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असफलताओं को ढकने के लिए गैरसैंण की घोषणा

आखिर गैरसैंण स्थाई राजधानी बनाने पर परहेज क्यों? ग्रीष्मकालीन राजधानी के दूरगामी खतरनाक परिणाम

March 6, 2020
in पर्वतजन
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उमेश कुमार

सीएम त्रिवेन्द्र ने न्यूनतम पर पंहुच चुकी अपनी लोकप्रियता और जाती कुर्सी को बचाने के लिए खेला गैरसैंण का कार्ड उत्तराखंड की जनता भारी पडऩे वाला है जिसकी कल्पना आप कर भी नहीं सकते। हमारे उत्तराखण्ड में नेताओं को ठंड ज्यादा लगती है तो वो सर्दियों में गैरसैंण नहीं रह सकते। इसका हल सीएम त्रिवेन्द्र ने निकाला कि गर्मियों में गैरसैंण रहना और सर्दियों में देहरादून।
कुछ मुख्य समस्याएँ…राजधानी यानि सचिवालय, सभी सरकारी ऑफिस, निदेशालय को शिफ्ट करना। जिसका देश-दुनिया में सबसे भयावह उदाहरण जम्मू और श्रीनगर है । शिफ्ट करने हेतु एक महीने का समय सभी फाईलों को पैक करने, एक महीना उन फाइलों को खोलने और सेट करने में लगता है। यह प्रक्रिया एक साल में दो बार की जाती है यानि 12० दिन मतलब 4 महीने। राज्य के विकास संबंधी सभी फाइलें बंद रहते है जिसके चलते राज्य का विकास और लोगों के सभी कार्य ठप्प हो जाते है।इंटर्नेट के जमाने में एक महीना सभी प्रकार के सम्पर्क टूट जाएँगे।दूसरा राजधानी शिफ्ट करने में लगभग 45० करोड़ का खर्च आता है। पहले से कर्ज में डूबा राज्य 450 करोड़ हर वर्ष कैसे झेलेगा। राजधानी की सभी कार्यालयों कीे फाइलों को पैक करने और खोलने पर लगभग 35 करोड़ का खर्चा आता है। राजधानी शिफ्ट करने के दौरान सैंकड़ो महत्वपूर्ण फाइलें गुम हो जाती है जिनका नुकसान आम आदमी को झेलना पड़ता है। जम्मू और कश्मीर में आज भी लोग अपनी फाइलों के लिए भटकते मिल जाएंगे। लगभग एक लाख कर्मचारियों को एक राजधानी से दूसरे में शिफ्ट करने पर उनका टीए-डीए का बोझ तथा 15 दिन का वैतनिक अवकाश । अब लगभग एक लाख अधिकारियों व कर्मचारियों के कार्यालय व आवासीय क्षेत्र का इंफ्रास्ट्रकचर तैयार करने में लगभग 2० से 25 हजार करोड़ खर्चा आएगा। वहीं दोनो राजधानियों के इंफ्रास्ट्रकचर की रखरखाव का खर्चा दोगुना हो जाएगा। दोहरा चरित्र दिखाकर कर्ज में डूबी जनता पर और कर्ज बोझ डालने का काम सरकार ने किया है। मूलभूत ढांचे के लिए पिछले 2० साल से जूझ रहा राज्य जिसकी विधानसभा आज भी सीडीओ कार्यालय और सचिवालय आईटीआई के कार्यालय में चलता है ।अब पुन: लगभग एक लाख कर्मचारियों के काम करने, रहने और यातायात की व्यवस्था कैसे करेगा यह बड़ा सवाल है? आखिर यह खेल क्यों खेला सीएम त्रिवेन्द्र ने? क्या बिना सोचे समझे लिया गया निर्णय है? आखिर गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने में क्या परेशानिया थी? इस शिफ्टिंग प्रक्रिया में अधिकारियों व कर्मचारियों के स्कूल पढऩे वाले बच्चों के सामने एक बड़ा संकट आकर खड़ा होगा क्योकि वह तो अपनी पढ़ाई छोड़कर गैरसैंण जा नहीं सकते और उनके माता पिता जब वहां जाएंगे तो बच्चे की परवरिश कौन करेगा यह भी एक बड़ा सवाल सामने आ रहा है? मुख्य तौर पर देखा जाए जाए तो सीएम त्रिवेन्द्र का राजनीतिक लड्डू रूपी यह फैसला काफी घातक है और इसके परिणाम राज्य को डाइबिटीज़ के रूप में देखने को मिलेंगे। यह काम जो सीएम त्रिवेन्द्र कर गए है, इसका नतीजा एक भयानक समस्या के रूप में राज्य की जनता के सामने आने आने वाला है? हो सकता है कि आज लोगों को कुछ पल की खुशी और सीमए त्रिवेन्द्र को लोकप्रियता मिले लेकिन परिणाम सुखद नहीं होंगे। मेरा मत है कि गैरसैंण को स्थाई राजधानी होना चाहिए। शहीदों के सपनों और आंदोलनकारियों की भावनाओं के अनुरूप पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैंण ही होनी चाहिए क्योंकि इस राज्य का निर्माण हुआ ही बात को लेकर था कि जब राज्य बनेगा तो राजधानी गैरसैंण ही बनाई जाएगी। आखिर गैरसैंण स्थाई राजधानी बनाने पर परहेज क्यों?
