विश्व स्वास्थ्य संगठन और आईसीएमआर ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि अगले 20 घंटे भारत के लिए बहुत भारी हैं, वहीं उत्तराखंड सरकार ने ठीक ऐसे समय में लॉक डाउन में छूट की सीमा 6 घंटे तक बढ़ा दी है। यही नही बल्कि थोक बाजार भी दो से शाम 4:00 बजे तक के लिए खोल दिए हैं।
इसके अलावा सरकार ने देहरादून में यह फैसला किया है कि अब रेस्टोरेंट अपना किचन शुरू कर सकते हैं और भोजन चेन वाले भी अपना काम शुरू कर सकते हैं। हालांकि होटल और फूड सप्लाई चैन होम डिलीवरी करेंगे। जाहिर है कि इस आदेश से हजारों लोग और भी अधिक सड़कों पर होंगे। जिससे कोरोना का खतरा और बढ़ जाएगा
नवरात्र में मीट और अंडों की दुकानें भी खोल दी हैं , जैैैैसे कि यही कमी बाकी रह गयी थी। अब लोग मुख्यमंत्री के इस आदेश की मजाक उड़ाते हुए कह रहे हैं कि जैसे ही महामारी का प्रकोप बढ़ेगा हमारे लोकप्रिय मुख्यमंत्री जी अंदर से भी सैनिटाइजेशन की व्यवस्था करने के लिए अल्कोहल की दुकानें भी खोल देंगे। क्या हम उत्तराखंड में भी इटली और चाइना दोहराना चाहते हैं ! जो लोग उत्तराखंड आने के लिए अथवा उत्तराखंड से जाने के लिए सड़कों पर हैं उनके लिए आप कुछ नहीं कर पा रहे और जो डर से घर में रुके हुए हैं क्या उनको बाहर निकालने के लिए आप दुकानें और रेस्टोरेंट खुलवा रहे हैं !
रैस्टोरेंट और फूड चेन खोलने के आदेश
आमतौर पर व्यक्ति शाम को 7:00 बजे से सुबह 7:00 बजे तक 12 घंटे स्वेच्छा से ही घर में रहता है। ऐसे में सरकार की सख्ती अगर है तो मात्र तीन घंटे का ही व्यवहारिक लॉक डाउन कहा जा सकता है। वह भी शाम 4:00 से 7:00 बजे तक। वर्तमान एक सप्ताह का यह समय लोगों को बिल्कुल घर में जबरन बनाए रखने का है, चाहे लोग नमक रोटी से ही काम चला लें, किंतु ऐसे समय में सरकार ने 7:00 से 1:00 तक आवश्यक दुकानों को खोला है और 2:00 बजे से 4:00 बजे तक थोक की दुकानों को खोलने का समय कर दिया है। दुकानों में उमड़ रही भीड़ मे लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं, और ना ही पुलिस सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन कराने में इक्का-दुक्का जगह को छोड़कर सफल हो पा रही है।
सोशल डिस्टेंसिंग के प्रति लापरवाही का आलम यह है कि यदि कहीं एक जगह पर कुछ लोग फंस गए हों तो पुलिस उन्हें एक साथ भेड़ बकरियों की तरह ट्रक में डाल कर थाने ले आती है और फिर सोशल डिस्टेंसिंग के लिए बनाए गए घेरों में बिठाकर उन्हें खाना खिला देती है तथा फोटोग्राफ्स मीडिया में जारी हो जाते हैं।
यह कोई भी समझ सकता है कि जब पहले ही उन्हें भेड़ बकरियों की तरह भरकर ट्रक में लाया जा चुका है तो फिर बाद में अलग अलग बिठा कर रखने का क्या मायना रह जाता है ! उसी तरह से जब लॉक डाउन छूट के समय दुकानों और सड़कों पर सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने की कोई सुविधा नहीं है तो फिर तीन-चार घंटे लॉक डाउन का क्या मायना रह जाता है ! पौड़ी में तो तब हद हो गई जब एक एसडीएम ने अपने होमगार्ड के साथ मिलकर स्थानीय व्यक्ति को सिर्फ इसलिए पीट दिया कि वह लॉक डाउन छूट के समय सामान खरीदते वक्त सोशल डिस्टेंस मेंटेन नहीं कर रहा था।
घर घर से कड़ा उठान तो घर घर मे राशन क्यों नही
अहम सवाल यह है कि जब सरकार घर घर से कूड़ा उठाने के लिए कार्यक्रम चला सकती है, जब वोटर्स की पर्ची घर-घर पहुंच सकती है तो फिर इस संवेदनशील समय में लोगों को घर में ही कैद रखकर घर-घर राशन की डिलीवरी क्यों नहीं की जा सकती ! आज नहीं तो कल आपको इन सवालों का जवाब देना ही होगा।
