रेखा आर्य के साथ ही क्यों राजी नहीं अफसर ! षणमुगम से पहले राधा रतूड़ी, सबीन बंसल,ज्योति और सुजाता भी कर चुके हैं इनकार
यह पहला मामला नहीं है, जब राज्यमंत्री रेखा आर्य के अधीन काम करने से अफसरों ने मना किया है।
वी षणमुगम से पहले भी अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, ज्योति यादव, सबीन बंसल भी काम करने से मना कर चुके हैं।
अहम सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या है जो अफसर राज्यमंत्री रेखा आर्य से बिदक जाते हैं !
सबीन बंसल भी कर चुके मना
अल्मोड़ा में डीएम रहने के दौरान साफ छवि के आईएएस सबीन बंसल राज्यमंत्री रेखा आर्य के अनावश्यक दबाव से उनके अधीन काम करने से मना कर चुके हैं। तब डीएम सबीन बंसल को शासन बुला लिया गया था।
हाई कोर्ट के ऑर्डर के विपरीत जब राज्यमंत्री रेखा आर्य ने ट्रैफिक व्यवस्था बदलने की बात कही तो फिर सचिन बंसल ने मना कर दिया था। रेखा आर्य अपने पति पर दर्ज मुकदमे को लेकर भी राजनीतिक दबाव बना रही थी। इस पर सबीन बंसल ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि अगर डीएम पसंद नहीं है तो बदलवा दें।
ज्योति यादव भी खडे कर चुकी हाथ
शासन में साफ छवि की तेजतर्रार आईएएस अपर सचिव ज्योति यादव भी राज्यमंत्री रेखा आर्य के अधीन काम करने से इनकार कर चुकी हैं।
राधा रतूड़ी ने भी की तौबा
यहां तक की साफ छवि की वरिष्ठ आईएएस अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी भी रेखा आर्य के अधीन काम करने से काफी असहज रह चुकी है।
सबीन बंसल वाले विवाद के तत्काल बाद प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी ने भी रेखा आर्य के विभाग छोड़ने की इच्छा जताई थी और मुख्य सचिव को पत्र तक लिख दिया था। जबकि इससे पहले राधा रतूड़ी लंबे समय से यही विभाग संभाल रही थी। रेखा आर्य ने 20 जुलाई 2017 को विभागीय अधिकारियों के तबादलों को निरस्त करा दिया था इससे राधा रतूूड़ काफी असहज हो गई थी।
सुजाता से तकरार भी रही चर्चित
बाल विकास विभाग की उपनिदेशक सुजाता और रेखा आर्य के बीच तनातनी तो इतनी बढी कि रेखा आर्य ने उनके तबादले से लेकर उनके खिलाफ जांच तक बिठा दी थी। रेखा आर्य ने सुजाता के पूरे कार्यकाल की हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश से जांच कराने की बात कही थी। हालांकि विभागीय सचिव सौजन्य ने बात संभाली थी।
सौजन्या से भी ठनी
रेखा आर्य की अपनी विभागीय सचिव सौजन्या जावलकर से भी ठन चुकी है।
नियमों के विपरीत अनावश्यक दबाव डालने के लिए ट्रांसफर करने की बात का सौजन्या ने बहुत सफाई से इंकार कर दिया था।
सुजाता का ट्रांसफर जब हरिद्वार करने का रेखा आर्य ने आदेश दिया तो सौजन्या ने उन्हें मुख्यालय से तो हटा दिया। लेकिन आंगनबाड़ी महिलाओं के छात्रावास में प्रशिक्षण कार्य की नई तैनाती दे दी।
इस तरह से वह देहरादून में ही रह गई। इससे रेखा आर्य सौजन्या से भी उखड़ गई थी और सौजन्या को कड़ा पत्र लिखा था। साथ ही मीडिया से कहा था कि उत्तराखंड की नौकरशाही अपनी मर्जी से काम करती है, यह गलत परंपरा है।
और अब वी षणमुगम
हालिया प्रकरण में बेदाग छवि के वी षणमुगम ने भी साफ कह दिया है कि वह रेखा आर्य के अधीन काम नहीं करेंगे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार मनचाही कंपनी को टेंडर न मिलने से रेखा आर्य नाराज हैं।
रेखा आर्य द्वारा षणमुगम पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने को लेकर डीआईजी को उनके भूमिगत होने अथवा अपहरण होने जैसी बातें लिखने से सरकार की भी काफी छीछालेदर हुई है। और विपक्ष को भी यह मुद्दा बैठे-बिठाए मिल गया है।
बाल विकास विभाग में टेंडर को लेकर हुए एक विवाद के बाद षणमुगम ने दबाव में आने के बजाय अपने आप को रेखा आर्य सहित सभी की पहुंच से दूर कर दिया था और कह दिया था कि वह क्वारंटाइन में है।
विभागीय सचिव सौजन्या ने उनका बचाव करते हुए कहा था कि उन्हें उसकी सूचना दे दी गई थी
इसके बाद जब इस प्रकरण की जांच के लिए प्रमुख सचिव मनीषा कुमार को नियुक्त किया गया तो रेखा आर्य ने उनकी जांच पर भरोसा ना होने की बात कहते हुए एक और समस्या खड़ी कर दी है।
प्रदेश की वरिष्ठ आईएएस अफसर को लेकर अपहरण या भूमिगत होने की बात कहते हुए पुलिस को पत्र लिखना और अब आईएएस की जांच पर सवाल उठाने जैसे बचकाने कदमों के कारण जनता के बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की चुप्पी और कार्य कुशलता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
आखिर क्या कारण है कि तमाम साफ छवि के अफसर उनके अधीन काम करने से मना करते रहे हैं !
क्या रेखा आर्य को जानबूझकर फ्री हैंड दिया जा रहा है ! या फिर अफसर वाकई इतने गैर जिम्मेदार हो गए हैं !
जाहिर है कि जितने अफसरों ने रेखा आर्य के अधीन काम करने से मना किया है, वह सभी साफ और बेदाग छवि के माने जाते हैं।
ऐसे में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और रेखा आर्य इल्जाम लगाने के बजाय अपने गिरेबान में भी में भी झांकें तो शायद कुछ ठोस परिणाम पर पहुंच सकें।