कुलदीप एस. राणा
आयुर्वेदिक निदेशालय एक बार फिर सुर्खियों में छा गया है। अपने प्रशासनिक आदेशों से चर्चा में रहने वाले विभाग के निदेशक प्रो. अरुण त्रिपाठी ने इस बार एक नया कारनामा अंजाम दिया है। मामला विभाग में फार्मेसिस्ट के तबादलों से जुड़ा हुआ है। एक तरफ तो निदेशक , 2019 -20 सत्र शून्य करने हेतु शासन को पत्र लिखते हैं, वहीं बिना किसी शासन की अनुमति के रातों रात 28 फार्मेसिस्ट के ताबड़तोड़ तबादले कर डालते हैं , अक्सर कहा जाता है कि प्रशासनिक क्षेत्र में अधिकारी अक्सर राजनीतिक दबाव में रहते हैं, बावजूद इसके एक सवाल विभाग के कई कार्मिकों की जुबान पर है कि निदेशक की ऐसी क्या मजबूरी थी कि 21 जून को विभागीय मंत्री के आदेशों के क्रम में स्थानांतरण सत्र शून्य करने हेतु शासन को पत्र भेजते हैं, वहीं 25 जून को रातों रात बिना मंत्री के अनुमोदन के फार्मिसिस्ट कर डालते हैं। तबादलों के इस खेल में उभर कर सामने आ रहे कई ऐसे पेंच भ्रष्टाचार की तरफ इशारा कर रहे हैं।
तबादला आदेशों में एक सवाल यह भी उभर रहा है कि उत्तरकाशी के अंतर्गत मनेरी व बड़कोट व जहां दोनों पद चीफ फार्मेसिस्ट के हैं वहां मात्र अनुरोध के आधार कैसे और क्यों स्थानांतरण किया गया। नियम विरुद्ध तरीके से स्थानांतरित किये गए उक्त तबादलों पर आने वाले समय मे होने वाली विभागीय डीपीसी के बाद नए चीफ फार्मेसिस्ट को कैसे औऱ कहाँ पदोन्नति ट्रांसफर दिया जा सकेगा।
25 जून को जारी 28 तबादलों की लिस्ट में सर्वाधिक 24 तो मात्र अनुरोध पर ही हुए है विभागों में अनुरोध के आधार पर तबादले तभी संभव जब उक्त कार्मिकों को उस स्थान पर कम से कम तीन वर्ष पूर्ण हो चुके हों जबकि यहां कई फार्मेसिस्ट उक्त मानक को पूर्ण ही नही करते हैं। उक्त तमाम बिन्दुओं से उभर रहे कारणों से तबादलों के इस खेल में रुपये लेकर बात भी सामने आने लगी है। विभागीय कर्मचारी निदेशक के इस प्रकार के आदेशों के विरुद्ध लामबंद होने लगे हैं।
उक्त प्रकरण पर विभागीय मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए जांच कराने की बात है, साथ ही कहा है दोषी पाए जाने वाले अधिकारी के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही भी की जाएगी।