संतोष फुलारा, बागेश्वर
बागेश्वर जिले के कौसानी की चाय फैक्टरी के मामले मे जल्दी ही कानून के हाथ दोषियों के गिरेबान तक पहुंच सकते हैं ।
मुख्यसचिव के आदेश के बाद जिला प्रशासन ने रिपोर्ट शासन को भेजी है। फिलहाल मामले की गौपनीय जांच उद्यान सचिव सेंथिल पांडियन कर रहे हैं।
अपने जन्म के चौदह सालों तक उत्पादन के रिकार्ड तोड़ रही कौसानी की चाय फैक्ट्री के साथ ऐसा क्या हुआ कि उसे दम तोड़ने को मजबूर होना पड़ा। दरअसल सीधे तौर पर कहें तो बड़ी उम्मीद के साथ कौसानी चाय फैक्ट्री के पालन पोषण का जिसे जिम्मा जिसे सौंपा गया था उन्होंने ही निजी स्वार्थों के उसका गला घोंट दिया।
1994-95 में कुमाउं मंडल विकास निगम और गढ़वाल मंडल विकास निगम के तहत सरकार ने चाय प्रकोष्ठ की नींव रखी जिसके तहत कौसानी और उसके 10 किलोमीटर के दायरे में 211 हैक्टेयर जमीन का चयन चाय के बागान के लिये किया गया। संसाधनों की कम उपलब्धता के उस समय के 50 हेक्टेयर जमीन पर प्रकोष्ठ ने चाय बागान विकसित किये जो कि 2001 के आते आते पूरी तरह से व्यवसायिक चाय बनाने के लिये तैयार हो गये थे। चाय की अच्छी कच्ची फसल को देखते हुये 2001 में चाय प्रकोष्ठ ने एक निजी कंपनी गिरीराज को कौसानी में चाय की फैक्ट्री लगाने के लिये आमंत्रित किया। इसके लिये कंपनी के साथ कुछ शर्तें भी रखी गयी। चूंकि कुमाउ में कुमाउं मंडल विकास निगम के पास चाय बागानों की देखरेख का जिम्मा था इसलिये निगम और कंपनी के बीच कुछ शर्तों के साथ अनुबंध हुये। 7 जून 2001 को हुये अनुबंध के मुताबिक अनुबंध अगले 25 साल तक जारी रहेगा और चाय फैक्टी लगाने का 89 प्रतिशत खर्चा गिरीराज कंपनी को करना होगा जबकि फैक्टी का ढ़ांचा खड़ा करने में कुल जितना खर्च आयेगा उसके 11 प्रतिशत की धनराशि सरकार यानिकी निगम द्वारा कंपनी को दिया जायेगा। अनुबंध करते समय चाय के ब्रांड पर विचार हुआ। अनुबंध पर तय किया गया कि गिरीराज जो चाय बागान में तैयार करेगी उसे बाजार में उत्तरांचल टी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड का उत्पाद ”उत्तरांचल टी“ के नाम से उतारा जायेगा। अब समस्या चाय बागान से उत्पादित होने वाली कच्ची पत्तियों की आपूर्ति की थी। इस पर भी गिरीराज कंपनी और निगम के बीच करार हुआ। करार के अनुसार पहले पांच साल तक निगम अपने बागानों से उत्तराखंड टी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को चाय की कच्ची पत्तियों को अलग अलग क्वालिटी के अनुसार 11 से लेकर 13 रूपये प्रतिकिलोग्राम की दर से उपलब्ध करायेगी। फिर पांच साल बाद ये दरें संसोधित की जायेंगी। कच्ची पत्तियों की दरों में संसोधन के लिये दार्जिलिंग, हिमांचल प्रदेश, कुन्नूर आदि जगहों के बागानों से मिल रहे रेटों की समीक्षा की जायेगी। अनुबंध के ठीक एक साल बाद यानिकी 2002 में अप्रैल से लेकर नवंबर तक करीब 50 हैक्टेयर में विकसित चाय बागान से 70 हजार 588 किलोग्राम कच्ची पत्तियां उत्पादित हुयी। यानिकी एक हैक्टेयर में एक हजार चार सौ किलोग्राम चाय की कच्ची पत्तियां उत्पादित हुई। फैक्टी के अनुसार उसने 2002 में 50 हैक्टेयर में उत्पादित कच्ची पत्तियों से 13 हजार 995 किलोग्राम चाय तैयार की और उत्तराचल टी के नाम से बाजार में उतारी।
