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सीएम के भ्रष्टाचार पर फैसले मे जस्टिस मैठाणी ने किया नेगी दा के गीतों का जिक्र

October 29, 2020
in पर्वतजन
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सीएम के भ्रष्टाचार पर फैसले मे जस्टिस मैठाणी ने किया नेगी दा के गीतों का जिक्र

समाज में भ्रष्टाचार का नासूर मिटाने के लिए आरोपों की जांच जरूरी – हाईकोर्ट जज रवींद्र मैठाणी ! उच्च न्यायाधीश रवींद्र मैठाणी ने अपने निर्णय में लिखा कि भ्रष्टाचार जैसे नासूर का खतरा जीवन में हर ओर घुस चुका है। लगता है समाज इस का आदी बनता जा रहा है। उत्तराखंड के लोकगीतों में आमजन की सोच उजागर हो रही है मानो भ्रष्टाचार जीवन का आधार बन गया है।

मच्छली को पानी पीते किसे नहीं देखा,
पंछी पेड़ों पर सोते नज़र नहीं आते ।
भाई साहब, घूस लेते हैं सबको पता है,
लेकिन किसी ने घूस लेते देखा नहीं ।।

गीतकार और गायक नरेंद्र सिंह नेगी के दूसरे गढ़वाली गीत का भाव है –
कमीशन की मीट भात और रिश्वत का रायता,
अब बस कर , ज्यादा मत खा,
आखिर कितना खा लेगा अब तो बस कर !

उत्तराखंड हाईकोर्ट में पहली बार भ्रष्टाचार को चरितार्थ करते गढ़वाली लोकगीतों का संज्ञान लिया गया है और यह गाज इस बार त्रिवेंद्र सिंह रावत पर गिरी है । त्रिवेंद्र सिंह रावत को साबित करना है कि रांची, झारखंड के अमृतेश सिंह चैहान और उनके बीच क्या संबंध है, स्मार्मफोन पर वाटसएप के जरिये चर्चित वार्तालाप और हकीकत क्या है ? क्यों अमरतेश 25 लाख के भ्रष्ट लेन देन का शोर सोशल मीडिया में बार बार उठाता रहा है !

उत्तराखंड हाईकोर्ट के विद्वान जज रवींद्र मैठाणी का यह निर्णय प्रदेश के जनमानस के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है – जहां यह आम धारणा है कि बड़े और पहुंच वालों के लिए भ्रष्टाचार तो शिष्टाचार है और उन पर कानून का शिकंजा नहीं कसा जा सकता है। पहली बार प्रदेश हाईकोर्ट ने आम उत्तराखंडी के लिए यह आह्वान अपने निर्णय में दिया है कि जब तक संविधान है, तभी तक लोकतंत्र है। संविधान से परे तो प्रदेश का मुख्यमंत्री भी नहीं है और उसे अब सीबीआई तथा अन्य जांच एजैंसियों से जांच कराकर अपने को पाक साफ दिखना ही नहीं साबित भी करना है।

83 पेज के निर्णय में बड़े कौशल व विस्तार से माननीय जज ने सुप्रीट कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट के मामलों की नजीर लेकर सरकार के पूर्वाग्रह और नेताओं को खुश करने की प्रशासनिक अधीरता, पुलिस थाने की एफआईआर व जांच को एकदम कानून विरोधी साबित किया है। याचिका कर्ता उमेश शर्मा ने कई प्रेसवार्तााओं में अपने आरोपों को बार बार दोहराया है लेकिन पुलिस ने इक तरफा कार्यवाही की है। जांच में बरती गई भारी लापरवाही सरकार की दुर्भावना है जिसमें भ्रष्टाचार को उजागर करने की जगह ढकने का प्रयास रहा है। जांच में एक पक्ष का समर्थन और दूसरे पक्ष के आरोपों की जांच न करने पर अब जांच का जिम्मा नई एफआईआर दर्जकर सीबीआई एसपी देहरादून के हवाले किया गया है।

विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में लिखा है कि सूचनादेने वाले हरेंद्र सिह रावत को 31 जुलाई को प्रस्तुत सीओ पुलिस की जांच रिर्पोट कापी, उसी दिन आरटीआई के तहद मिल गई और आवश्यक फीस भी नहीं ली गई है यह सब दुर्भावना और पूर्वाग्रह बता रहा है। इस तरह की जांच का उल्लेख कानून में नहीं मिलता है सो याचिका कर्ता के विरूद्ध एफआईआर को रद्द किया जाता है। एक ही मामले के लिए पुलिस अलग अलग एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती और किसी व्यक्ति या प्रतिनिधि के खिलाफ आरोप लगाना मात्र राजद्रोह नहीं है। हाईकोर्ट जज रवींद्र मैठाणी का यह कालजयी निर्णय दूध का दूध और पानी का पानी कहावत को चरितार्थ करने में सफल रहा है।


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