काम चलाऊ डाॅक्टर के भरोसे पौड़ी की जनता की सेहत !
ऐसे तुगलकी फैसले कौन काबिल लोग ले रहे हैं सरकार !
तो क्यों न पूरे सूबे को ही पीपीपी मोड पर दे दो !
अजय रावत,पौड़ी गढ़वाल।
सरकार… बुरा न मानियेगा, सूबे की अवाम की सेहत का महकमा तो संभले नहीं संभल रहा है। गढ़वाल मंडल के मुख्यालय पौड़ी के जिला चिकित्सालय में लंबे समय से फिजिशियन का पद रिक्त चल रहा है, इस बीच हल्द्वानी के बेस अस्पताल में तैनात एक पहाड़ी व पहाड़ प्रेमी चिकित्सक डॉ अमित रौतेला स्वेच्छा से हल्द्वानी जैसा शहर छोड़ पौड़ी की पहाड़ी पर चढ़ने को आतुर है, उन्होंने इस बाबत बाकायदा एक दरख्वास्त महकमे के डीजी को 25 जून 18 को सौंप दी थी, किंतु कोई उनकी फरियाद सुनने को तैयार नहीं है। इधर महकमे ने ऋषिकेश के फिजिशियन को महीने के 15 दिनों तक पौड़ी तैनात रहने का फरमान जारी कर दिया, आखिर 15 दिन की यह अस्थायी व्यवस्था कितनी कारगर होगी, ऐसे तुगलकी फैसले कौन काबिल लोग ले रहे हैं। इन काबिलों को किसी डॉक्टर की पहाड़ चढ़ने की मंशा वाला प्रार्थनापत्र क्यों नजर नहीं आ रहा,.. कहीं ऐसा तो नही कि इनके चश्मे की धूल गुलाबी रंग के कागज से ही साफ होती होगी।
महकमे के अफसर पीपीपी की गंगा में डुबकी को आतुर
वहीं सुना है कुछ बड़े संस्थान प्रदेश के राजकीय रुग्णालयों को पीपीपी मोड में लेकर निरीह जनता पर परोपकार करने को उत्साहित हैं, और महकमे के अफसर पीपीपी की गंगा में डुबकी को आतुर.. पर सवाल यह कि इन तथाकथित चैरिटी ट्रस्टों की रुचि सिर्फ सुगम के अस्पतालों को पीपीपी करने में क्यों है, इन्हें ऋषिकेश, डोईवाला पौड़ी टिहरी ही नजर आ रहे हैं। यदि पीपीपी ही रुग्ण हो चुके रुग्णालयों को जिंदा रखने की आखिरी खुराक है तो क्यों नहीं ये परोपकारी ट्रस्ट भटवाड़ी, थराली, जोशीमठ, मुनस्यारी, नैनीडांडा, लोहाघाट जैसे जरूरतमंद अस्पतालों में रुचि लेते।
महकमे के मठाधीशों की पेंच कसिए जरा कहीं, इन राजकीय अस्पतालों को अपने अस्पताल का रेफेरेल काउंटर बनाने की मंशा तो नहीं इनकी..? और दुर्भाग्य यह कि महकमे के गिद्ध भी कुछ टुकड़े गोश्त के लालच में सूबे के अच्छे खासे सरकारी अस्पतालों को बर्बाद करने पर आमादा हैं, ताकि उन्हें पीपीपी के लायक बदहाल साबित किया जा सके, पौड़ी जैसे महत्वपूर्ण अस्पताल में सेवा देने की किसी फिजिशियन की स्वैच्छा के बावजूद मसले को लटकाया जाना महकमे के अफसरों के खेल की तस्दीक करता है.. मेरे सरकार थोड़ा संज्ञान लीजियेगा, महकमे के मठाधीशों की पेंच कसिए जरा.. कहीं ये पूरे सूबे को ही पीपीपी न कर डालें।
पहले से चलता आ रहा पीपीपी मोड का खेल
सेवाओं में कमी के आधार पर स्वास्थ्य महानिदेशालय ने कांग्रेस सरकार के दौरान दो कंपनियों से 12 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के पीपीपी मोड में संचालन के लिए अनुबंध किया। इसमें से शील नर्सिंग होम को चैखुटिया, लोहाघाट, बाजपुर, गैरसैण, जखोली, गरमपानी, कपकोट और मुनस्यारी सीएचसी का संचालन दिया गया। वहीं राजभ्रा मेडिकेयर को रायपुर, सहिया, थत्यूड़ और नैनबाग सीएचसी की जिम्मेदारी दी गई। दोनों कंपनियों को अनुबंध के अनुसार अस्पताल में सेवाएं, सुविधाएं और डॉक्टर समेत अन्य स्टाफ रखने थे। हालांकि कई तरह की अनियमितताओं के चलते विभाग ने राजभ्रा मेडिकेयर का अनुबंध निरस्त कर दिया था। वहीं कुछ समय पूर्व सेवाओं में कमी और लोगों के विरोध के चलते विभाग ने लोहाघाट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को शील नर्सिंग होम से वापस ले लिया। साथ ही अन्य दो सीएचसी लोहाघाट और बाजपुर का अनुबंध भी निरस्त कर दिया।
बड़ा सवाल यह उठता है कि जब स्वास्थ्य विभाग पहले ही पीपीपी मोड के जरिए नुकसान उठाना चुका है तो फिर दुबारा से जानबूझकर गलती क्यों की जा रही है? और अगर देने ही हैं तो जो देहरादून जनपद के सरकारी अस्पताल में मांग रहा है उसे कहते पहले पहाड़ों की अस्पताल की दशा सुधार के दिखाओ तब देहरादून की बात करना, पर ऐसा करे कौन?