चाय के बागानों से अच्छा उत्पादन और मुनाफे के कारोबार को देखते हुये सरकार ने इस कारोबार को कुमांउ मंडल विकास निगम और गढ़वाल मंडल विकास निगम से हटाकर 2004 में एक अलग से उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड का गठन किया। जिसका मुख्यालय जिसका मुख्यालय अल्मोड़ा में बनाया गया। बोर्ड के गठन के बाद चाय के बागान को पूरी भूमि यानिकी 211 में विकसित किया गया। 2013 तक, उत्तराखंड चाय विकास बार्ड ने 211 हैक्टेयर भूमि में पूर्ण विकसित चाय बागानों से औषतन ढ़ाई लाख किलोग्राम कच्ची पत्तियां एकत्रित की और उत्तराखंड टी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को उपलब्ध करायी। ये वो दौर था जब चाय फैक्टी अपने विकास की रफ्तार में थी और बागान भी जमकर लाभ दे रहे थे। सवाल ये है कि अब ऐसा क्या हुआ कि अचानक फैक्टी को बंद करना पड़ा।
अब तक 2002 से 2013 तक चाय फैक्टी सही चल रही थी। तमाम स्रोतों से प्राप्त दस्तावेज बताते हैं कि कुछ आंतरिक वजहों से चाय बागान से फैक्टी को कच्ची पत्तियों की सप्लाई जानबूझ कर कम कर दी गयी। धीरे धीरे हालात इतने बिगड़े कि जून 2014 को फैक्टी ने दम तोड़ दिया और फैक्टी पर ताला लगते ही एक हजार के करीब बागानों में काम कर रहे श्रमिक एक झटके में सड़कों पर आ गये।
करीब दस सालों में जिले की पहचान बन चुकी उत्तरांचल टी को अर्श से फर्श पर लाने की साजिश को समझने के बाद यह निष्कर्स निकलता है कि बोर्ड के आला अफसरों की नीयत डोलने के कारण ही फैक्टी पर ताला लगा और सैकड़ों श्रमिकों के परिवार सड़कों पर आ गये। दस्तावेजों के अनुसार 2002 की शर्तों में यह साफ लिख हुआ था कि पांच साल बाद कच्ची पत्तियों की कीमत रिवाइज की जायेगी। यानिकी 2007 में पत्तियों की नई कीमत फैक्टी को अदा करनी होगी। परंतु उसी अनुबंध में यह भी लिखा गया था कि फैक्टी के निर्माण की कुल लागत की 11 प्रतिशत धनराशि चाय विकास बोर्ड गिरीराज की कंपनी को अदा करेगी। जिसपर बोर्ड ने अमल नहीं किया। दरसल कंपनी को बंद करने की साजिश यही से रची गयी। 11 प्रतिशत की धनराशि बोर्ड के अधिकारी नहीं देना चाहते थे और गिरीराज कंपनी इस धनराशि को किसी भी तरह वसूलना चाहती थी। पांच साल तक जब बोर्ड ने यह धनराशि टी कंपनी को नहीं दी तो कंपनी ने इस धनराशि को कच्ची पत्तियों की कीमत में से धीरे धीरे वसूलना शुरू कर दिया। कंपनी ने 2007 से लेकर 2013 तक बोर्ड द्वारा सप्लाई की गयी चाय कच्ची पत्तियों की कीमत से धीरे धीरे अब तक 15 लाख की धनराशि रोक चुकी थी। जिससे टी बोर्ड के अधिकारी नाराज थे। टी बोर्ड का आरोप है कि टी कंपनी ने 2007 से 2013 तक 15 लाख की धनराशि का भुगतान नहीं किया है जो अब व्याज सहित 33 लाख 90 हजार 852 रूप्ये हो चुकी है और जब तक यह राशि नहीं मिलेगी तब तक उन्हें कच्ची पत्तियों की सप्लाई नहीं की जायेगी। वहीं टी कंपनी ने साफ तौर पर कह दिया था कि जब तक पूर्व में हुये अनुबंध के अनुसार चाय विकास बोर्ड 11 प्रतिशत की धनराशि उन्हें नहीं सौंप देती तब तक न तो कच्ची पत्तियों की दरों में संसोधन किया जायेगा और न ही रोकी गयी धनराशि जारी की जायेगी।
