बाहरी पत्रिकाओं को विज्ञापन बांटने का मुद्दा उठाकर उत्तराखंड के पत्रकारों के मीडिया संस्थानों में सुर्खियां पाने का ख्वाब सजाए बैठे विपक्षी दलों का दांव उन्ही पर उल्टा पड़ गया।
विपक्षी दलों द्वारा लगाया गया यह आरोप अखबारों मे सुर्खियां तो नहीं बना लेकिन पत्रकारों ने सोशल मीडिया और अपने न्यूज़ पोर्टल पर आरोप लगाने वालों को जरूर आड़े हाथों ले लिया।
मुद्दा दरअसल है कि जनवरी 2022 में दिल्ली की एक पत्रिका को विज्ञापन जारी किया गया था। इसके विज्ञापन आदेश को हथियार बनाकर विपक्षी दलों ने वर्तमान सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी को लेकर सवाल खड़े कर दिए। जबकि उन्होने सितम्बर 2022 मे कार्यभार ग्रहण किया। यह विज्ञापन उनके कार्यकाल से पहले वाले सूचना महानिदेशक के कार्यकाल में जारी किया गया था।
हालांकि तब किसी विपक्षी दल ने इस पर सवाल नही उठाए थे।2 साल बाद इस मुद्दे को वर्तमान डीजी से जोड़े जाने पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर जो मुद्दा 2 साल पहले नहीं उठाया गया, आज वह वर्तमान सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी से जोड़कर क्यों उठाया जा रहा है, जबकि इस मुद्दे से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
यदि मसला केवल सूचना विभाग तक भी सीमित रहता तो संभवतः इतनी तीखी प्रतिक्रिया नहीं होती लेकिन इस मामले में वर्तमान सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके नाम और फोटो के साथ कुछ पोस्ट की गई ,इससे पूरा मामला ही उल्टा पड़ गया। पत्रकार जगत में भी तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली, और आरोप लगाने वाले बैकफुट पर नजर आए।
कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ लोग वर्तमान सूचना महानिदेशक को इस महकमें में नहीं रहने देना चाहते।यह मुद्दा उठाने वालों ने इसको अनजाने में उठाया है या फिर उनकी आड़ में कोई और अपने हित साध रहा है, यह अपने आप में जांच का विषय हो सकता है।
जनवरी 2022 में जब यह विज्ञापन जारी किया गया था तब इस तरह के विज्ञापनों को लेकर सवाल उठाने वाले गुणानंद जखमोला और अखिलेश डिमरी ने भी अपनी अपनी पोस्ट में इस तरह के आरोप लगाने वालों को जिम्मेदारी बरतने की नसीहत दी है। उन्होने दो साल बाद इस प्रकरण को वर्तमान डीजी सूचना से जोड़े जाने पर अपने अंदाज में आपत्ति जाहिर की है। अखिलेश डिमरी ने भी जिम्मेदारी से पत्रकारिता करने की नसीहत दी है।
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश नौटियाल ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा है कि जो काम वर्तमान सूचना महानिदेशक ने किए हैं, वह अभी तक किसी ने भी नहीं किया। वह लिखते है कि डीजी सूचना बंशीधर तिवारी की लोकप्रियता से घबराकर चंद लोग बदनाम करने की साजिश में जुटे हैं।
अवधेश यह गिनाना नही भूलते कि उन्होंने सीएम के सामने मीडिया के तीनों प्लेटफार्म के पत्रकारों के हितों की तीन मूल्यवान योजनाएं बनाई। इनमें पत्रकार कल्याण कोष में 5 करोड़ की जगह 10 करोड़ की वृद्धि, ग्रुप इंश्योरेंस व स्वतंत्र पत्रकार, राज्य पत्रकार, जिला पत्रकार के बाद अब तहसील स्तर पर तहसील पत्रकार भी मान्यता श्रेणी में रखे जाने को मान्यता देने का प्रावधान है। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, पोर्टल्स को भी उन्होंने यथासंभव विज्ञापन जारी किये हैं। उत्तराखंड के लघु एवं मध्यम इकाई की पत्र-पत्रिकाओं के हितों का भी ध्यान रखा जा रहा है। मासिक मैगजीन के संपादक को भी मान्यता प्रस्तावित है।
अवधेश नौटियाल कहते हैं कि संभवतः यह बंशीधर तिवारी की लोकप्रियता को देखते हुए कुछ लोग उनको साजिशन डीजी पद से हटाने में जुटे हुए हैं और इसका मोहरा चंद पत्रकार बन गये हैं। पत्रकारिता बैलेंस होनी चाहिए। यदि किसी ने डीजी सूचना पर इतना गंभीर आरोप लगाया है तो पत्रकारेां को चाहिए था कि उनका पक्ष भी जान लिया जाता। बायस पत्रकारिता नहीं होनी चाहिए। आरोप लगाने वाले के साथ ही आरोपी का पक्ष भी होना चाहिए। यही पत्रकारिता का नियम है।
वरिष्ठ पत्रकार राकेश बिजल्वाण कहते हैं कि राज्य गठन के बाद से सूचना विभाग में कई डीजी आये और चले गए। लेकिन जब से बंशीधर तिवारी जी ने सूचना विभाग की कमान संभाली है तब से एक नया बदलाव देखने को मिला है। पत्रकारों के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। पत्रकारों से मिलना उनकी समस्याओं को सुनना और उसका समाधान करना उनकी प्राथमिकताओं में रहता है। पत्रकारों को विज्ञापन देने की बात हो या फिर विभाग से मिलने वाली किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद, वह कभी किसी को निराश नहीं करते। पत्रकार चाहे न्यूज़ पोर्टल का हो, मासिक पत्रिका का हो, साप्ताहिक समाचार का हो दैनिक अखबार का हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का, वह हर किसी को वह समान भाव से देखते हैं और उसकी समस्याओं के समाधान के लिए कार्य करते हैं।
बहरहाल जल्दी बाजी में इस मुद्दे को हवा देकर सुर्खियां बटोरने की लालसा रखने वाले लोग अब खुद बैकफुट पर हैं।