भूपेंद्र कुमार
उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश का घर राजपुर रोड के जाखन में स्थित है। आधा बीघा में बने ओमप्रकाश के घर के सामने एक लगभग 25 फीट की सड़क है। सड़क के दूसरी तरफ अंसल ग्रीन कॉलोनी का एक बड़ा सा पार्क है। इस बड़े से पार्क में अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश का कब्जा है। इस पर ताला लगा रहता है। इसमें केवल अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ही आ जा सकते हैं।
इसकी देखरेख के लिए एक सरकारी माली तैनात किया गया है। यह माली उद्यान विभाग सेलाकुई में कार्यरत है। माली प्रेम सिंह बिष्ट कहता है कि यह पार्क ओमप्रकाश साहब का है। लगभग 2 बीघा के इस पार्क के बाद लगभग दो ढाई बीघा समतल जमीन और है। यह जमीन सरकारी है और इस जमीन को भी ओम प्रकाश ने कब्जा रखा है।
इस जमीन के बाद रिस्पना की तरह ही एक और नदी बिंदाल नदी के तट तक भी ओमप्रकाश का कब्जा है। इस जमीन पर ओम प्रकाश ने हाल ही में लैट्रिन बाथरूम बनवाए हैं। यहां पर एक और निर्माण किए जाने की तैयारी है।
इस जमीन के काफी बड़े हिस्से पर उद्यान विभाग का यही माली ओमप्रकाश साहब के लिए शुद्ध ऑर्गेनिक सब्जियां उगाता है। भले ही इस माली की नियुक्ति राजकीय उद्यानों की देखरेख के लिए स्वीकृत पद के सापेक्ष की गई थी।
सबसे अहम् सवाल यह है कि ओमप्रकाश उत्तराखंड का सबसे पावरफुल ब्यूरोक्रेट है और इसी ब्यूरोक्रेट ने नदी के तट पर कब्जा कर रखा है। एक ओर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत रिस्पना नदी को ‘ऋषिपर्णा’ नदी कहते हुए इसके उद्धार की बात करते हैं। बड़ी-बड़ी ड्रीम प्रोजेक्ट जैसी स्कीमों की घोषणा करते हैं। इसी बिंदाल नदी को लेकर रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम घोषणा की जाती है। नदी की साफ-सफाई को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ‘मन की बात’ में बड़ी-बड़ी बातें कहते हैं। सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्री इस नदी तट पर आए दिन फोटो सेशन करवाते हैं।
वहीं दूसरी ओर इस नदी के उद्गम स्थान पर ही ओमप्रकाश ने कब्जा कर रखा है। जब सरकार का सबसे पावरफुल ब्यूरोक्रेट ही इस नदी को कब्जाए बैठा है तो नदी के अतिक्रमण मुक्त होकर स्वच्छ सुंदर निर्मल होने की बात कहना ही बेमानी है।
पर्वतजन के पाठक यह जानकर और भी चकित रह जाएंगे कि मुख्यमंत्री जी का ड्रीम प्रोजेक्ट ‘रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम’ अभी तक धरातल पर क्यों नहीं उतर पाया है! तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ओम प्रकाश ही है, क्योंकि इस स्कीम को शुरू करने के लिए नदी को कब्जा मुक्त कराना अति आवश्यक है और जहां से कब्जा हटाने की शुरुआत होनी है, उस के मुहाने पर ओमप्रकाश ने कब्जा किया हुआ है।
कुछ माह पहले नदी के कब्जे को हटाने के लिए एक संयुक्त टीम बनाई गई थी। इसमें राजस्व विभाग, नगर निगम तथा एमडीडीए के कर्मचारी शामिल थे। जैसे ही इस टीम के लोगों ने काम की शुरुआत करने के लिए पहला खूंटा ओम प्रकाश द्वारा कब्जाई गई जमीन पर गाड़ा तो ओमप्रकाश तिलमिला गए। उन्होंने अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल किया और इसका परिणाम यह हुआ कि टीम को बैरंग लौटना पड़ा। वह दिन था और आज का दिन है। आज तक फिर किसी की हिम्मत ‘रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना’ को धरातल पर लाने की नहीं हो पाई।
अंसल कॉलोनी के सभी लोग जानते हैं कि यह पार्क ओम प्रकाश ने कब्जाया हुआ है तथा नदी तट तक की कई बीघा भूमि ओम प्रकाश ने अपने कब्जे में लेकर उस पर अवैध निर्माण कराया हुआ है, किंतु कोई भी ओमप्रकाश के खिलाफ जुबान खोलने की जुर्रत नहीं करता। ओम प्रकाश के पास गृह विभाग जैसे असरदार महकमे भी रहे हैं। इसलिए कोई भी इस पचड़े में पडऩा नहीं चाहता। सभी को पता है कि ओम प्रकाश को इस प्रदेश में जबरदस्त संरक्षण और वरद हस्त प्राप्त है। माली के अलावा एक और व्यक्ति आउटसोर्सिंग पर ओम प्रकाश के घर पर तैनात हैं। उसका कहना है कि उसका काम ओमप्रकाश जी के कुत्ते को घुमाना है और आजकल वह इसी कब्जा की हुई भूमि पर समतलीकरण का कार्य कर रहा है। ओमप्रकाश के घर पर तैनात चतुर्थ श्रेणी के तीसरे कर्मचारी की मूल नियुक्ति तो आयुर्वेदिक कॉलेज हर्रावाला में है, किंतु वह ओमप्रकाश के घर पर चाय नाश्ता और खाना बनाने का काम करता है। इसका भी यही कहना है कि उक्त पार्क और जमीन साहब की ही है।
नदी तट पर यूं तो यूपी, बिहार के सैकड़ों मजदूरों और निम्न आय वर्ग के अन्य लोगों के भी कब्जे हैं, लेकिन सर्वाधिक लगभग 10 बीघा भूमि पर ओमप्रकाश ने ही कब्जा जमा रखा है।
कितनी विडम्बना है कि रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम के लिए धन भी स्वीकृत है। कर्मचारी-अधिकारी भी स्कीम को कार्यान्वित करने के लिए तैयार हैं, किंतु इस पर काम सिर्फ इसलिए नहीं हो रहा है कि इसकी कुछ बीघा भूमि पर ओमप्रकाश ने अवैध कब्जा कर रखा है। यह हमारे राज्य का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि एक ऐसा भ्रष्ट भूभक्षी अफसर उत्तराखंड के सीने पर मूंग दल रहा है और इस राज्य की जनता की टोलरेंस क्षमता की परीक्षा ले रहा है।