मोहन काला फाउंडेशन तथा उत्तराखंड क्रान्ति दल कोरोना महामारी के कठिन दौर में देवदूत बनकर क्षेत्रवासियों की अपने कर्मठ स्वयंसेवकों द्वारा भरपूर सहायता कर रहे हैं ।
श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र के हर गांव और पट्टी चाहे वह चौथान, चोपड़ा-कोट, ढाईज्यूली, कन्डारस्युं, बाली कन्डारसयुं, क़टूलसयूँ, चलणस्यूँ, ढ़ौंडालस्युं या फिर घुड़दौड़स्यूं, हर गांव में अपने स्वयंसेवकों तथा कार्यकर्ताओं द्वारा निःशुल्क दवाइयों का वितरण करवाया जा रहा हैं।
आज देश में चारों तरफ शहरों से लेकर सुदूर गांव देहातों तक कोरोना नामक दैत्य ने तांडव मचा रखा हैं। कई असहाय और नौजवान असमय काल का ग्रास बन रहे हैं।
महानगरों में तो लोगों के पास लगभग सभी सुविधाएं हैं, जिसकी वजह से वे अपने परिजनों को समय रहते हॉस्पिटल या डॉक्टरी सलाह लेकर आइसोलेशन में रखकर कुछ हद तक बचाव कर पा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ सुदुर पहाड़ी इलाकों में जहां हॉस्पिटल और दवाई के लिए दूर कई कई किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है, वहां कोई अपने परिजनों को इस महामारी से कैसे बचा पाएगा, बहुत असमभव काम हैं।
सरकार चाहे राज्य की हो या फिर केंद्र की, वह तो सरकारी फरमान जारी करके अपनी इतिश्री समझ लेती हैं ।मरना तो आम इंसान को पड़ता हैं , जिस पर बीतती हैं। जिन लोगों को इस महामारी से दोचार होना पड़ा, उनकी आपबीती सुनकर आप दांतों तले अंगुली दबाकर रह जाएंगे।
अभी हाल ही में सोशल मीडिया के माध्यम से कई ऐसी दिल दहलाने वाली तस्वीरें सामने आईं। इनमें से एक ऐसी थी, जिसमें एक महिला अपने बुजुर्ग ससुर को पीठ पर लादकर की किलोमीटर की पैदल यात्रा करके हॉस्पिटल ले जाती हुई दिखाई दे रही थी, आगे क्या हुआ भगवान जाने।
हॉस्पिटलों की हालत जब दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में भी बदतर हैं तो गांव कस्बों की तो बात ही मत पूछिए ।
वहां तो न डॉक्टर और न ही कोई दवाई, सब राम भरोसे चल रहा हैं। आरटीपीसीआर रिपोर्ट के लिए भी वहाँ आपको कोसों दूर जाना पड़ता हैं और फिर रिपोर्ट भी कई दिन बाद आती हैं, तब तक तो पेशेंट भगवान को प्यारा हो जाएगा।
अधिकांश लोगों का कहना है कि, सरकार द्वारा चलाया गया टीकाकरण अभियान भी ऊंट के मुँह में जीरा ही साबित हुआ। पहली डोज देने के बाद समयावधि बढ़ाने के बाद भी टीको का टोटा हो गया हैं।
हर केंद्र पर मारामारी हो रही हैं। यह हाल गांव देहातों के ही नहीं महानगरों की भी यही स्थिति है। इस बढ़ाए गये समयांतराल यानि 12 से 16 हफ्ते पर सरकार कई तरह के तर्क दे रही हैं, लेकिन असलियत क्या है इसके बारे में सरकार ही बता सकती है।
कोरोना महामारी में जिन स्वयं सेवकों और उत्तराखंड के कार्यकर्ताओं ने अपनी निस्वार्थ सेवा श्रीनगर विधान सभा में दी हैं, उनमें प्रमुख हैं।
दीपक कंडारी, दिनेश रावत, खीम सिंह भण्डारी, डॉक्टर जगदीश रावत, हीरा सिंह राणा, नवीन जोशी, बलवंत सिंह, मनवर चौहान, देवेश डोभाल, युद्धवीर रावत, दीपक भण्डारी, सानी बहुगुणा, शुभम बहुगुणा, अतुल जोशी, मुकुल काला, अरविन्द नयाल, बलदेव सिंह, अनिल कुमार आदि शामिल थे।
मोहन काला फाउंडेशन के सर्वेसर्वा मोहन काला हर तरह से नि:स्वार्थ भाव से क्षेत्रवासियों की मदद करने में लगे हैं, जबकि सरकारी मदद लोगों तक नहीं पहुंच रही हैं।
प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। आखिर पार्टी ने ऐसे मौके पर उनके गले में घंटी बांधी हैं कि, उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा हैं। वे इस आपदा से प्रदेशवासियों को कैसे बचाएं उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा हैं ।
इस आपदा ने साबित कर दिया हैं कि, मोहन काला जैसे कर्मठ, ईमानदार, दयालु और निर्भीक जनप्रतिनिधि ही उत्तराखंड और अपने क्षेत्र का चहुमुखी विकास कर जनता के सपनों को साकार कर सकता हैं ।
मोहन काला क्षेत्रवासियों की हर गतिविधि और परेशानी को जानते समझते हैं, अन्यथा देहरादून या दिल्ली में बैठे जनप्रतिनिधियों को गांवों की परेशानी से क्या लेना देना, लेकिन काला जी जमीन से जुड़े हैं और हरेक की परेशानी समझते हैं।
क्षेत्र के लोगों को भी चाहिए कि ऐसे नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने वाले कर्मवीर को अपना जनप्रतिनिधि चुनें, जिससे जाकर वे आसानी से अपनी पीड़ा बता सकें।
यही नहीं मोहन काला फाउंडेशन ने ऐसे समय जब देश में महामारी तो विकराल रूप ले ही चुकी हैं , लेकिन बची खुची कसर तूफान ने पूरी कर दी, इसमें भी उत्तराखंडियों की दिलोजान से मदद करने में आगे हैं।
उन्हें मुंबई महानगर जहाँ तूफान का कहर जारी है, वहाँ से बसों में बैठाकर उन्हें उनके पैतृक गांव तक पहुंचने में दिन रात एक कर रहे हैं।