केंद्र सरकार द्वारा तीन तलाक पर सात साल की सजा का प्रावधान किए जाने के बाद तीन तलाक की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही है।
देहरादून में भी तीन तलाक का पहला मुकदमा दर्ज होने जा रहा है।इससे पहले हरिद्वार में भी तीन तलाक के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जा चुका है। देहरादून में तीन तलाक का यह मामला है जबकि उत्तराखंड का यह दूसरा मामला है।
देहरादून के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मनिंद्र मोहन पांडे ने तीन तलाक की पीड़िता के प्रार्थना पत्र पर धारा 156 (3) के अंतर्गत सुनवाई के लिए स्वीकार करके संबंधित थानेदार को निर्देशित किया कि वह इस मामले में अभियोग पंजीकृत करके मामले की विधिवत विवेचना करें।
देहरादून की शगुफ्ता जमाल ने अपने पूर्व पति अमीर अहमद पर तीन तलाक का मुकदमा दर्ज कराने के लिए अपने अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी के माध्यम से कोर्ट में अर्जी दी थी। गौरतलब है कि 27 जनवरी 2002 को यह निकाह हुआ था। इसके लिए अमीर अहमद के माता-पिता एक प्रस्ताव लेकर शगुफ्ता जमाल के घर पर आए थे। उस समय शगुफ्ता हिमालयन इंस्टीट्यूट एवं मेडिकल साइंस से एमबीबीएस तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रही थी। निकाह के समय विपक्षी और उसके माता-पिता ने आश्वासन दिया था कि शगुफ्ता की मेडिकल की पढ़ाई को जारी रखा जाएगा, किंतु निकाह के 2 माह के बाद अमीर अहमद शगुप्ता पर बात बात पर शक करने लगा और शगुप्ता को प्रताड़ित करने लगा।
इसके चलते वर्ष 2003 में शगुफ्ता का गर्भपात हो गया।
शगुप्ता ने कोर्ट को बताया कि अमीर अहमद बिना कारण के ही बात-बात पर उत्तेजित होकर उसको मारना पीटना शुरू कर देता था।
13 जुलाई 2005 को उनका एक पुत्र अजान पैदा हुआ, किंतु इसके बाद भी उसके पति का रवैया नहीं सुधरा और वह मारपीट तथा प्रताड़ित करता रहा। जब भी सकता है इसकी शिकायत अपने पति के माता-पिता से करती थी तो वह भी उसे बीमार बताकर चुप करा देते थे और कहते थे कि यदि तुमने आपत्ति की तो तुम्हें तलाक दिलवा देंगे।
काफी लंबे समय तक वह धमकियों को चुपचाप सहती रही लेकिन वर्ष 2009 में अमीर अहमद ने दूसरा विवाह करने के लिए और शगुप्ता को धोखा देने की नियत से गुपचुप तरीके से jeevansathi.com में अपना दूसरा विवाह करने का विज्ञापन दे दिया।
इसके बाद शगुप्ता फिर गर्भवती हुई और 8 अगस्त 2010 को एक पुत्री को जन्म दिया, किंतु अमीर अहमद का रवैया नहीं सुधरा।
इस साल 9 मार्च 2018 को दिल्ली से देहरादून आते हुए अमीर अहमद ने उसे बच्चों सहित आधे रास्ते में छोड़ दिया और ससुराल आने से मना कर दिया। इस बीच भी वह तरह तरह से प्रताड़ित करते रहे। आखिरकार शगुप्ता ने 26 जुलाई 2018 को एसएसपी देहरादून की हेल्प लाइन में प्रार्थना पत्र दिया, काउंसलिंग भी हुई लेकिन कोई हल नहीं निकला।
अब शगुप्ता ने आखिरकार 7 सितम्बर 2018 को डोईवाला पुलिस पर आगे की कार्यवाही करने तथा मुकदमा दर्ज करने के लिए कहा किंतु पुलिस ने शिकायत का कोई संज्ञान नहीं लिया।
इस पर कोर्ट ने शिकायत का संज्ञान लिया तथा पाया कि भारत सरकार द्वारा भी 19 सितंबर 2018 को जारी गजट के अनुसार भी मुस्लिम महिला विवाह संरक्षण अध्यादेश 2018 की धारा 3तथा4 के अंतर्गत इस प्रकार के तलाक को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में माना गया है। साथ ही पाया कि प्रार्थना पत्र में किए गए कथन और नोटिस और अन्य प्रपत्रों के अनुसार शगुफ्ता को उसके पति ने उसके चरित्र पर शक करने के साथ ही तलाक की धमकी दी और दूसरे विवाह के लिए विज्ञापन दिया तथा तलाक का नोटिस दिया। यह सब कृत्य क्रूरता के अंतर्गत आते हैं।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम दृष्टया मामले को संगेय अपराध की श्रेणी में मानते हुए इस निष्कर्ष पर आए थे कि वर्तमान मामले में पुलिस द्वारा जांच कराया जाना आवश्यक और न्यायोचित होगा। इस प्रकार सीजीएम देहरादून ने थानाध्यक्ष को मामले में मुकदमा दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए।