ऐसा सिर्फ उत्तराखंड में ही हो सकता है कि सहायक प्राध्यापकों के ईडब्ल्यूएस के आरक्षित पदों पर उन लोगों को भर्ती किए जाने की तैयारी है, जो पहले से ही डेढ़ से ₹3 लाख रुपए प्रतिमाह वेतन पा रहे हैं।
ईडब्ल्यूएस यानी इकोनॉमिकल वीकर सेक्शन अर्थात आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए कागजों में तो बड़े सख्त पैमाने हैं लेकिन पहले से ही महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नौकरी करते हुए जिन प्रोफेसर को सवा लाख से ₹तीन लाख तक का प्रतिमाह वेतन मिल रहा है, अब उनको अल्मोड़ा विश्वविद्यालय में ईडब्ल्यूएस के आरक्षित पदों पर नियुक्त करने की तैयारी हो रही है।
सूत्रों के अनुसार ऐसा उत्तराखंड शासन में तैनात एक वरिष्ठ नौकरशाह के निकटवर्तियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है।
उच्च शिक्षा से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि कानून ऐसा नहीं किया जा सकता यह गलत है लेकिन जिसकी चलती है उसकी क्या गलती है !
पर्वतजन द्वारा पूर्व में भी प्रकाशित खबरों के चलते इन नियुक्तियों पर दो बार पहले ही ब्रेक लग चुका है लेकिन अब दोबारा से फाइल तैयार की जा रही है।
यह है पूरा मामला:
शासन द्वारा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़ एवं राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बागेश्वर को सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा का कैंपस बनाया गया। शासन द्वारा कैम्पस में समायोजन हेतु राजकीय महाविद्यालयों में कार्यरत कार्मिकों से विकल्प मांगे गए जिन कार्मिकों द्वारा विश्वविद्यालय में समायोजन हेतु विकल्प चुना गया उनके समायोजन हेतु विश्वविद्यालय एवं निदेशालय के बीच समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित हुआ जिसके अनुसार स्क्रीनिंग कमिटी के गठन हुआ व विश्वविद्यालय एवं निदेशालय द्वारा संयुक्त रूप से साक्षात्कार का आयोजन किया गया जिसमें शासन की अनुमति के बाद 74 सहायक/सह/प्राध्यापकों व 24 शिक्षणेत्तर कार्मिकों का विश्विद्यालय में समायोजन हेतु चयन किया गया व विश्विद्यालय द्वारा समायोजन/ नियुक्ति पत्र चयनित प्रत्येक कार्मिक को उनकी नियुक्ति स्थल में प्रेषित किया गया। विश्विद्यालय में समायोजित कार्मिकों में से प्राध्यापक वर्ग में 49 कार्मिकों एवं शिक्षणेत्तर कार्मिकों में 14 कार्मिकों द्वारा कार्यभार ग्रहण किया गया।
कुलसचिव द्वारा दिनांक 26 मई,2023 को अपर सचिव उच्च शिक्षा को पत्र प्रेषित कर क्षैतिज आरक्षण के 21 एवं EWS के 30 पदों को समायोजन के द्वारा भरने की अनुमति मांगी।
EWS के लिए आरक्षित पदों को विश्वविद्यालय सीधी भर्ती से ही भर सकता है। विश्वविद्यालय एक अलग संगठन है और आरक्षण के समस्त प्रावधानों को मानने के लिए बाध्य है।
वर्तमान में एक खबर ऐसी भी आ रही है कि शासन स्तर पर एक ऐसा पत्र जारी करने की तैयारी है जिसके तहत पिथौरागढ़ व बागेश्वर महाविद्यालय में कार्यरत समस्त कार्मिकों को परिसरों में समायोजित कर दिया जाएगा,किंतु राज्य के अन्य महाविद्यालयों में कार्यरत कार्मिक इसके विरोध में भी लामबंद हो गए है।
पूरी एक्सरसाइज के पीछे एक वरिष्ठ आई. ए. एस. अधिकारी का विशेष रुचि लेना बताया जा रहा है जो स्वयं पिथौरागढ़ जिले से ताल्लुक रखते है। विश्वविद्यालय की सुस्ती का खामियाजा कैंपस में अध्यनरत 10000 विद्यार्थियों को उठाना पड़ रहा है।
विश्वविद्यालय को चाहिए कि वो जल्द से जल्द इन पदों को संविदा में या रेगुलर रूप से भर्ती के लिए विज्ञापित करे ताकि जब तक शासन स्तर से निर्णय न लिया जा सके तब तक विद्यार्थियों को कुछ न कुछ प्राप्त हो जाय।