केंद्रीय वस्त्र राज्यमंत्री अजय टम्टा आजकल अपनी सांसद निधि आरएसएस द्वारा संचालित स्कूलों में खपा रहे हैं।
28 फरवरी 2019 को जिलाधिकारी अल्मोड़ा को लिखे गए अपने पत्र में अजय टम्टा ने सरस्वती शिशु मंदिरों के कमरों के निर्माण के लिए अपनी सांसद निधि से 5 से ₹10लाख खर्च करने के लिए कहा है।
अल्मोड़ा लोकसभा क्षेत्र के इन सरस्वती शिशु मंदिरों मे खर्च की जा रही इस धनराशि के लिए कहीं प्रबंध समिति तथा कहीं प्रधानाचार्य को ही कार्यदाई संस्था बनाया गया है।
पहला सवाल यह है कि उत्तराखंड में राजकीय प्राथमिक विद्यालय बेहद जर्जर हालत में हैं। कुछ समय पहले अल्मोड़ा लोकसभा क्षेत्र बागेश्वर में ही एक सरकारी विद्यालय की जर्जर इमारत की छत गिरने से स्कूली बच्चों की मौत हो गई थी, किंतु इन सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के लिए सांसद अजय टम्टा गंभीर नहीं है।
दूसरा सवाल यह है कि अल्मोड़ा लोकसभा क्षेत्र में ही कई सारे अन्य निजी स्कूल भी हैं, यदि राज्यमंत्री टम्टा सरस्वती शिशु मंदिरों को अपनी सांसद निधि से भवन बनाने के लिए पांच से ₹10लाख आवंटित कर रहे हैं तो फिर अन्य निजी स्कूलों के लिए यह नियम क्यों नहीं है !
तीसरा सवाल यह है कि क्या अजय टम्टा भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी संगठन आरएसएस द्वारा संचालित किए जा रहे स्कूलों के लिए अपनी सांसद निधि खर्च कर रहे हैं ! शिक्षा की दशा सुधारना उनकी प्राथमिकता है अथवा प्रतिबद्धता के लिए सरकारी धन खर्च करना !
सांसद निधि के सरकारी धन को निजी क्षेत्र में खर्च करने की यह परिपाटी आगे चलकर अन्य राजनीतिक पार्टियों को भी ऐसा करने के लिए मजबूर कर सकती है।
अल्मोड़ा सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा की सांसद निधि 2632.74 लाख है। दिसंबर 2018 तक मात्र 32% यानी 839.20 रुपए की सांसद निधि ही अजय टम्टा खर्च कर पाए हैं।
मतलब साफ समझा जा सकता है कि अजय टम्टा क्षेत्र के विकास के लिए जरा भी गंभीर नहीं हैं और अगर थोड़ा बहुत गंभीर हैं भी तो वह आरएसएस द्वारा संचालित किए जा रहे सरस्वती शिशु मंदिरों के लिए ही हैं।
क्षेत्र के विकास के बजाय आर एस एस के प्रति यह वैचारिक प्रतिबद्धता लोगों में अजय टम्टा के प्रति आक्रोश पैदा कर रही है।
अजय टम्टा के लोकसभा क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक भी अजय टम्टा से इसलिए नाराज हैं कि उन्होंने सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के लिए तो सांसद निधि खर्च नहीं की, अलबत्ता आर एस एस द्वारा संचालित निजी स्कूलों में जरूर पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। जबकि यह जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है।