं बनाने और दिशा-निर्देश तैयार करने के कार्य कर सकती है। ऐसे में अधिकारी नए बनने जा रहे आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को कार्यदायी अधिकार नहीं दे सकते। जिन कर्मियों को बर्खास्त किया जा सकता है, उन कुल ५२ कर्मियों में से २२ कर्मी मुख्य प्रशिक्षक हैं, जिन्होंने विकट परिस्थितियों में खोज एवं बचाव कार्य करने का कोर्स किया है तथा इन्हें प्रशिक्षण देने और बचाव कार्य करने का १० साल से अधिक का अनुभव है। यदि सरकार इनके प्रति थोड़ी भी संवेदनशीलता दिखाए तो इन्हें जिला आपदा प्रबंधन विभागों में समायोजित तो कर ही सकती है।
सरकार पलायन दूर करने को लेकर आयोग गठित करने जैसे दावे तो करती है, किंतु जो लोग न्यूनतम वेतन पर किसी तरह परिवार चला रहे हैं, उनकी रोजी-रोटी पर इस तरह का तुषारापात पलायन को ही बढ़ावा देगा।