गंभीर आरोपों से घिरे दुग्ध संघ अध्यक्ष मुकेश बोरा पर क्या निर्णय लेगी जीरो टॉलरेंस वाली सरकार
बगैर दुग्ध उत्पादक के बन बैठे चेयरमैन मुकेश बोरा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग
उत्तराखंड के प्रमुख दुग्ध संघ में से एक नैनीताल जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लालकुआं वर्तमान समय में चर्चाओं में है यह चर्चा भी ऐसी कि जो एकसामान्य दुग्ध उत्पादक से लेकर सत्ता तथा शासन के गलियारों तक व्याप्त है आरोप है कि इस दुग्ध संघ में वह हो गया जिसकी कभी कोई कल्पना ही नहीं कर सकता था।
दुग्ध संघ के अध्यक्ष मुकेश बोरा पर आरोप है कि अपात्र होने के बावजूद वह दुग्ध संघ के डायरेक्टर और बाद में चेयरमैन तक बन बैठे मुकेश बोरा के खिलाफ जांच चल रही है।
मामला सीएम पोर्टल और शासन दोनों में लंबित है। जांच एल वन से होते हुए एल थ्री टेबल तक पहुंच चुकी है। यानी कि जांच सहायक निदेशक डेयरी विभाग के बाद उपनिदेशक डेयरी विभाग और अब निदेशक डेयरी विभाग की टेबल पर है।
जाहिर सी बात है कि एल1 और एलl2 स्तर पर जांच का कोई निर्णय नहीं हुआ है, जिसको लेकर के अब चर्चाओं का बाजार और गर्म होने लगा है और आरोप है कि जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली सरकार आरोपी को बचाने की हर संभव कोशिश में लगी हुई है।
मुकेश बोरा पर आरोप है कि वह किसी भी दुग्ध समिति के सदस्य ही नहीं रहे बाबजूद इसके वे डायरेक्टर और चेयरमैन बन गए जो पूरी तरह से धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के दायरे में आता है।
नियमानुसार किसी भी डायरेक्टर अथवा चेयरमैन को दुग्ध समिति का सदस्य होना अनिवार्य है। इस पर भी कम से कम वर्ष में 180 दिन उसका दूध डेरी में गया हो। इसके साथ एक शर्त यह भी है कि कम से कम 320 लीटर दूध उसके द्वारा डेयरी में दिया गया हो। इन दोनों शर्तों को पूरा करने के बाद ही वह कायदेतन डेरी का सदस्य अर्थात दुग्ध उत्पादक माना जाएगा। उसके बाद ही वह डेरी का प्रतिनिधि डायरेक्टर और चेयरमैन तक बन सकता है।
इस नियम पर खरा नहीं उतरने के कारण 2 डायरेक्टर हटा दिए गए हैं। दोनों डायरेक्टर नैनीताल दुग्ध संघ से जुड़े हुए हैं, जिसमें एक रश्मि गरजोला तथा दूसरे मदन सिंह जीना हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब मानक पूरा नहीं करने के कारण दोनों निदेशकों को पद से हटा दिया गया है तो फिर मुकेश बोरा के मामले में आखिर कार्यवाही क्यों नहीं हो रही !
इसको लेकर के कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि इस पर सीधे-सीधे निबंधक आरोपी को बचाने की पूरी कोशिश में लगे हैं, जबकि मुकेश बोरा को स्वयं अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था या फिर निबंधक को उन्हें तत्काल हटा देना चाहिए था।
इधर दुग्ध संघ के अध्यक्ष मुकेश बोरा ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को निराधार बताया तथा कहा कि उनके खिलाफ जांच चल रही है तथा शीघ्र ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा उन्होंने कुछ लोगों पर षड्यंत्र करने का भी आरोप लगाया।
बहरहाल इस को लेकर के सीएम पोर्टल और शासन स्तर पर शिकायतें भेजी गई है और जिन पर जांच चल रही है। बताया जा रहा है कि मुकेश बोरा के मामले में जबरदस्त लीपापोती चल रही है और कुछ नेताओं का भी उनको वरदहस्त प्राप्त है।
हालांकि इस मामले में निष्पक्ष जांच नहीं होती है और लीपापोती कर आरोपी को बचाया जाता है तो भाजपा सरकार की मुश्किलें बढ़ेंगी क्योंकि भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस का दावा करती आई है लेकिन यहां पर उसका दावा प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।
इसने विपक्ष को भी एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। मुकेश बोरा को बचाने में लीपापोती जरूर की जा रही है लेकिन उनके आरोपों से मुक्त होने की उम्मीद नहीं के बराबर है। ऐसा इसलिए कि यदि किसी भी दुग्ध उत्पादक ने किसी भी समिति में दूध दिया हो तो उसके प्रोत्साहन राशि उसके अकाउंट में आती है लेकिन मुकेश बोरा के अकाउंट में प्रोत्साहन राशि आई ही नहीं है। जिससे यह साबित हो रहा है कि उनका दूध समिति में गया ही नहीं।
यानी कि आरोप में पूरी तरह से सच्चाई नजर आ रही है। बावजूद इसके अगर उन्हें दोषी होने के बाद भी बचाने का खेल खेला जाता है तो इससे आम उत्पादकों में भी निराशा आएगी और एक गलत परंपरा भी जन्म ले लेगी कि सत्ता के संरक्षण में कुछ भी किया जा सकता है।