सुनील सजवाण, धनोल्टी//
पुराने समय में गांव के लोग जब कृषि पर निर्भर हुआ करते थे। तब भादौं के महीने मे क्योंकि इस समय पर फसले ज्यादा होती है। तब फसलों की दुबड़ी बनाकर गांव वाले फसलों की पूजा किया करते थे, जिसे दुर्गा अष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस समय पर होने वाली सभी फसलों के पौधों के समूह सेएकत्रित किया जाता है, जिसे दुबड़ी कहा जाता है।
टिहरी जनपद का जौनपुर क्षेत्र अपनी लोक संस्कृति और लोक मान्यताओं के लिए देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी अपनी एक अलग पहचान रखता है।
जौनपुर की बोली-भाषा खान-पान वेश-भूषा संस्कृति ही इस क्षेत्र की अलग पहचान है। इस क्षेत्र में 12 महीने के 12 त्यौहार प्रसिद्व हंै। इन्हीं मुख्य त्यौहारों में यहां भादों के महीने दुबड़ी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से इस क्षेत्र मे मनाया जाता है। जिसमे इस क्षेत्र के लोग फसलों की पूजा करते हैं।
दुबड़ी क्या है?
इस सवाल पर क्षेत्र में वर्तमान बरसात के समय में कई फसलें खेतों में गांव की हरियाली के साथ जौनपुर की प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाती है। गांव में मक्काई, कौणी, चीणा, झंगोरा, धान जिसे स्थानीय भाषा में साटी कहा जाता है। इन अनाजों के साथ कई सब्जियां वर्तमान समय में होती है।
मान्यता है कि पुराने समय में गांव के लोग जब कृषि पर निर्भर हुआ करते थे। तब भादौं के महीने मे क्योंकि इस समय पर फसले ज्यादा होती है। तब फसलों की दुबड़ी बनाकर गांव वाले फसलों की पूजा किया करते थे, जिसे दुर्गा अष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस समय पर होने वाली सभी फसलों के पौधों के समूह सेएकत्रित किया जाता है, जिसे दुबड़ी कहा जाता है।
पहले के समय में लोग खेती पर ही निर्भर थे व खेती से उगने वाली फसल से ही पूरे सालभर अपने परिवार का भरण पोषण किया करते थे, इसीलिए सालभर में एक बार सभी लोग मिलकर फसलों की पूजा भादौं के महीने में किया करते थे। ताकि उनके गांव में कभी अन्न की कमी न हो व उनके गांव में सुख समृद्धि बनी रहे। वर्तमान समय में भी इस त्यौहार को जौनपुर क्षेत्र के लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं व फसलों की दुबड़ी बनाकर अन्नदेवता की पूजा करते हैं।
मान्यता है कि अन्नदेवता इस पूजा से प्रशन्न रहते है व गांव मे खुशहाली सुख समृद्वि लाते है। फसलो की पूजा का यह अनोखा त्योहार जौनपुर क्षेत्र मे मनाया जाता है।
दुबडी कैसे मनाई जाती है
जौनपुर क्षेत्र में दुबड़ी के त्यौहार को दो रूपों मं मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस त्यौहार को जौनपुर क्षेत्र में अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है।
