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सरकार की अनदेखी के चलते नष्ट होने की कगार पर खड़ी परम्परागत बागवानी

February 22, 2022
in पर्वतजन
सरकार की अनदेखी के चलते नष्ट होने की कगार पर खड़ी परम्परागत बागवानी
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पुरोला/ नीरज उत्तराखंडी

पुरोला विकासखण्ड के दर्जनों गांव फल पट्टी के लिए जाने जाते हैं जो आज परम्परागत तौर तरीकों को बदल कर नई तकनीकी की ओर बढ़ना बागवानों के लिए बड़ी चुनौती है।

बदलते हुए जलवायु व मौसम के कारण दशकों पहले लगे सेब,पल्म,नाशपाती,आड़ू आदि के बाग बहुतायत सब उजड़ चुके हैं और कुछ उजड़ने की कगार पर हैं। 

रंवाई घाटी में लगभग 52 हेक्टेयर पर फैले उद्यानों से दशकों पहले जहां 50 मीट्रिक टन सेब उत्पादन होता था वह आज महज 5 मिट्रिकटन पर सिमट कर रह गया है।

नौगाँव के सेवरी सहित पुरोला के धडोली, शिकारू, चालनी, सल्ला, कुफारा, मैराणा,डोखरी, कुमोला,नौरी आदि रेड डेलिसियस,रॉयल,रिचर्ड,गोल्डन आदि प्रजाति के सेब की उत्पादकता के लिए सहारनपुर, दिल्ली, कानपुर,आगरा आदि की फल मंडियों में अपनी एक अलग पहचान रखते थे वह आज मिटती चली जा रही है।

फलों की उत्पादकता के लिए विख्यात यह क्षेत्र दिनों दिन बागवानी से विमुख होता जा रहा है।

नतीजन अपनीं मुख्य आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत खोते चले जा रहे हैं। जिसका दुष्परिणाम आर्थिक स्थिति के साथ साथ गांवों से बाज़ारों की तरफ पलायन भी होता जा रहा है।

बागवानों की माने तो उद्यान विभाग में समय से पौध न मिलने, दवाइयां न मिलने,विशेषज्ञ डॉक्टर्स के अभाव के साथ साथ बागवानों को सही प्रशिक्षण की कमी भी इसका मुख्य कारण है।

उधमी बागवान वीरेंद्र चौहान,बिजेंद्र सिंह,विनोद प्रकाश आदि लोगों ने कहा कि बदले हुए वातावरण में विभाग को निरंतर बागवानों को प्रोत्साहित करने व प्रशिक्षण के साथ ही समय समय पर उत्तम बागवानी के लिए सही प्लानिंग तथा देख रेख करने की जरूरत है।

 इसी के साथ उद्यान विशेषज्ञ व डॉक्टर्स की मदद से समय समय पर मृदा जांच होती रहे व रोगों पर निगरानी हो जो कि अभी तक हिमांचल की भांति यहां पर सुगमता से उपलब्ध नही हो पाती है,जिसका कारण यहां की बागवानी खतरे में पड़ती जा रही है। 

अगर सरकारें मिशन की तरह बागवानी को प्राथमिकता से लेकर आवश्यक सुविधाएं बागवानों को दें तभी यह फल पट्टी पुनर्जीवित हो सकती है।


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