उत्तराखंड के निवर्तमान मेयर सुनील उनियाल एक बार फिर से देहरादून नगर निगम मेयर की उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक रहे हैं, जबकि इस पद पर रहते हुए उन पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे हैं। लेकिन एक भी मामले में जांच से आगे की कार्रवाई पूरी नहीं हो पाई।
*भ्रष्टाचार के लिए अब तक के सर्वाधिक चर्चित मेयर*
भ्रष्टाचार से कमाई गई संपत्ति के आरोप में पूर्व मेयर सुनील उनियाल गामा के खिलाफ एक क्रिमिनल रिट याचिका हाई कोर्ट रिवीजन में लगी हुई है, तो वहीं उनके कार्यकाल में सैकड़ों फर्जी कर्मचारियों को फर्जी तरीके से भुगतान करके नौ करोड़ रुपये डकारने के मामले में बाकायदा जांच चल रही है और काफी हद तक इन आरोपों की पुष्टि हो चुकी है।
यही नहीं उनके कार्यकाल में नदी नाले बड़ी संख्या में कब्जाए जाने के मामले की फाइल अभी तक गायब है। उस पर बाकायदा मुकदमा दर्ज है और जांच चल रही है।
यही नहीं पद का दुरुपयोग करके कई बड़े संस्थानों से करोड़ों रुपए का बकाया टैक्स न वसूल कर उनसे फायदा लेने के भी उन पर गंभीर आरोप हैं।
उनके काल मे देहरादून के एक अस्पताल से लगभग 5 करोड रुपए का टैक्स नहीं वसूला गया, जबकि इस अस्पताल प्रबंधन से सुनील उनियाल गामा के पुत्र के नाम एक भूमि 99 साल की लीज पर ले ली गई। इसके अलावा अपने परिजनों को अवैध तरीके से नौकरी लगाने के भी आरोप सुनील उनियाल गामा पर हैं।
ऐसे में जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली भाजपा के कई बड़े नेता एक बार फिर से सुनील उनियाल गामा को मेयर पद का टिकट दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं।
यहां तक कि आजकल सुनील उनियाल गामा कई कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के इर्द-गिर्द देखे जा रहे हैं तो वहीं पुष्कर सिंह धामी के विरोधी खेमे के भी कई भाजपा के नेता सुनील उनियाल गामा को प्रत्याशी बनाए जाने के लिए देहरादून से लेकर दिल्ली तक लॉबिंग करने में लगे हैं।
सोशल एक्टिविस्ट तथा एडवोकेट विकेश नेगी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तो बाकायदा विजिलेंस में भी सुनील उनियाल गामा की शिकायत की थी। इसके अलावा उन्होंने इस पर कार्यवाही के लिए हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया है।
विकेश नेगी कहते हैं कि सुनील उनियाल ने देहरादून नगर निगम का मेयर बनने के बाद भ्रष्टाचार से 5 करोड़ से अधिक की लगभग 11 संपत्तियां खरीदी हैं, जिसका बाजार मूल्य 20 करोड रुपए से अधिक है, जबकि मेयर का पद अवैतनिक पद होता है और सुनील उनियाल गामा ने अपने पिछले चुनाव दौरान की घोषणा में बताया है कि उनकी सालाना आय लगभग 10 लाख रुपए है, जिसमें से लगभग डेढ़ लाख रुपये बच्चों की परवरिश में खर्च होता है।
यदि इस नजरिए से भी देखा जाए तो मेयर बनने के बाद उनकी संपत्ति में इतना इजाफा भ्रष्टाचार की बदौलत है। इस मामले को लेकर कांग्रेस भी सरकार पर काफी आक्रामक होती आई है और उन्होंने सरकार तथा मेयर से इसका हिसाब किताब मांगा है।
*कई संगठनों ने की जांच की मांग*
यही नही उत्तराखड राष्ट्रीय पार्टी, आंदोलनकारी संयुक्त परिषद, नेताजी संघर्ष समिति, दिशा संस्था और राज्य आंदोलन वरिष्ठ मोर्चा ने पूर्व मेयर गामा की संपत्ति की जांच की मांग की है।
सुनील उनियाल गामा के कार्यकाल के खिलाफ भ्रष्टाचार से खजाना भरने से लेकर फर्जी कर्मचारियों को फर्जी भुगतान करने की कई दस्तावेजी खबरें कई दिनों तक मीडिया जगत में छाई रही लेकिन जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली भाजपा को लगता है, इस सबसे कोई परवाह नहीं।
*कमाई के तर्क भी बेमिसाल*
सुनील उनियाल गामा मीडिया से कहते हैं कि उन्होंने चाऊमीन बेची वीडियोग्राफी की ठेकेदारी की तब जाकर उन्होंने यह संपत्ति कमाई है और उन पर सवा करोड रुपए का भी बैंक लोन है और उन्होंने कोई अवैध कमाई नहीं की है। सुनील उनियाल गामा कहते हैं कि उन पर गलत आरोप लगाने वालों के खिलाफ वह विधिक कार्यवाही करेंगे।
*पांच साल शहर का बुरा हाल*
चाहे नदी नाले कब्जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उन्हे बचाने के लिए आध्यादेश लाए जाने का मामला हो या शहर में साफ सफाई की बुरी हालत , खराब सड़कों और या बंद स्ट्रीट लाइट का मामला हो , हर तरफ जनता पूरे 5 साल भ्रष्टाचार के शिकंजे में छटपटाती रही लेकिन भ्रष्टाचार के किसी भी मामले पर जांच अपने अंजाम तक नहीं पहुंची।
*प्रशासकों ने भी किया निराश*
लंबे समय तक नगर निगम का कार्यकाल प्रशासकों के हाथ में रहने के चलते एक बार उम्मीद भी जगी थी कि इन भ्रष्टाचार की फाइलें खुलेंगे और इन पर कार्यवाही होगी लेकिन अधिकारी भी फाइल-फाइल खेलते रहे एक भी मामला कार्रवाई के स्तर तक नहीं पहुंच पाया।
पूरे नगर निगम देहरादून का इतिहास उठाकर देखा जाए तो सुनील उनियाल गामा के कार्यकाल में देहरादून नगर निगम की सैकड़ों एकड़ भूमि पर अवैध कब्जे हुए हैं।
पॉश कॉलोनी के भी कई पार्क तक भूमाफिया ने कब्जा लिए, लेकिन नगर निगम ने कोई कार्रवाई नहीं की।
यदि भाजपा इसी परिपाटी पर चलती रही तो कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले पांच साल के समय में देहरादून स्मार्ट सिटी के बजाय स्लम सिटी में बदल जाएगा।