पहले रूप में जौनपुर क्षेत्र के नैनबाग घाटी में इस त्योहार को भादौं के महीने की सारी फसलों के एक-एक पौधे को खेतों से जड़ से निकालकर गांव के पंचायत चौक, जिसे स्थानीय भाषा में मण्डाण भी कहा जाता है। एक स्थान पर छोटा सा गड्डा करके अनाज के सभी पौधों को रखकर रात के समय में गांव की महिलाओं द्वारा इन आनाज के पौधों से बनी दुबड़ी की पूजा स्थानीय वाद्य यंत्र ढोल दमाऊ और रणसिंगे की थाप पर की जाती है। पूरे गांव के साथ-साथ बाहरी मेहमान गांव की बेटियां, जो दूसरे गांव में जिनकी ससुराल है, जिन्हें स्थानीय भाषा में दयाणी कहा जाता है व गांव की बहुएं जिन्हें रेणी कहा जाता है, सभी इस पूजा में सम्मलित होती हैं। पूजा समापन के बाद अनाज के पौधों से बनी दुबड़ी के अंश प्राप्ति के लिए संघर्ष होता है, जिसे छिना जाता है। इस समय पर इस त्यौहार की छटा देखने लायक होती है। हर कोई दुबड़ी के अंश को पाने की कोशिश करता है व सघर्ष करता है। अनाज वाले पौधे के उस अंश को लोग अपने मकान की छत पर फेंकते हंै।
मान्यता है कि यह अंश जिस घर की छत पर फेंका जाता है, उस घर में सुख समृद्धि के साथ साथ अन्न व धन्न की कमी नहीं होती है। इसलिए प्रत्येक आदमी अपने घर की छत पर दुबड़ी के अंश को फेंकते हैं। इस त्यौहार में नाच गानों के साथ लोग इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम व भाई चारे से मनाते हैं।
दूसरे रूप में इस त्यौहार को जौनपुर क्षेत्र के थत्यूड़ क्षेत्र में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस क्षेत्र में नई फसलों की पूजा के साथ-साथ यहां के इष्ट देवता नाग देवता की पूजा मुख्य रूप से की जाती है। रात के समय में गांव के लोग मिलकर फसलों की पूजा करते है व साथ ही नाग देवता को नउण यानी दूध का भोग लगाते हंै। गांव के मनाण चौक में रातभर देवता अवतरित होकर नाचते हंै व नाग देवता की ढोली को गांव वाले ढोल की थाप पर नचाते हैं। बाहरी क्षेत्र से भी लोग इस त्यौहार में हिस्सा लेते हैं व प्रतिभाग करते हैं।
कई गांवों में पाण्डों नृत्य नउण मेले के रूप में इस क्षेत्र में इसे मनाया जाता है।
जौनपुर के नैनबाग व थत्यूड़ क्षेत्र में जौनपुर की लोक संस्कृति की झलक दुबड़ी में दिखाई देती है। यहां जौनपुर के प्रसिद्ध तांदी नृत्य मे स्थानीय यहां की वेश-भूषा के साथ लम्बी तान्द बनाकर गांव की महिलाएं व पुरुष लोकगीतों के साथ तान्दी नृत्य करते हैं। साथ ही यहां के प्रसिद्ध हारुल रांसु पाण्डों छोपती नृत्य भी सबका मन मोह लेते हंै। ढोल दमाऊ व रणसिंगे की थाप पर हर कोई नाचने को आतुर हो जाता है। इस त्यौहार मे यहां मक्काई मक्की को भून कर खाना आजकल गांव में लगी ककड़ी साथ ही यहां का मुख्य भोजन असके पिनोवे दयूड़े पूरी दाल के पकोड़े मुख्यत: बनाए जाते हंै।
महिलाएं जौनपुर की पारंपरिक वेेष भूषा घाघरा डांटु कुर्ती व श्रृंगार में कान में मुरके नाक में नथ व लाबी गले में तेमण्या आदी पहनकर जौनपुर की संस्कृति व परम्परा में चार चांद लगाती है।
जौनपुर के लोग भाईचारे के साथ अपनी संस्कृति के संरक्षण को लेकर इस मेले को मनाते हैं। अन्न की पूजा फसल की पूजा के साथ जौनपुर क्षेत्र में ही किया जाता है। इन त्योहारों को मनाने में पुरुषों के साथ साथ महिलाएं भी बराबर की हकदार हंै, जो इस प्रकार के मुख्य पारंपरिक त्यौहार को मनाने में अपना पूर्ण योगदान देती हंै। जौनपुर की लोक संस्कृति लोक मान्यताएं उत्तराखंड की लोक संस्कृति के लिए प्रेरणास्रोत हैं और उत्तराखण्ड की संस्कृति का द्योतक है।