तो क्या उत्तराखंड को बर्बाद कर ही दम लेंगे ओम प्रकाश!
पहले आयुष शिक्षा फिर तकनीकी शिक्षा और अब चिकित्सा शिक्षा ,तीनों विश्वविद्यालय प्रभारी कुलपतियो के भरोसे! आखिर ओम प्रकाश अपने मंसूबों में कामयाब हो ही गये!
सर्व प्रथम आयुष विवि में अपने लाडले मृत्युंजय मिश्रा के साथ मिलकर कोर्ट के माध्यम से कुलपति मिश्रा को विवि से बाहर का रास्ता दिखाया ताकि मृत्युंजय के साथ मिलकर अपनी मनमानियां कर सकें फिर तकनीकी विवि के कुलपति और ताजा उदाहरण 27 नवम्बर को एच एन बी चिकित्सा शिक्षा विवि से डॉ सौदान सिंह को विदाई दी दी गयी।
सौदान सिंह शुरुवात से ही ओम प्रकाश की आंखों में खटकते रहे हैं। आयुर्वेदिक विवि का प्रभारी कुलपति रहते हुए जिस तरह सौदान सिंह ने मृत्युंजय मिश्रा की कारगुजारियों पर अंकुश लगते हुए जिस दिन उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया, उसी दिन सौदान सिंह ,ओम प्रकाश की आंखों में खटकने लगे और आयुर्वेदिक विवि के कुलपति का प्रभार सौदान सिंह से लेकर निदेशक आयुर्वेद अरुण त्रिपाठी को सौंप दिया गया ।
प्रभारी कुलपति के भरोसे चल रही चिकित्सा शिक्षा विवि में सौदान सिंह की नियुक्ति राष्ट्रपति शासन के दौरान गवर्नर केके पॉल ने की थी। उत्तरप्रदेश में डीजी चिकित्साशिक्षा रहते हुए अनेक मेडिकल कॉलेज को सफलता पूर्वक स्थपित कर चुके हैं सौदान सिंह।
समाजवादी नेता मुलायम सिंह के गांव सैफई में अखिलेश सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट चिकित्सा विश्वविद्यालय को भी सफलता पूर्वक पूर्ण करने का श्रेय भी सौदान सिंह को ही जाता है। केंद्र सरकार में रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सौदान सिंह के कार्यों की सराहना कर चुके हैं।
आज 27 नवंबर 2017 को सौदान सिंह को उनकी 65 वर्ष आयु पूर्ण होने से ठीक एक दिन पहले कुलपति के पद से विदाई दे दी गयी ।
किन्तु विवि एक्ट की की खामियों की आड़ में जिस तरीके से सौदान सिंह को चिकित्साशिक्षा विवि से बाहर कर दिया गया वह कई सवाल खड़े करता है।
चिकित्साशिक्षा विवि का एक्ट हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित है। कुलपति की नियुक्ति को लेकर हिंदी भाषा मे जो व्यवस्था है, उसके अनुसार 65 वर्ष से अधिक आयु का व्यक्ति कुलपति पद हेतु आवेदन नही कर सकता, अर्थात 65 वर्ष पूर्ण होने से कुछ समय पहले भी आवेदन किया जा सकता है।
जबकि सौदान सिंह की नियुक्ति 65 वर्ष आयु पूर्ण करने से लगभग डेढ़ वर्ष पहले हुई ।
वहीं अंग्रेजी के अनुवाद के अनुसार 65 वर्ष का व्यक्ति कुलपति का पद धारित नही कर सकता अर्थात चिकित्साशिक्षा विवि में कुलपति के पद पर नियुक्ति के समय आवेदक की आयु 62 वर्ष होनी चाहिए तभी वह अपना तीन वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर पायेगा।
ऐसे में विवि बाइलॉज में अनुवाद की इस प्रशासनिक त्रुटि के लिए कौन जिम्मेदार है! तो क्या गवर्नर केके पॉल ने सौदान सिंह की नियुक्ति मात्र डेढ़ वर्ष के लिए की!
ऐसे मे सौदान सिंह की विवि से विदाई में षडयंत्र स्पष्ट झलकता है। क्योंकि कुलपति की नियुक्ति न होने की दशा में निवर्तमान हो रहे कुलपति को 6 माह का एक्सटेंशन दिये जाने की भी व्यवस्था विवि एक्ट में है लेकिन सौदान सिंह को इसका लाभ नही दिया गया ।
वही कुलपति के कार्यकाल के पूर्ण होने की सूचना तीन माह पूर्व ही शासन के संज्ञान में लाना विवि के कुलसचिव की जिम्मेदारी होती है, ताकि नए कुलपति की चयन प्रक्रिया शुरू की जा सके। किन्तु सौदान सिंह के मामले में यह प्रक्रिया भी नही अपनायी गयी।
प्रभारी कुलसचिव के भरोसे चल रही चिकित्सा शिक्षा विवि में यह दायित्व ओम प्रकाश के करीबियों में शुमार निदेशक चिकित्साशिक्षा डॉ आशुतोष सायना संभाल रहे हैं।
विवि एक्ट की खामियों को सरकार के संज्ञान में लाने की पूर्ण जिम्मेदारी कुलसचिव की होती है। ऐसे में स्पष्ट है कि किसके इशारों पर उक्त कार्यवाही को अंजाम नही दिया गया होगा। विवि एक्ट की यह तमाम खामियां जब गवर्नर के संज्ञान में आयीं तो केके पॉल ने सरकार से इस पर स्थिति स्पष्ट करने हेतु फाइल शासन भेज दी।
जवाब की प्रतीक्षा में फ़ाइल तत्कालीन अपर मुख्य सचिव चिकित्साशिक्षा ओमप्रकाश के दफ्तर मे पड़ी रही। कुछ समय बाद केंद्र से लौटे नितेश कुमार झा के पास जब चिकित्साशिक्षा का जिम्मा आ गया, समीक्षा बैठकें कर विभाग के मसलों को समझने की कोशिश के दौरान जब यह प्रकरण नितेश झा के पास पहुंचा, तब तक काफी देर हो चुकी थी।
विस्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नितेश झा ने एक्ट की खामियों के मध्यनजर मुख्यमंत्री से वार्ता कर सौदान सिंह को रोकने का प्रयास भी किया किन्तु सरकार के विद्वेष पूर्ण रवैये से आहत सौदान सिंह पद छोड़ने का मन बना चुके थे।