राज्य का आबकारी महकमा एक ताकतवर सलाहाकार की गिरफ्त में है। कल पर्वतजन ने ही सबसे पहले आबकारी महकमे की नई शराब रेट लिस्ट के खेल का खुलासा किया था। आज खुलासा कैसे एक शराब के धंधे में कंपनी के नाम से चर्चित ब्रांड को प्रमोट किया गया ! कैसे ईडीपी मांगे जाने से पहले ही विभाग को मिल गई। यानि एक्स डिस्टलरी प्राइस से ही शराब की कीमतें निर्धारित होती है। कंपनी नाम से यूपी में कयामत मचाने वाली कंपनी पर फऱवरी से ही कृपा आने लगी थी। अब इसके ब्रांड सस्ते कर करोडों की बिक्री इन्हे दिलाने की तैयारी पूरी कर ली गई है सूत्र बताते हैं कि मामले में अदालत जाने की तैयारी शुरु हो गई।
ईडीपी कैसे आई कब मिली
राज्य में शराब कीमतें तय करने का फार्मूला ईडीपी से ही तय होता है। यानी एक्स डिस्टलरी प्राइस जिसे कहते है। इसके बाद ही इस पर टैक्स डयूटी तय की जाती है इससे शराब की कीमत का निर्धारण होता है। कल जैसे ही बैक डेट में यानि 19 मार्च का शराब कीमतों को लेटर सामने आया फिर खेल का खुलासा होने में वक्त नही लगा। अब सवाल ये उठ रहे है कि जिस 19 मार्च को सरकार व महकमा ठेके कराने व अन्य कामों में व्यस्त थी। उस समय कंपनियों से रेट कब मांगे गये औऱ कंपनी ने कब दिये और शासन को कब भेजे गये इसकी कोई जानकारी अभी तक उपलब्ध नही है। हो सकता है सलाहकार के राइट हैंड माने जा रहे अधिकारी इसे भी बैक डेट में प्राप्त होने का दावा कर दें लेकिन क्या शासन को भेजी जाने वाली जानकारी भी बैकडेट में होगी।
शासन आईटी किसी को नही पता।
आबकारी महकमे मे लिये जाने वाले हर फैसले की जानकारी शासन व आईटी के साथ साथ अधिकतर मामलों की सूचना जिलाधिकारियों को दी जाती है। लेकिन शराब रेट लिस्ट की सूचना अभी तक विभाग की न तो वेबसाइट पर है न ही जिलाधिकारियों को मिल सकी है। क्या उत्तराखंड में एक पत्र को जिलाधिकारियों को पंहुचने में एक माह से अधिक का समय लग गया और किसी ने पूछा तक नही ये चौंकाने वाला है। अधिकारी तर्क दे रहे है कि डिस्टलरी स्तर से रेट लिस्ट लीक हुई होगी। जबकि ये जिलाधिकारीयों को संबोधित है फिर डिस्टलरी कैसे बीच में आई !
एम आर पी क्या देशी पर नहीं छपेगी ? उसकी एम आर पी क्यों नहीं आईं ? और कुछ ने ” मांगी होगी “…” शायद “लीक हो गई …से क्या मतलब ??
शराब कंपनी का जलवा
बालीवुड चर्चित फिल्म कंपनी की तर्ज पर एक शराब कंपनी भी संचालित होती है। हालांकि इनका मुख्य उद्देश्य सिर्फ मुनाफा है चाहे कोई सरकार हो या अधिकारी इनके अधीन चलने वाली एक कंपनी जिसके कर्ता धर्ता दून में बैठे है होटल रेस्टोरेंट के मालिक बताये जाते है। पहले इन्हे पहाड़ में एक ही फैक्ट्री में अपने ब्रांड को भराई का लाइसेंस मिला इससे इनकी राहें आसान हो गई। इसके बाद इनके आधीन कंपनी या जिससे संबंधित व्यापार ये कर रहे है उसी ब्रांड की ईडीपी गिराई गई ताकि सेल बढाकर करोडों का मुनाफा हो जाए। मुख्यालय के साहब का ख्याल न रखने वाली कंपनियों को इस सूचना से झटका लगा है। इससे पहले भी ये कंपनी अपने एक ब्रांड विशेष के पक्ष में शासन में चलती नीति में डयूटी में संसोधन कराकर बहुत बडा मुनाफा कमा चुकी है।
खामोश शासन : कोर्ट जाने की तैयारी
आबकारी मुख्यालय के एक अधिकारी सलाहाकर की पावर के साथ मिलकर चाहे वो कर रहे है। जब पूरे प्रदेश में तबादलों पर रोक थी सिर्फ आबकारी महकमे में सिपाही से लेकर डीओ पलट दिये गये शासन में बैठे जिम्मेदार अपनी कुर्सी बचाने की जगत में ही दिखे। अब शराब रेट लिस्ट को लेकर लाक डाउन के बाद कोर्ट जाने की तैयारियों की चर्चायें शुरु हो गई है।
सीएम क्यों नही ले रहे संज्ञान
आबकारी महकमे में जारी मनमानी और लूट खसोट की तमाम शिकायतों व चर्चाओं पर आखिर सीएम क्यों संज्ञान नही ले रहे हैं। जीरो टॉलरेंस की रट पर कोई हथौडा आबकारी महकमे पर क्यों नही चल रहा है ये सवाल है