नीरज उत्तराखंडी
माहअक्तूबर 2018 को न्यूज 18 के सौजन्य से
देहरादूनम में आयोजित खेल प्रतियोगिता में 5 किमी की मिनी मैराथन दौड़ में प्रथम स्थान हासिल कर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के हाथों पुरस्कार पाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली योगेश्वरी नेगी ने सबको आश्चर्यचकित कर दिया है। कौन जानता था था कि नूराणू जैसे सुविधा विहीन गाँव से एक बालिका राज्य स्तर पर पहचान बनाएगी।
योगेश्वरी जनपद उत्तरकाशी के विकास खण्ड मोरी के सुदूवर्ती सुविधा विहीन गाँव नुराणू की रहने वाली है।
योगेश्वरी नेगी नूराणू निवासी स्वर्गीय शिवदया सिंह की पुत्री है। इनकी माता का नाम गजेन्द्री देवी है। इनके 2भाई 2बहिनें हैं,जो देहरादून में ही पढाई कर रहें है।
योगेश्वरी नेगी के पिता नेटवाड़ बाजार में सिलाई की दुकान चलाया करते थे।माता गजेन्द्री गृहणी है।
इनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव में तथा जूनियर की कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय खरसाडी में हुई उसके बाद राजकीय इंटर कालेज नेटवाड़ से द्वितीय श्रेणी में माध्यमिक शिक्षा उतीर्ण की।वर्तमान समय में विश्वेशरी एमकेपी कालेज देहरादून में बीए तृतीय वर्ष में अध्ययनरत है ।
योगेश्वरी को बचपन से ही खेल में रूचि थी। वह दो बार राज्य स्तरीय टीम में प्रतिभाग कर चुकी है।
वर्ष 2015 में रूडकी में आयोजित राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिता में कब्बडी में इनकी टीम सेमीफाइनल में हार गई थी। उसे दौड़ने में बहुत रूचि है। वह बताती है कि वह प्रति दिन प्रातः4बजे जाग जाती है तथा 1घंटा रोज दौड़ लगाती है। दौड़ के प्रति उसका यह समर्पण उसे 5किमी की मिनी मैराथन दौड़ में प्रथम स्थान हासिल कर मुख्यमंत्री के हाथों सम्मान पाने की इबारत लिख गया। उसकी मेहनत रंग लाई तथा युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन गई। अभाव में पली संघर्षों में तपी योगेश्वरी के अंदर छुपी खेल प्रतिभा में गजब का निखार आया वह उसे ने एक पहचान दिला गया।
मिनी मैराथन दौड़ में प्रथम स्थान हासिल करने पर राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उसे मैडल तथा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। योगेश्वरी ने नूराणू गाँव को राज्य फलक पर पहचान दिला कर गाँव क्षेत्र तथा जिले का नाम रोशन किया।
योगेश्वरी खेल में अपना भविष्य बनाना चाहती है लेकिन उसे एक अदद गुरु की कमी खल रही है,जो उसके अंदर छुपी खेल की खूबी को तराश कर खरा सोना बना सके।उसके खेल भविष्य को संवार सकें।
उसे उम्मीद है कि उसे अच्छे कोच मिल जायेंगे। वह अपनी सफलता का श्रेय मां के आशीर्वाद, ईष्ट की अनुकम्पा तथा कड़ी मेहनत और पक्के इरादे को देती है।तथा खेल में अपना कैरियर बनाना चाहती है। पर टका सा सवाल मुँह बाये खड़ा है कि क्या उसे प्रोत्साहन और दमदार कोच मिल पायेगा ? जो उसके खेल भविष्य की दिशा तय करेगा !