कोटद्वार की नदियों का खननकारी कर रहे है चीर हरण, सरकारी महकमें बेबस
मनोज नौडियाल, कोटद्वार
कोटद्वार। कोटद्वार क्षेत्र की चार नदियों में रिवर टे्रनिंग और चैनलाइज के नाम दिये गये खनन पट्टों के द्वारा नदियों का मनमर्जी अनुसार बेहताशा दोहन किया जा रहा है। जिससे करोड़ों अरबों की सरकारी सम्पति और काश्तकारों को नुकसान पहुंच सकता है।
रिवर ट्रेनिंग के नाम पर करोडों का चूना
रीवर ट्रेनिंग के नाम पर मिले पट्टों के तहत खननकारियों द्वारा नदियों में अनियोजित एवं मानकों को तोड़ते हुए जहां भारी खनन किया जा रहा है, वहीं वन विभाग व राजस्व विभाग की भूमि पर बिना इजाजत रास्ता बनाकर ओवर लोड डम्फरों को दौड़ाया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि खोह, सुखरो समेत अन्य नदियों में चैनेलाइजेशन के नाम पर मशीनों से 18 से 20 फुट गहरे गड्ढ़े खोदे गये है। जबकि नियमानुसार तीन मीटर से ज्यादा नदियों को नहीं खोदा जा सकता है। प्रशासन जानकारी के बावजूद भी चुप्पी साधे हुए है।
माफिया के हौसले बुलंद
खनन कारियों के हौैसले इतने बुलन्द हैं कि उन्होंने खनन का पट्टा लेकर खुद को नदी का मालिक घोषित कर दिया है। नदियों में मानक के विपरीत हो रहे खनन का लाइव वीडियो दिखाने पर जहां खनन कारियों पर जानलेवा हमला करने की रिपोर्ट कोतवाली में दर्ज कराई गई है, वहीं नगर निगम पार्षद सूरज प्रसाद कांति ने खोह नदी में मानकों के खिलाफ हो रहे खनन का फेसबुक पर लाइव वीडियो करने पर खनन से सम्बन्धित पूर्व ब्लॉक प्रमुख पर जान से मारने का और खोदे गये गड्ढ़ों में दबाने की धमकी देने का आरोप लगाया है।
सरकारी जांच टीम ने माना अवैध खनन
नदियों में रिवर ट्रेनिंग के नाम पर मिले पट़्टों के तहत अनियोजित एवं मानकों के विपरीत हो रहे खनन से बाढ़ सुरक्षा दीवारों व अन्य कार्यों के निर्माण को क्षति पहुंचने का अंदेशा राजस्व विभाग, सिंचाई विभाग व वन विभाग की संयुक्त टीम ने भी स्वीकार किया है।
संयुक्त टीम की इस रिपोर्ट पर उपजिलाधिकारी ने भले ही खानापूर्ति के लिए खोह और ग्वालगढ़ नदी में दो दिन खनन रोककर सरकारी सम्पति यानि सुरक्षा दीवारों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए खनन कारियों से खोदे गये गड्ढ़ों को भरने और सुरक्षा दीवारों पर बोल्डर लगाने को कहा गया है।
हालांकि दो दिन तक खनन रुका रहा, लेकिन अभी तक बनाई गई सुरक्षा दीवारों के साथ खोदे गये गड्ढ़ों को नहीं भरा गया है। यहीं नहीं सिगड्डी स्रोत, सुखरो नदी व मालन में कलालघाटी के नीचे वन विभाग की भूमि पर ही डंपरों के लिए रास्ता बनाया गया है, लेकिन वन विभाग इस मामले में कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है।
ओवर लोडिंग से सड़कों को नुकसान
ओवर लोडिंग के मामले में राजस्व विभाग एवं पुलिस द्वारा अनेकों बार ओवर लोड डंपरों को पकड़कर चालान भी किया गया, बावजूद इसके कोटद्वार की इन नदियों से डंफर ओवर होकर उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश की सड़कों पर दौड़ रहे है।
कोटद्वार के एकमात्र स्टेडियम की बुनियादी तक पहुंचे खननकारी
भविष्य के खिलाड़ियों के लिए कोटद्वार में अभ्यास करने के लिए एक मात्र शशिधर भट्ट राजकीय स्पोर्टस स्टेडियम है। इस स्टेडियम ने अभी तक देश और प्रदेश को कई राष्ट्रीय खिलाड़ी दिये है। इस स्टेडियम में सैकड़ों युवा प्रतिदिन अभ्यास कर भविष्य में खिलाड़ी बनने का सपना देखते है, लेकिन इन युवाओं के सपने को खननकारी ग्रहण लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। खनन कारियों ने खोह नदी से सटी स्टेडियम की बुनियाद तक खोद डाली है। जिससे बरसात के समय स्टेडियम के बहने के खतरा बना हुआ है। पूर्व खिलाड़ियो से लेकर स्टेडियम के अधिकारी और कोच कई बार प्रशासन को इस संबंध में अवगत करा चुके है।
शिकायत पर उपजिलाधिकारी ने सिंचाई विभाग, राजस्व व खनन विभाग की टीम से संयुक्त सर्वें कराया था, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। अगर खनन कारियों द्वारा स्टेडियम की बुनियाद को इसी तरह से खोदा गया तो बरसात में स्टेडियम का बहना तय है।
मानकों के विपरीत खनन पर प्रशासन की लीपापोती
रिवर टेनिंग के नाम पर मिले पट्टों की आड़ में कोटद्वार की नदियों में हो रहा खनन मानकों के विपरीत है, इस बात को जब स्थानीय लोगों द्वारा उठाया गया तो खनन कारियों द्वारा उन्हें धमकी देकर चुप कराया गया, किन्तु जब प्रशासन की सिंचाई, वन व राजस्व विभाग की टीम ने भी इसे मानकों के विपरीत खनन होने की पुष्टि की है तो उसके बावजूद पट्टों को निरस्त करने के बजाय उनके द्वारा केवल सुरक्षा दीवारों को सुरक्षित करने की कार्रवाई करने के लिए कहा गया। इससे लगता है कि प्रशासन खननकारियों के द्वारा मानकों के विपरीत किये जा रहे खनन को रोकने में नाकाम है और उनको प्रेशर दिया जा रहा है।
यदि खननकारियों द्वारा नदियों को अपनी मनमर्जी से खोदा जाता रहा तो सिंचाई विभाग स्टेडियम एवं वन विभाग की करोड़ों की लागत से बनी सुरक्षा दीवारें बरसात में क्षतिग्रस्त हो सकती है। जिससे सरकार को नदियों के खनन से मिले राजस्व से कई गुना राजस्व का नुकसान होगा।