टी बोर्ड और गिरीराज कंपनी के बीच टकराव इस हद तक पहुंच गया कि बोर्ड ने इसे प्रमुख सचिव उद्यान के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बोर्ड की एकतरफा बात सुनने के बाद शासन ने 2014 में कंपनी के खिलाफ आरसी काटते हुये जिलाधिकारी बागेश्वर को कार्रवाई के निर्देश जारी कर दिये। आरसी के खिलाफ फैक्टी प्रबंधन ने उच्च न्यायालय नैनीताल का दरवाजा खटखटाया जिसे लंबी बहस के बाद हाईकोर्ट ने नवबर 2017 में खारिज कर दिया। यानि कि फैक्टी प्रबंधन को अब टी बोर्ड की धनराशि मय व्याज के देनी होगी। सूत्रों के मुताबिक टी कंपनी अब मामले को उच्चतम न्यायालय में ले जाने की तैयारी कर रही है।
कच्ची पत्तियों की कीमत संशोधन में अधिकारियों की भूमिका
चाय फैक्टी बंद होने के पीछे टी बोर्ड द्वारा टी कंपनी को कच्ची पत्तियों की आपूर्ति को भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार 2007 में पत्तियों की कीमत रिवाइज होनी थी जो कि नहीं हुई। कीमत रिवाइज करने के संबंध में फैक्टी प्रबंधन और टीबोर्ड के बीच कई बार पत्र व्यवहार हुआ। लेकिन दोनों अपनी अपनी बातों पर अड़े रहे। 20 मई 2014 को प्रमुख सचिव उद्यान की अध्यक्षता में देहरादून में बैठक आयोजित की गयी। बैठक में अपर सचिव उद्यान, आरसी शर्मा, संयुक्त सचिव उद्यान देवेन्द्र पालिवाल, टी बोर्ड के निदेशक केआर जोशी, सामान्य प्रबंधक उत्तरांचल टी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड वाई एस चौधरी, चाय विकास बोर्ड अल्मोड़ा में कंपनी सचिव डीडी बंसल और चाय विकास बोर्ड में लेखाकार अनिल कुमार खोलिया मौजूद थे। बैठक में टी बोर्ड ने अपना पक्ष रखा कि यदि कच्ची पत्तियों की कीमत पूर्व में निर्धारित 13 रूपये प्रति किलो से बढ़ाकर 97 प्रति किलोग्राम नहीं किया जाता है तो फैक्टी को पत्तियों की आपूर्ति बंद कर दी जायेगी। इतनी बड़ी कीमत का फैक्टी प्रबंधन ने पुरजोर विरोध किया। विरोध के बावजूद कंपनी की बात नहीं सुनी गयी। फलस्वरूप जून 2014 से फैक्टी को कच्ची पत्तियों की आपूर्ति पूरी तरह से रोक दी गयी। फैक्टी के अचानक बंद होने से श्रमिकों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। जिला मुख्यालय सहित कौसानी में लंबे विरोध प्रदर्शन के बाद 23 अगस्त 2014 को एक और बैठक आयोजित की गयी। जिसमें बागेश्वर के विधायक चंदन रामदास, कपकोट के विधायक ललित फस्र्वाण, जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐंठानी, ब्लाक प्रमुख भरत फस्र्वाण और उत्तरांचल चाय विकास बार्ड के निदेशक केआर जोशी और फैक्टी प्रबंधन की ओर से जनरल मैनेजर वाईएस चौधरी शामिल हुये। जनप्रतिनिधि, टी बोर्ड और टी कंपनी के साथ हुयी इस त्रिपक्षीय बैठक में सर्वसम्मित से निर्णय लिया गया कि टी बोर्ड कच्ची पत्तियां अब 13 रूपया प्रतिकिलोग्राम की बजाय 20 रूपया प्रतिकिलोग्राम की दर से कंपनी को उपलब्ध करायेगी। बैठक में लिये गये निर्णय को सभी ने सर्वसम्मित से स्वीकार किया और बैठक में पास हुये प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये।