यदि सरकार चाहे तो विभिन्न ऑनलाइन कंपनियों के डिलीवरी ब्वॉय अथवा बिग बाजार, मेगा मार्ट जैसे मॉल अथवा किराना की दुकानों से भी घर-घर डिलीवरी करा सकती है। वे खुद भी कर ही रहे हैं।
लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान देने की बजाय लॉक डाउन छूठ का समय और बढ़ा दिया है। एक तरह से सरकार ने जनता को उसी के हाल पर छोड़ दिया है।
उत्तराखंड मे दो तरह के लोग फंसे
अपने-अपने घरों में रह रहे लोगों के अलावा उत्तराखंड में इस समय दो तरह के लोग हैं। एक वे जो बिहार अथवा अन्य राज्यों से यहां काम पर आए थे लेकिन काम धंधा बंद हो जाने पर वापस जा रहे हैं और दूसरी तरफ वे लोग हैं जो उत्तराखंड से विभिन्न राज्यों में गए हुए थे लेकिन वहां काम धंधा बंद हो जाने पर अब वापस आ रहे हैं।
न खाने रहने के इंतजाम, न भेजने बुलाने की व्यवस्था
सरकार के पास इन लोगों के लिए दो काम हैं या तो उन्हें सुरक्षित उनके राज्यों तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दी जाए अथवा वे जहां पर हैं, उन्हें छोटे-छोटे कलस्टर में बांटकर उनके सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन करते हुए 14 अप्रैल तक खाने रहने की व्यवस्था कर दी जाए। इसमे क्यों होटल अथवा सरकारी गेस्ट हाऊस दोनो सहर्ष उपलब्ध हैं।
महामारी के इस अत्यंत संवेदनशील समय में न तो सरकार उन लोगों के लिए जहां है वहीं पर रहने खाने के कोई बेहतर प्रबंध कर पा रही है और ना ही उन्हें अपने राज्य में बुलाने अथवा उनके राज्यों में भेजने के लिए कोई कारगर प्रबंध कर पा रही है।
तीन बार हेल्पलाइन जारी, तीनों बार फुस्स
विभिन्न राज्यों में फंसे उत्तराखंड के लोगों के लिए सरकार 3 बार हेल्पलाइन नंबर जारी कर चुकी है पहली बार स्थानिक आयुक्त इला गिरी के नंबर जारी किए गए, जिन्होंने फोन ही नहीं उठाया।
उसके बाद आलोक पांडे आदि अधिकारियों के नंबर जारी किए, उनसे भी ऐसे भी लोगों को कोई राहत नहीं मिली। अब सरकार ने तीसरी बार जो नंबर जारी किए हैं, वे भी विभिन्न प्रदेशों में फंसे हुए लोगों को या तो टका सा जवाब दे रहे हैं या फिर टरका दे रहे हैं। या फिर 104 आपातकालीन सेवा का नंबर पकड़ा दे रहे हैं। उन नंबरों पर यदि बात हो रही है तो वह कह रहे हैं कि वे केवल स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी ही दे सकते हैं
सीएम की संवेदना माशाअल्लाह
मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता का हाल यह है कि वह मीट अंडे की दुकानें खोलने की जानकारी देने के लिए तो फेसबुक पर लाइव आ गए लेकिन कालाबाजारी और महंगी कीमतों पर सामान बेचने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने अथवा विभिन्न राज्यों में फंसे लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने या फिर उन्हें वहीं पर रुकने की व्यवस्था करने के लिए कोई ठोस आश्वासन देने के लिए लाइव नहीं आ पाए।
यही कारण है कि किसी तरीके से ऋषिकेश पहुंचे लोग सौ -सौ किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर जा रहे हैं तथा उत्तराखंड में काम के लिए आए बिहारी अथवा अन्य राज्यों के मजदूर चमोली या उत्तरकाशी से अपने राज्यों के लिए पैदल रास्ते लगे हुए हैं। उन्होंने कई दिन से खाना नहीं खाया।
सारा मीडिया गोद मे