ग्रीष्मकालीन राजधानी के दूरगामी खतरनाक परिणाम
सीएम त्रिवेन्द्र ने न्यूनतम पर पंहुच चुकी अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए गैरसैंण का कार्ड राज्य की जनता भारी पडऩे वाला है जिसकी कल्पना आप कर भी नहीं सकते। देश में दो राजधानी का चलन अंग्रेजों ने जम्मू और कश्मीर में किया था क्योंकि अंग्रेज गर्मी नहीं झेल सकते थे इसलिए गर्मी-गर्मी वो श्रीनगर में अपना सचिवालय रखते थे जैसे हमारे उत्तराखण्ड में नेताओं को ठंड ज्यादा लगती है तो वो सर्दियों में गैरसैंण नहीं रह सकते। इसका हल सीएम त्रिवेन्द्र ने निकाला कि गर्मियों में गैरसैंण रहना और सर्दियों में देहरादून।
कुछ मुख्य बातें: एक राजधानी यानि सचिवालय, सभी सरकारी ऑफिस, निदेशालय को शिफ्ट करना। जम्मू और श्रीनगर शिफ्ट करने हेतु एक महीने का समय सभी फाईलों को पैक करने, एक महीना उन फाइलों को खोलने और सेट करने में लगता है। यह प्रक्रिया एक साल में दो बार की जाती है यानि 12० दिन मतलब 4 महीने। राज्य के विकास संबंधी सभी फाइलें बंद रहते है जिसके चलते राज्य का विकास और लोगों के सभी कार्य ठप्प हो जाते है। दूसरा राजधानी शिफ्ट करने में लगभग 45० करोड़ का खर्च आता है। पहले से कर्ज में डूबा राज्य 45० करोड़ हर वर्ष कैसे झेलेगा। राजधानी की सभी कार्यालयों कीे फाइलों को पैक करने और खोलने पर लगभग 35 करोड़ का खर्चा आता है। राजधानी शिफ्ट करने के दौरान सैंकड़ो महत्वपूर्ण फाइलें गुम हो जाती है जिनका नुकसान आम आदमी को झेलना पड़ता है। जम्मू और कश्मीर में आज भी लोग अपनी फाइलों के लिए भटकते मिल जाएंगे। लगभग एक लाख कर्मचारियों को एक राजधानी से दूसरे में शिफ्ट करने पर उनका टीए-डीए का बोझ अलग। अब लगभग एक लाख अधिकारियों व कर्मचारियों के कार्यालय व आवासीय क्षेत्र का इंफ्रास्ट्रकचर तैयार करने में लगभग 2० से 25 हजार करोड़ खर्चा आएगा। वहीं दोनो राजधानियों के इंफ्रास्ट्रकचर की रखरखाव का खर्चा दोगुना हो जाएगा। दोहरा चरित्र दिखाकर कर्ज में डूबी जनता पर और कर्ज बोझ डालने का काम सरकार ने किया है। मूलभूत ढांचे के लिए पिछले 2० साल से जूझ रहा राज्य अब पुन: लगभग एक लाख कर्मचारियों के काम करने, रहने और यातायात की व्यवस्था कैसे करेगा यह बड़ा सवाल है? आखिर यह खेल क्यों खेला सीएम त्रिवेन्द्र रावत ने? क्या बिना सोचे समझे लिया गया निर्णय है? आखिर गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने में क्या परेशानिया थी? इस शिफ्टिंग प्रक्रिया में अधिकारियों व कर्मचारियों के स्कूल पढऩे वाले बच्चों के सामने एक बड़ा संकट आकर खड़ा होगा क्योकि वह तो अपनी पढ़ाई छोड़कर गैरसैंण जा नहीं सकते और उनके माता पिता जब वहां जाएंगे तो बच्चे की परवरिश कौन करेगा यह भी एक बड़ा सवाल सामने आ रहा है? मुख्य तौर पर देखा जाए जाए तो सीएम त्रिवेन्द्र का राजनीतिक लड्डू रूपी यह फैसला काफी घातक है और इसके परिणाम राज्य को डाइबिटीज़ के रूप में देखने को मिलेंगे। यह काम जो सीएम त्रिवेन्द्र कर गए है, इसका नतीजा एक भयानक समस्या के रूप में राज्य की जनता के सामने आने आने वाला है? हो सकता है कि आज लोगों को कुछ पल की खुशी और सीमए त्रिवेन्द्र को लोकप्रियता मिले लेकिन परिणाम सुखद नहीं होंगे। मेरा मत है कि गैरसैंण को स्थाई राजधानी होना चाहिए। शहीदों के सपनों और आंदोलनकारियों की भावनाओं के अनुरूप पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैंण ही होनी चाहिए क्योंकि इस राज्य का निर्माण हुआ ही बात को लेकर था कि जब राज्य बनेगा तो राजधानी गैरसैंण ही बनाई जाएगी।


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