इस संबंध में टी बोर्ड और शासन के बीच हुये पत्राचार से यह जानकारी भी मिलती है कि शासन द्वारा 28 मई 2014 को एक पत्र जारी किया जिसके बिंदु पांच में इस बात का स्पष्ठ उल्लेख किया गया है। पत्र के मुताबिक ”करीब दो लाख किलो सरप्लास पत्तियां ही उत्तरांचल टी कंपनी को, यदि उनके साथ मोलभाव सही बैठ जाता है तो दी जाय।“ त्रिस्तरीय बैठक में भी इस बात पर चर्चा हुयी और शासन से मिले इस दिशा निर्देश का त्रिस्तरीय बैठक में सम्मान किया गया जिसके आधार पर शासन के प्रतिनिधि के तौर पर बोर्ड निदेशक और अन्य जनप्रतिनिधियों ने निर्णय पर हस्ताक्षर किये थे।
जानकारों की मानें तो चाय फैक्टी को चलाने के पीछे बोर्ड की पहले ही मंसा साफ नहीं थी। उपलब्ध दस्तावेज इस बात को साबित करते हैं। कौसानी टी फैक्टरी परिसर में हुये त्रिपक्षीय निर्णय को चाय विकास बोर्ड के लेखाकार अनिल खालिया ने नहीं माना और बैठक के कुछ दिनों बाद ही बतौर निदेशक की हैसियत से एक पत्र जारी कर दिया। जिसमें कहा गया कि शासन की ओर से 20 रूपये प्रतिकिलोग्राम की दर से फैक्टरी को कच्ची पत्तियां उपलब्ध कराने की स्वीकृति नहीं दी जा रही है। जिस कारण कच्ची पत्तियों के मूल्य के सबंध में नया अनुबंध किया जाना होगा। जबकि सूत्र बताते हैं कि टी बोर्ड और शासन की ओर से इस संबंध में न तो पत्र व्यवहार हुआ और न ही शासन ने इस तरह का कोई पत्र जारी किया। शायद श्री खोलिया यह भूल गये कि शासन इस संबंध में पहले ही पत्र जारी कर चुका है और आवेश में आकर बतौर निदेशक के हस्ताक्षर से पत्र जारी कर दिया।
बैठक और शासन से मिले निर्देर्शों के बावजूद फैक्टरी को कच्ची पत्तियों की आपूर्ति नहीं हुयी। इस मामले में लेखाकार और सबकुछ जानने के बाद भी चुप रहने पर चाय विकास बोर्ड के निदेशक की भूमिका संदिग्ध मानी गयी। शासन ने नये रेट को स्वीकृति नहीं दी है इस तरह का एक पत्र लेखाकार ने बतौर निदेशक जारी कर दिया। यह जानकारी होने के बावजूद बोर्ड ने लेखाकार पर कोई कार्रवाई नहीं की।
चुनावी सीजन होने के कारण भाजपा के उम्मीदवार चंदन रामदास ने इस मुद्दे को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया। चुनाव के बाद जनप्रतिनिधियों के संज्ञान में एक बार फिर इस मुद्दे को लाने के बाद टी बोर्ड सितंबर 2014 में फैक्टी को पत्तियां बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार ही यानि कि 20 रूपया प्रति किलोग्राम की दर से सप्लाई करने पर राजी हुआ। एक महीना पत्तियां देने के बाद अक्तूबर के बाद फिर सप्लाई रोक दी गयी। इसके बाद नवंबर से मार्च तक बागानों में पत्तियां नहीं होती है इसलिये फैक्टरी को कच्ची पत्तियों की आपूर्ति स्वतः ही बंद हो जाती है।
कोशिशें लगातार जारी रही
मार्च से पत्तियों का नया सीजन शुरू होता है। इसलिये मार्च 2015 को एक बार फिर फैक्टी को कच्ची पत्तियों की आपूर्ति कराने की कोशिश की गयी। एक बैठक और आयोजित की गयी। जिसमें जनप्रतिनिधि के तौर पर विधायक ललित फर्सवाण, जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐंठानी, तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु जोशी और चाय विकास बोर्ड के निदेशक केआर जोशी और टी कंपनी के महाप्रबंधक विजय राज, कंपनी के निदेशक योगेन्द्र चौधरी और उत्तरांचल टी कंपनी कर्मचारी संघ के सदस्य मौजूद थे। बैठक