उत्तराखंड में पिथौरागढ़ पुलिस का एक नया कारनामा सामने आया है पुलिस ने जिले में क्षेत्र पेटी शराब पकड़ी लेकिन मौके से रसूखदार दो लोग तो फरार हो गए और गुनाहगार उनका नौकर बेचारा पकड़ा गया। पुलिस नेे इस गुड वर्क को बताया लेकिन भागने वाले रसूखदार उनका नाम छुपा दिया।
जल्दी ही इसकी पोल खुल गई। दरअसल पुलिस ने पहले एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी, जिसमे नौकर का नाम और भागने वाले दोनोंं लोगों का नाम बताया हुआ था, लेकिन एक घंटे बाद संशोधित प्रेस विज्ञप्ति भी जारी कर दी, जिसमें भागने वालों के नाम हटा दिए गए।
दो तरह की प्रेस विज्ञप्तियों को लेकर अब शहर में चर्चा आम है।
अब जिस विषय पर चर्चा आम हो और मीडिया केवल प्रेस विज्ञप्ति छापने तक को पत्रकारिता समझता हो, ऐसे में पर्वतजन को अपना पत्रकारिता धर्म तो निभाना ही था। लिहाजा इस “टॉक ऑफ़ द टाउन” को पाठकों के विमर्श के लिए जनहित में सदभावना पूर्वक पब्लिश किया जा रहा है।
यहां पर पुलिस द्वारा पहले दी गई प्रेस विज्ञप्ति और दूसरी संशोधित विज्ञप्ति दोनों को दिया जा रहा है।
अब पाठक स्वयं तय करें कि आखिर पुलिस ने ऐसा क्यों किया ! पिथौरागढ़ के पुलिस इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है।
पुलिस ने अपनी पहली प्रेस विज्ञप्ति में लिखा था कि “प्रेम प्रकाश को गिरफ्तार कर दिया गया है, जबकि टकाना पिथौरागढ़ निवासी नगेंद्र कुंवर और हरेंद्र पांडे घटनास्थल से भागने में सफल रहे।”
बाद में संशोधित प्रेस विज्ञप्ति में पुलिस ने भागने वाले दोनों मालिकों का नाम हटा दिया।
पहले जारी प्रेस विज्ञप्ति
जब पर्वतजन ने संशोधित प्रेस विज्ञप्ति में नाम हटाए जाने का कारण जिले की एसपी प्रीति प्रियदर्शनी से पूछा तो उन्होंने कहा कि “नाम हटाए जाने का मतलब यह नहीं होता कि उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं होगी।”
एसपी पिथौरागढ़ ने कहा कि कई बार जांच में आसानी हो सके इसलिए नाम हटाए जा सकते हैं। अब यहां पर अहम सवाल यह हो गया है कि क्या पिथौरागढ़ पुलिस और कानून के हाथ इतने छोटे हो गए हैं कि दो शराब तस्करों को पकड़ने के लिए उन्हें प्रेस विज्ञप्ति से नाम हटाना पड़ रहा है !
बाद मे जारी प्रेस विज्ञप्ति
हालांकि आरोप तो यह भी है कि इस बार जो एसओजी गठित की गई है उसमें सत्ताधारी भाजपा के नजदीकी जवानों को शामिल किया गया है, इससे अपराध पर रोक लगने की गति धीमी होने की आशंका तीव्र हो गई है।
राकेश वर्मा, उत्तराखंड छात्र मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि यदि पुलिस अधीक्षक से उनके अधीनस्थों ने यह बात छुपाई है,तो यह गलत बात है। किंतु यदि पुलिस अधीक्षक खुद ही मीडिया और जनता से भगोड़े अभियुक्तों का नाम छुपा रही है तो फिर यह पुलिस की कार्यशैली और कमजोर मनोबल पर भी बड़े सवाल खड़े करता है। जाहिर है कि पुलिस को राजनीतिक तथा अन्य दबाव से मुक्त कराना काफी आवश्यक हो गया है।