कुलदीप एस राणा
सूबे के दो राजकीय मेडिकल कालेजों में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जनरल खंडूरी द्वारा की गई बांड व्यवस्था की वर्तमान सरकार ने किया खत्म।
दोनों कालेजो में दखिले को देने होंगे चार लाख रुपये शुल्क।
उत्तराखंड सरकार ने सूबे में स्थित तीन राजकीय मेडिकल कालेजों में से दो में बांड की व्यवस्था को खत्म कर दिया है, जिसके बाद से सूबे में मेडिकल की पढ़ाई न सिर्फ महंगी हो गयी है, साथ ही उक्त आदेश से एक झटके में एमबीबीएस की पढ़ाई कर डॉक्टर बनने का सपना देख रहे सूबे के मध्यम व निम्न आय वर्ग के युवाओं को परेशानी मे डाल दिया है।
पिछले सत्र तक उत्तराखंड के तीनों राजकीय मेडीकल कालेज जिनमे हल्द्वानी में 100, श्रीनगर में 100 व दून मेडिकल कालेज में 150 सीटें मिलाकर कुल तीन सौ पचास सीटें थी।
सभी सीटों पर मात्र पचास हजार के न्यूनतम शुल्क पर सूबे के छात्र-छात्राएं एक लिखित बॉन्ड भर कर एमबीबीएस की पढ़ाई कर सकते थे। अब मात्र श्रीनगर मेडिकल कालेज में दाखिला पा सकने वाले छात्रों को इसका लाभ मिल सकेगा। बांड की शर्त व उक्त शर्त का उद्देश्य था कि सूबे के युवाओं को कम शुल्क पर चिकित्साशिक्षा उपलब्ध करवाना व एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत उक्त डॉक्टर को पांच वर्ष तक उत्तराखंड के विभिन्न पर्वतीय जनपदों के चिकित्सालयों में नियुक्ति देकर जनहित में सेवाएं लेना। जिससे पर्वतीय क्षत्रों में डॉक्टरों की कमी को पूरा कर स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरस्त किया जा सके।
गौर करने वाली बात यहाँ यह भी है केंद्र सरकार के एक आदेश से अखिल भारतीय स्तर पर राजकीय चिकित्सा संस्थानों की सीटों में वृद्धि की गई है, जिससे उत्तराखंड को 75 सीटों का लाभ प्राप्त हुआ, जिन्हें 25-25 सीटों के साथ तीनों राजकीय मेडिकल कालेज में समान रूप से दिया गया है।
पहले सूबे के राजकीय संस्थानों की सभी 350 एमबीबीएस की सीटों पर न्यूनतम शुल्क पर दाखिला उपलब्ध था, वहीं 75 सीटें बढ़ जाने के बावजूद यह श्रीनगर मेडिकल कालेज की मात्र 125 सीटों तक ही सिमट गया है। अन्य दो हल्द्वानी व दून मेडिकल कालेज की कुल 300 सीटों पर अब दाखिले के लिए छात्रों को चार लाख रुपये शिक्षण शुल्क जमा करना होगा। हालांकि श्रीनगर के साथ साथ नव निर्मित अल्मोड़ा मेडिकल कालेज भी उक्त आदेश की जद में है किंतु अभी वहां शिक्षण कार्य प्रारंभ नही हो सका है।
यहां हम आपको यह भी बताते चलें कि वर्तमान में सरकार के उक्त निर्णय से उत्तराखंड के राजकीय संस्थानों में चिकित्साशिक्षा शुल्क देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे महंगा हो गया है।
नीट की परीक्षा में बेहतर रैंकिंग हासिल करने वाली मध्यम वर्गीय परिवार की एक छात्रा ने बताया कि एक ओर जहां वह नीट में अपनी रैंकिंग से खुश है वहीं उसे यह भी डर सता रहा है कि यदि उसका नम्बर श्रीनगर की 125 सीटों में नही आया तो वह सूबे के अन्य दोनों मेडिकल कालेजों के महंगे शुल्क पर कैसे दाखिला ले सकेगी !