ऐसे तमाम वीडियो समय-समय पर आप सोशल मीडिया में देख रहे होंगे। फेसबुक, व्हाट्सएप के अलावा अन्य मीडिया से मूल समस्या ही गायब है। क्योंकि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बाद अब न्यूज़ पोर्टल मीडिया को भी मैनेज किया जा चुका है।
अब आपको जनता के दुख दर्द जानने के लिए व्हाट्सएप और फेसबुक पर ही निर्भर रहना होगा।
अन्य राज्यों से संपर्क नही
बिहार सरकार ने भी विभिन्न राज्यों में फंसे लोगों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं, लेकिन इसकी जानकारी उत्तराखंड के अधिकारी यहां के लोगों को नहीं दे रहे हैं। संभवतः उनका ऐसा कोई कोआर्डिनेशन की नहीं है।
सीएम ही गंभीर नही तो दूसरों का क्या
इसके अलावा कोरोना की महामारी और लॉक डाउन की गंभीरता को खुद मुख्यमंत्री भी नहीं समझ रहे।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कुछ दिन पहले एक विज्ञापन जारी किया, जिसमें उनका कहना था कि मास्क लगाना जरूरी नहीं लेकिन खुद वही विधानसभा सत्र के दौरान जब मास्क लगाए हुए अपनी पूरी कैबिनेट के साथ घूम रहे थे तो लोग देखते रह गये।
वहीं हल्द्वानी में एक पुलिस अफसर ने स्थानीय आदमी को सिर्फ इसलिए पीट दिया कि वह मास्क लगाए नहीं था। कई जगह पुलिस बिना मास्क लगाए लोगों के हाथ में एक पर्चा पकड़ा पकड़ा कर फोटो खींचकर वायरल कर दे रही है, जिसमें लिखा होता है कि “मैं मास्क नहीं पहने हूं मैं समाज का दुश्मन।” तो लोगों को बड़ा आश्चर्य है।
इसके अलावा मुख्यमंत्री ने खुद लोगों से अपील की कि “बाहर मत निकलें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कीजिए” लेकिन खुद मुख्यमंत्री ऋषिकेश के सिंगटाली में 500 की भीड़ में बिल्कुल चिपक चिपक कर उद्घाटन कर आते हैं।
लोग इसलिए भी लापरवाह
यही नहीं विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री के अपने दर्जनों सहयोगियों के साथ चिपक कर चलते हुए फोटो देखकर लोगों को आश्चर्य हुआ और उन्हें लगा कि वाकई कोरोना कोई ऐसी महामारी नहीं है जिसके बारे में इटली,अमेरिका और चाइना के लोगों ने वीडियो डाल डाल कर इतना खौफ पैदा कर दिया है। और वीडियो डालने वाले लोग शायद कुछ ज्यादा ही डरे हुए हैं। भारत में ऐसा कुछ नहीं होगा और उत्तराखंड को तो मुख्यमंत्री के आश्वासनों का सुरक्षा कवच मिला हुआ है।
लाॅकडाउन मे छूट क्यों !
कोरोना से बचने की लापरवाही तब और ज्यादा हो जाती है जब उत्तराखंड में कोरोना के लाॅक डाउन की छूट की सीमा 7:00 से 10:00 के बजाय 7:00 से 1:00 तक बढ़ा दी जाती है और इसके अलावा थोक बाजार के लिए यह समय सीमा 2:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक कर दी जाती है तथा मीट और अंडों की दुकानें भी खोल दी जाती हैं।
इससे दो तरह के संदेश जा रहे हैं कुछ लोग इसे महामारी को जबरन आमंत्रित करने वाला कदम बता रहे हैं तो कुछ लोग यह सोच रहे हैं कि शायद कोरोना इतनी बड़ी महामारी नहीं है अन्यथा सरकार लॉक डाउन की सीमा में ढील क्यों देती !
लोगों को लगता है कि अब हालात सुधर रहे हैं और वे लापरवाह होते जा रहे हैं। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन्हीं 20 घंटों को सख्ती से घर में रहने के लिए चेतावनी दी है। यदि उत्तराखंड में महामारी फैली तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा ! शायद तब तक तक यह समीक्षा करने का भी कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।
पर्वतजन का अपने पाठकों से यही अनुरोध है कि कृपया घर पर ही रहे सिर्फ और सिर्फ घर पर लॉक डाउन रहने से ही हम बच सकते हैं