में एक बार फिर निर्णय लिया गया कि 23 अगस्त 2014 को हुये पूर्व में समझौते के अनुसार ही टी बोर्ड फैक्टी को 20 रूपये प्रतिकिलो की दर से कच्ची पत्तियां उपलब्ध करायेगा। लेकिन पिछले दो बैठकों की तरह बाद में टी बोर्ड ने इस समझौते को लागू करने से मना कर दिया। तब से लेकर फैक्टरी में ताला लगा हुआ है। फैक्टरी में बिजली का संयोजन काटा जा चुका है। वर्तमान स्थिति यह है कि पत्तियों के अभाव में चाय फैक्टरी पिछले 40 महीनों से अधिक समय से पूरी तरह बंद है।
टीबोर्ड की नीयत में खोट
उत्तरांचल टी बोर्ड ने अपने बागानों में काम करने वाले श्रमिकों का भी ध्यान नहीं रखा। श्रमिकों का 84 लाख का एरियर बकाया था। राजस्व विभाग की ओर से आरसी काटने के बाद किसी तरह आधी धनराशि वसूली गयी है जबकि अभी 42 लाख रूपये की धनराशि टी बोर्ड से वसूली जानी अभी बाकी है।
उत्तराखंड टी को बंद करने के कारण और भी हैं
कौसानी में खुली फैक्टी 10 हजार स्क्वायर फिट में है जबकि हरिनगरी में फैक्टरी को स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत महज तीन हजार स्क्वायर फिट की एरिया में खोला गया है। हरीनगरी की चाय फैक्टी को एससीपी के तहत ही लगे 180 हैक्टेयर गार्डन से करीब डेढ़ लाख कच्ची पत्तियां उपलब्ध होनी थी लेकिन वर्तमान में एससीपी गार्डन से केवल करीब 30 हजार किलोग्राम ही कच्ची पत्तियां ही फैक्टी को उपलब्ध करायी जा रही है। टीबोर्ड के कुप्रबंधन के कारण बागानों से कच्ची पत्तियों का उत्पादन एक चौथाई ही हो रहा है। निदेशक द्वारा अपनी नाक और साख बचाने के लिये कौसानी टी फैक्टरी को दी जाने वाली कच्ची पत्तियों को हरीनगरी भेजा जा रहा है। जो कौसानी टी फैक्टी बंद होने का सबसे बड़ा कारण है। उत्पादन के आंकड़ों के अनुसार कौसानी टी बागान, मनरेगा और एससीपी के तहत विकसित किये गये करीब 210 हैक्टेयर में लगे पूर्ण विकसित टी बागानों से करीब 4 लाख किलोग्राम कच्ची पत्तियां उत्पादन हुआ है। जबकि वर्तमान समय में इन बागानों से महज दो लाख पत्तियों का ही उत्पादन हो रहा है। इसका कारण टीबोर्ड की लापरवाही और उसके कुप्रबंधन को माना जा रहा है। दस्तावेज बताते हैं कि एससीपी के तरह हरीनगरी में लगे 200 हैक्टेयर के बागानों से करीब 2 लाख किलो कच्ची पत्ती उपलब्ध होनी चाहिये थी जो कि हरिनगरी की चाय फैक्टी की क्षमता के अनुसार पर्याप्त थी। लेकिन देखरेख न होने के कारण मौजूदा समय में बागान से केवल 30 हजार किलोग्राम ही पत्तियों का उत्पादन हो रहा है। अफसरों ने अपनी नाकामी छिपाने के लिये कच्ची पत्तियों की सप्लाई के लिये कौसानी की चाय फैक्टरी को बंद करने की सोची। जो सप्लाई कौसानी टी फैक्टरी को होनी थी वह सप्लाई हरिनगरी को की जा रही है।
कौसानी टी फैक्टरी को जानबूझकर बंद करने के पीछे एक अन्य कारण को भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। तत्कालीन निदेशक डा. केआर जोशी के गृह क्षेत्र हरिनगरी में लगाी फैक्टरी के संचालन के लिये कुशल कारीगर नहीं थे इसलिये कौसानी टी फैक्टरी को साजिशन बंद करवाकर वहां के तीन कुशल तकनीकी कुशल कारीगरों को हरीनगरी में संविदा पर रख दिया गया।
अभी सबकी निगाह सचिव की जांच पर टिकी है।